पीलिया यकॄत का बहुधा होने वाला रोग है। इस रोग में चमडी और श्लेष्मिक झिल्लियों के रंग में पीलापन आने लगता है। ऐसा खून में पित्त रस (bile) की अधिकता की वजह से होता है। रक्त में बिलरुबिन की मात्रा बढ जाती है। हमारा लिवर पित्त रस का निर्माण करता है जो भोजन को पचाने और शरीर के पोषण के लिये जरूरी है। यह भोजन को आंतों में सडने से रोकता है। इसका काम पाचन प्रणाली को ठीक रखना है। अगर पित्त ठीक ढंग से आंतों में नहीं पहुंचेगा तो पेट में गैस की शिकायत बढ जाती है और शरीर में जहरीले तत्व एकत्र होने लगते हैं। पीलिया तीन रूपों में प्रकट हो सकता है- १/ हेमोलाइटिक जांडिस में खून के लाल कण नष्ट होकर कम होने लगते हैं। परिणाम स्वरूप रक्त में बिलरूबिन की मात्रा बढती है और रक्ताल्पता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। २/ इस प्रकार के पीलिया में बिलरूबिन के ड्यूडेनम को पहुंचने में बाधा पडने लगती है। इसे obstructive jaundice कहते हैं। ३/ तीसरे प्रकार का पीलिया लिवर के सेल्स को जहरीली दवा(toxic drugs) या विषाणु संक्रमण (viral infection) से नुकसान पहुंचने की वजह से होता है। त्वचा का और आंखों का पीला होना तीनों प्रकार के पीलिया का मुख्य लक्षण है। अन्य लक्षण– अत्यंत कमजोरी सिरदर्द ज्वर होना मिचली होना भूख न लगना अतिशय थकावट सख्त कब्ज होना आंख जीभ त्वचा और मूत्र का रंग पीला होना। अवरोधी पीलिया अधिकतर बूढे लोगों को होता है और इस प्रकार के रोग में त्वचा पर जोरदार खुजली मेहसूस होती है।
पीलिया ठीक करने के सरल उपचार
उचित भोजन और नियमित व्यायाम पीलिया की चिकित्सा में महत्वपूर्ण हैं। लेकिन रोगी की स्थिति बेहद खराब हो तो पूर्ण विश्राम करना जरूरी है। पित्त वाहक नली में दबाव बढने और रूकावट उत्पन्न होने से हालत खराब हो जाती है। ऐसी गंभीर स्थिति में ५ दिवस का उपवास जरूरी है। उपवास के दौरान फलों का जूस पीते रहना चाहिये। संतरा, नींबू ,नाशपती, अंगूर , गाजर ,चुकंदर ,गन्ने का रस पीना फायदेमंद होता है। रोगी को रोजाना गरम पानी का एनीमा देना कर्तव्य है। इससे आंतों में स्थित विजातीय द्रव्य नियमित रूप से बाहर निकलते रहेंगे और परिणामत: आंतों के माध्यम से अवशोषित होकर खून में नहीं मिलेंगे। ५ दिवस के फलों के जूस के उपवास के बाद ३ दिन तक सिर्फ फल खाना चाहिये। उपवास करने के बाद निम्न उपचार प्रारंभ करें- सुबह उठते ही एक गिलास गरम पानी में एक नींबू निचोडकर पियें। नाश्ते में अंगूर ,सेवफल पपीता ,नाशपती तथा गेहूं का दलिया लें । दलिया की जगह एक रोटी खा सकते हैं। मुख्य भोजन में उबली हुई पालक, मैथी ,गाजर , दो गेहूं की चपाती और ऐक गिलास छाछ लें। करीब दो बजे नारियल का पानी और सेवफल का जूस लेना चाहिये। रात के भोजन में एक कप उबली सब्जी का सूप , गेहूं की दो चपाती ,उबले आलू और उबली पत्तेदार सब्जी जैसे मेथी ,पालक । रात को सोते वक्त एक गिलास मलाई निकला दूध दो चम्मच शहद मिलाकर लें। सभी वसायुक्त पदार्थ जैसे घी, तेल, मक्खन, मलाई कम से कम १५ दिन के लिये उपयोग न करें। इसके बाद थौडी मात्रा में मक्खन या जेतून का तैल उपयोग कर सकते हैं। प्रचुर मात्रा में हरी सब्जियों और फलों का जूस पीना चाहिेये। कच्चे सेवफल और नाशपती अति उपकारी फल हैं। दालों का उपयोग बिल्कुल न करें क्योंकि दालों से आंतों में फुलाव और सडांध पैदा हो सकती है। लिवर के सेल्स की सुरक्षा की दॄष्टि से दिन में ३-४ बार निंबू का रस पानी में मिलाकर पीना चाहिये। मूली के हरे पत्ते पीलिया में अति उपादेय है। पत्ते पीसकर रस निकालकर छानकर पीना उत्तम है। इससे भूख बढेगी और आंतें साफ होंगी। टमाटर का रस पीलिया में लाभकारी है। रस में थोड़ा नमक और काली मिर्च मिलाकर पीयें। स्वास्थ्य सुधरने पर एक दो किलोमीटर घूमने जाएं और कुछ समय धूप में रहें। अब भोजन ऐसा होना चाहिये जिसमें पर्याप्त प्रोटीन, विटामिन सी ,विटामिन ई और विटामिन बी काम्पलेक्स मौजूद हों। पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद भी भोजन के मामले में लापरवाही न बरतें।