गांधीजी कहते थे कि गाय पशु नहीं बल्कि सुन्दर अर्थतन्त्र है। गाय का देश की अर्थव्यवस्था में भी काफी महत्व है। गाय का दूध, घी, मक्खन, गोबर आदि महत्वपूर्ण चीजें हैं। इतना ही नहीं, गाय के रोएं और नि:श्वास भी मानव—जीवनके लिए आवश्यक है। इस बात की पुष्टि वैज्ञानिकों ने भी अपने प्रयोगों से की है। गाय के शरीर से निकलने वाली सात्विक तरंगें पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त करती हैं तथा वातावरण में फैले रोगों के कीटाणुओं को नष्ट करती हैं। गाय और उसके बछड़े के रंभाने की आवाज से मनुष्य की अनेक मानसिक विकृतियाँ तथा रोग अपने आप नष्ट हो जाते हैं। गाय की पीठ पर रोज सुबह—शाम १५–२० मिनट हाथ फैरने से ब्लडप्रेशर (रक्तचाप)नियंत्रित (सन्तुलित) हो जाता है। गाय अपने सींग के माध्यम से कॉस्मिक पावर ग्रहण करती है। अपने नि:श्वास में ऑक्सीजन छोड़ती है। डॉ. जुलियस व डा. बुक (कृषि वैज्ञानिक जर्मनी)। एक थके—मांदे व तनावग्रस्त व्यक्ति को स्वस्थ एवं सीधी गाय के नीचे लिटाने से उसका तनाव एवं थकावट कुछ ही मिनटों में दूर हो जाती है तथा व्यक्ति पहले से अच्छा महसूस करता है। (वैज्ञानिक पावलिटा, चैक यूनिवर्सिटी)। पृथ्वी पर आने वाले भूकम्पों में से अधिकांश ई.पी. वैप्स से ही आते हैं जो प्राणियों के कत्ल के समय उत्पन्न दारूण वेदना एवं चीत्कार से उत्पन्न होती है। — (डॉ. भौतिकी व खगोल विभाग के रीडर, दिल्ली वि.वि)। गाय के ताजे गोबर से टी.बी.तथा मलेरिया के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। गोबर में हैजे के कीटाणुओं को मारने की अद्भुत क्षमता है। (डॉ. किंग मद्रास) अमेरिका के वैज्ञानिक जेम्स मार्टिन ने गाय के गोबर, खमीर और समुद्र के पानी को मिलाकर ऐसा उत्प्रेरक बनाया है, जिसके प्रयोग से बंजर भूमि हरी—भरी।