किसी भी मंगलकार्य के अवसर पर विधानाचार्य यजमान के ललाट में तिलक करते समय निम्न श्लोक बोलें—
मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतमो गणी।
मंगलं कुंदकुंदाद्यो जैनधर्मोऽस्तु मंगलम्।।
अथवा
स्ववंशतिलको भूया:, तिलको भारतस्य च।
जिनपादप्रसादात्त्वं, त्रैलोक्यतिलको भव।।
(चंदन या रोली से तिलक लगाकर उसमें अक्षत लगाकर मस्तक पर तीन बार अक्षत क्षेपण करें।)