पुण्याहवाचन के पूर्व श्वेत चावल एक पट्टे या चौकी पर बिछावें और उसके ऊपर ह्रीं एवं स्वस्तिक बनाकर जल से परिपूर्ण कलश में मंगलमय हल्दी, सुपारी, सरसों, नवरत्न, गंध, अक्षतादिक डालें एवं मुख पर नारियल, नागर बेल (पान) या आम्रादिक के पत्ते लगावें, उसके कण्ठ में पंचरंगी सूत्र बांधे, उस पर स्वस्तिक बनावें। इस प्रकार एक कलश को सजाकर यजमान के हाथ से स्थापन कराके निम्नलिखित मंत्र को पढ़ता हुआ जयमान दूसरे कलश से उसमें पानी की धार छोड़ें। मंत्र पूर्ण होने पर उसी जल से पुण्याह मंत्र बोलते हुए सब द्रव्यों को पवित्र करें अर्थात् उस कलश में से पानी लेकर दर्भपूली से या पत्ते वगैरह से सिंचन करें। सभासद जनों पर भी जल सिंचन करें।
ॐ ह्रीं स्वस्तये पुण्याहं कलशं स्थापयामि स्वाहा।
शालि पुंज पर कलश स्थापन करें।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्र: नमोऽर्हते भगवते पद्ममहापद्मतिगिंच्छकेसरि-महापुण्डरीक-पुण्डरीकगंगासिंधुरोहिद्रोहितास्या-हरितहरिकान्ता-सीता-सीतोदानारीनरकांता-सुवर्णकूला-रूप्यकूलारक्तारक्तोदापयोधिशुद्धजल-सुवर्णघटप्रक्षालितनवरत्नगंधाक्षत पुष्पार्चितमामोदकं पवित्रं कुरु कुरु झं झं झ्रौं झ्रौं वं वं मं मं हं हं सं सं तं तं पं पं द्रां द्रां द्रीं द्रीं हं स: स्वाहा।
इति जलेन प्रसिंच्य पवित्रीकरणं। ॐ ह्रीं नेत्राय संवौषट्। इति कलशार्चनं करोति स्वाहा। अघ्र्यं।
ॐ पुण्याहं पुण्याहं लोकोद्योतनकरा अतीतकालसंजाता निर्वाण-सागर-महासाधु-विमलप्रभ-शुद्धाभ-श्रीधर-सुदत्तामलप्रभोद्धरांगिरसन्मति-सिंधुकुसुमां-जलिशिवगणोत्साहज्ञानेश्वरपरमेश्वरविमलेश्वरयशोधरकृष्णमतिज्ञानमति- शुद्धमतिश्रीभद्रअतिक्रांतशांताश्चेति चतुर्विंशतिभूतकालीनपरमदेवा व: प्रीयंतां प्रीयंतां प्रीयंतां।
ॐ संप्रतिकालश्रेयस्करस्वर्गावतरण-जन्माभिषेक-परिनिष्क्रमणकेवलज्ञान-निर्वाणकल्याणविभूतिविभूषित महाभ्युदया: श्रीवृषभाजितसंभवाभिनंदन-सुमति-पद्मप्रभसुपार्श्र्वचंद्रप्रभपुष्पदंतशीतलश्रेयोवासुपूज्य विमलानंतधर्मशांतिकुन्थ्वर-मल्लिमुनिसुव्रतनमिनेमिपार्श्र्ववद्र्धमानाश्चेति चतुर्विंशतिवर्तमानपरमदेवा व: प्रीयंतां प्रीयंतां प्रीयंतां।
ॐ भविष्यत्कालाभ्युदयप्रभवा महापद्मसुरदेवसुपार्श्र्व स्वयंप्रभसर्वात्मभूत-देवपुत्रकुलपुत्रउदंकप्रोष्ठिलजयकीर्तिमुनिसुव्रत-अरनिष्पापनिष्कषाय विमलप्रभ-निर्मलचित्रगुप्तसमाधिगुप्तस्वयंप्रभअनिवृत्तिकजयनाथविमलदेवपालानन्त-वीर्याश्चेतिभविष्यत्परमदेवा व: प्रीयंतां प्रीयंतां प्रीयंतां।
ॐ त्रिकालवत्र्तिपरमधर्माभ्युदया: सीमंधरयुगमंधरबाहुसुबाहुसंजातकस्वयं-प्रभऋषभेश्वरानन्तवीर्यसूरप्रभविशालकीर्तिवङ्काधरचंद्राननभद्रबाहुभुजंगमेश्वर-नेमीश्वरवीरसेनमहाभद्रदेवयश-अजितवीर्याश्चेति। विदेहक्षेत्रविहरमाण्विंशति-परमदेवा व: प्रीयंतां प्रीयंतां प्रीयंतां।
ॐ वृषभसेनादिगणधर देवा: व: प्रीयंतां प्रीयंतां प्रीयंतां। ॐ कोष्ठबीजपादानुसारिबुद्धिसंभिन्नसंश्रोतृप्रज्ञाश्रवणाश्च व: प्रीयंतां प्रीयंतां प्रीयंतां।
ॐ आमर्षक्ष्वेडजल्लविडुत्सर्गसर्वौषधयश्च व: प्रीयंतां प्रीयंतां प्रीयंतां। ॐ जलफलतन्तुपुष्पश्रेणिपत्राग्निशिखाकाशचारणा: व: प्रीयंतां प्रीयंतां प्रीयंतां।
ॐ आहाररसवदक्षीणमहानसालयाश्च व: प्रीयंतां प्रीयंतां प्रीयंतां। ॐ उग्रदीप्ततप्तमहाघोरानुपमतपाश्च व: प्रीयंतां प्रीयंतां प्रीयंतां।
ॐ मनोवाक्कायबलिनश्च व: प्रीयंतां प्रीयंतां प्रीयंतां। ॐ क्रियाविक्रिया धारिणश्च व: प्रीयंतां प्रीयंतां प्रीयंतां।
ॐ मतिश्रुतावधिमन:पर्ययकेवलज्ञानिनश्च व: प्रीयंतां प्रीयंतां प्रीयंतां।
ॐ अंगांगबाह्यज्ञानदिवाकरा: कुंदकुंदाद्यनेकदिगम्बरदेवाश्च व: प्रीयंतां प्रीयंतां प्रीयंतां। इह वान्यत्र नगरग्रामदेवतामनुजा: सर्वे गुरूभक्ता: जिनधर्मपरायणा भवन्तु।
दानतपोवीर्यानुष्ठानम् नित्यमेवास्तु। मातृपितृभ्रातृपुत्रपौत्रकलत्रमुहृत्स्व-जनसम्बन्धिबन्धुवर्गसहितस्य…..ते धनधान्येश्वर्यबलद्युतियश: प्रमोदोत्सवा प्रवद्र्धंतां प्रवद्र्धंतां प्रवद्र्धंतां।
इत्यादि पुण्याहवाचनं पठित्वा कलशं स्थापयेत्। ॐ ह्रीं स्वस्तये मंगलकुम्भं स्थापयामि स्वाहा। (यह बोलकर पुण्याहवाचन समाप्त होने पर कलश स्थापन करें।)