णमोकार महामंत्र पर्यावरण में हो रहे प्रदूषण की स्थिति को प्रक्षालन करता है। मूल बात यह है कि णमोकार महामंत्र किसी व्यक्ति विशेष की पुण्य अर्चना का मंत्र नहीं है। यहां अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु की वंदना की गई है। ‘अरिहंत’ वे हैं जिन्होंने अपने चार घातिया कर्मों को काट लिया है, उन्हें क्षय कर लिया है। ‘सिद्धे’ वे जिन्होंने चार घातिया और चार अघातिया कर्मों—(ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु,नाम, कर्म, गोत्र और अंतराय) अर्थात् अष्टकर्म को क्षय कर लिये है। ‘आचार्य’ वे जिन्होंने दुष्कर्मों पर विजय पा ली है । किन्तु उन्हें क्षय नहीं कर पाये हैं, ‘उपाध्याय’ वे जो दर्शन, ज्ञान और चारित्र की त्रिवेणी के ज्ञाता, परम विद्वान, साधुओं के शिक्षक कहे जाते हैं। ‘साधु वे जो आत्मसाधना में लीन है, संयमी है, सच्चे है। अत: णमोकार महामंत्र में पंच परमेष्ठी को नमस्कार किया गया है। णमोकार मंत्र का लक्ष्य मुक्ति प्राप्त करना है तथापि लौकिक दृष्टि से यह समस्त कामनाओं को पूर्ण करता है।उपसर्ग, पीड़ा, कष्ट आदि अनेक आधि व्याधि से मुक्ति दिलाता है। अत: कल्याणकारी है। समाज में व्याप्त बुराईयों को मिटाता है, यह णमोकार महामंत्र उसके समस्त बीजाक्षर पर्यावरण में व्याप्त प्रदूषण को धो डालते हैं। णमोकार मंत्र को पढ़ने मात्र से ही वातावरण में एक नए जीवन की स्फूर्ति संचरित होती है। पर्यावरण में फैले तमाम प्रदूषण को समाप्त किया जा सकता है । इस मंत्र में न केवल सचेतन अपितु अचेतन प्रकृति भी प्रभावित होती है। संजीवित होती है। अत: णमोकार महामंत्र पर्यावरण में बिखरे प्रदूषण को छांटत है, काटता है और खिलते जीवन की स्थिति को साकार करता है। क्या ही अच्छा हो यदि णमोकार मंत्र का उच्चारण जिनेन्द्र मुद्रा में (नासा दृष्टि में) विधिपूर्वक करें जिससे लक्ष्य की प्राप्ति ही हो जाये। जय जिनेन्द्र!