यह रोग अक्सर कमर की चोट या रीढ़ की हड्डी के टूटने से होता है। एक स्थापित इलाज के रूप में सर्जन ऑपरेशन द्वारा स्पाइनल कॉर्ड पर आये दबाव को हटाते हैं और जल्द रिकवरी लाने के लिये दवाओं और फिजियोथेरेपी का सहारा लेते हैं।
जब ऐसी ही भयावह स्थिति सियोल (कोरिया) की एक 37 वर्षीय महिला के साथ घटित हुई, तब उसने अपने इलाज के साथ-साथ स्टेम सेल रिसर्च कार्यक्रम में भी भाग लेने का निर्णय लिया। इस केस स्टडी में महिला के स्पाइनल कॉर्ड के क्षतिग्रस्त हिस्से में गर्भनाल से प्राप्त स्टेम सेल्स को प्रत्यारोपित किया गया। 41 दिनों के भीतर ही उसमें सेंसरी एन्ड मोटर(संवेदना और शक्ति संबंधी) दोनों ही प्रकार की रिकवरी दर्ज की गयी, जो अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं था।
चूंकि एक केस में आये परिणाम सभी मरीजों पर लागू नहीं हो सकते। इसलिए अन्य शोधों की भी समीक्षा जरूरी है। सेल ट्रांसप्लांटेशन नामक मेडिकल जर्नल में छपे डॉ. जेफनर और डॉ. सांताक्रूज के लेख के अनुसार बोन मैरो से प्राप्त स्टेम सेल्स का स्पाइनल कॉर्ड इंजरी में मल्टीपल रूट से प्रयोग किया जा सकता है यानी उन्हें स्पाइनल कॉर्ड के अलावा रक्त में भी प्रवाहित किया जा सकता है। खास बात यह है कि उपरोक्त शोधकर्ताओं की तीन वर्ष की शोध के दौरान मरीजों में किसी प्रकार का साइड इफेक्ट नहीं पाया गया। साथ ही, उनमें आये सुधार को एशिया स्केल(रीढ़ की हड्डी में आयी चोट में सुधार का अंतरराष्ट्रीय मापदंड) के साथ-साथ वार्थेल स्कोर (जो जीवन की गुणवत्ता में आए सुधार का द्योतक है) में भी सुधार पाया गया।
हाल में अमेरिका में कार्यरत वैज्ञानिकों ने 52 मरीजों को बोन मैरो से प्राप्त मल्टी पोटेन्ट स्टेम सेल्स दीं और किसी में भी ट्यूमर या इंफेक्शन नहीं हुआ। इसके अतिरिक्त बोन मैरो स्टेम सेल्स के प्रयोग के प्रयास अन्य विधियों द्वारा भी स्पाइनल कॉर्ड इंजरी के मरीजों पर किये जा रहे हैं। इनमें विशेष सफलता राबर्ट वुड जॉनसन मेडिकल स्कूल, न्यू जर्सी (अमेरिका) के प्रोफेसर डॉ. हातेम सबावी को मिली है। सबावी ने एक ‘क्लोज सर्किट ब्लड बैग सिस्टम’ विकसित किया है, जो बेहद सुरक्षित होने के साथ-साथ प्रभावी भी है। गौरतलब है कि अमेरिकी एसोसिएशन ऑफ न्यूरोलॉजिकल सर्जन्स की स्पाइनल कॉर्ड इंजरी के प्रबंधन के संदर्भ में आयी ताजा गाइडलाइंस ने कार्टिकोस्टेरॉयड के प्रयोग को रोक दिया है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस स्टेरायड के प्रयोग से फायदा कम और नुकसान ज्यादा पहुंचता है। ऐसे में स्टेम सेल्स का प्रयोग रिपेयरिंग एन्ड रीजनरेशन (नस या नर्व को पुनर्जीवित करना) के लिये और भी प्रासंगिक हो जाता है। हाल में की गई खोजों से न्यूरल प्रीकर्सर(नस बनाने वाली कोशिकाएं) और न्यूरल स्टेम सेल्स के प्रयोग को भी बढ़ावा मिला है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देश में आटोलोगस बोन मैरो सेल ट्रांसप्लांटेशन लगभग तीन वर्ष पूर्व शुरू हुआ और उसके नतीजों से यह साफ हो गया कि यह थेरेपी प्रभावी होने के साथ-साथ सुरक्षित भी है। इसके बावजूद जिन मरीजों की चोट कमर के निचले भाग में थी, उनमें नतीजा बेहतर रहा, जबकि कमर के ऊपरी भागों में चोट लगने वाले लोगों में बहुत सुधार नहीं हुआ।