मांसाहार के औचित्य को सिद्ध करने के लिए मांसाहारी जो तर्क प्रस्तुत करते हैं उनके उत्तर इस प्रकार हैं –
प्रश्न : प्रकृति जीवन के लिए संग्राम की शिक्षा देती है किन्तु इसका अर्थ दूसरों को मारना और खाना नहीं, अपितु अपने व अन्यों के जीवन की रक्षा के लिए संग्राम करना है । इसमें संदेह नहीं कि कुछ जंगली व निम्न श्रेणी के पशु दूसरों का मांस खा कर जीते हैं किन्तु उच्च श्रेणी के पशु गाय, घोड़ा, हाथी आदि केवल घास व अन्य वनस्पति पदार्थों पर ही जीते हैं । बहुत से पशु फल खाकर जीते हैं जैसे मनुष्य का आकार रखने वाले एप और शिम्पान्नी । अनेक पशु अपनी नसल के दुर्बल व रोगी पशुओं की रक्षा व सहायता करते हैं । मनुष्य की तुलना शिकारी पशुओं के स्थान पर गाय, घोड़ा, बैल, हाथी आदि अन्य पशुओं से क्यों न की जाए ।
उत्तर :जीव विज्ञान के आधार पर मनुष्य की शारीरिक रचना मांसाहारी पशुओं से बिल्कुल भिन्न है, जो सिद्ध करती हैं कि प्रकृति ने उसे मांसाहार के लिए नहीं बनाया । प्रकृति ने मनुष्य के लिए अनेक वस्तुएं प्रदान की हैं और उसे यह योग्यता दी हैं कि वह खेती बाड़ी जैसे श्रेष्ठ कार्यो से अपना जीवन यापन कर सके । इतनी योग्यता व सभ्यता का स्वामी मनुष्य यदि शिकारी पशुओं की नकल कर प्रकृति विरुद्ध कार्य करे तो उसे बुरा ही कहा जायेगा ।
प्रश्न : मनुष्य यदि शाकाहारी जीव है तो उसके मुंह में कुत्ता दांत क्यों पाए जाते हैं?
उत्तर : मनुष्य के मुंह में जो कुत्ता दांत समझे जाते हैं वे वास्तव में कुत्ता दांत नहीं हैं अपितु बंदर की भांति लंगरी दांत हैं । इन दांतों का मांसाहार से कोई संबंध नहीं है ।
प्रश्न : यदि पशुओं आदि को खाया नहीं जाए तो क्या पृथ्वी उनसे भर नहीं जाएगी?
उत्तर : यह एक मिथ्या विचार है क्योंकि पशुओं की संख्या भूख, बीमारी व अन्य प्राकृतिक उपायों से एक उचित सीमा में रहती है । जंगली पशु अक्सर जंगलों में ही रहते हैं और एक दूसरे का आहार होने के कारण उनका संतुलन बना रहता है । जिन पशुओं का मांस अधिक खाया जाता है, उनको तो मनुष्य ही मांस पाने की इच्छा से पालते हैं ” यदि मनुष्य ऐसे पशुओं की बढ़ोतरी के लिए प्रयत्न बंद कर दें तो उनकी संख्या उचित सीमा में ही रहेगी ।
प्रश्न : क्या केवल मेरे मांसाहार त्यागने से जीव हत्या समाप्त हो जाएगी?
उत्तर :केवल आपके मांसाहार त्यागने से जीव हत्या समाप्त तो नहीं होगी, किन्तु कम अवश्य होगी व साथ ही जीव हत्या समाप्ति की दिशा में प्रगति भी होगी । प्रत्येक कार्य का प्रारम्भ तो एक व्यक्ति ही करता है । बाद में एक से अनेक हो जाते हैं । आपके उदाहरण से आपके संपर्क में आने वाले अन्य अनेक व्यक्ति मांसाहार के परित्याग को प्रोत्साहित होंगे, फिर उनके संपर्क में आने वाले और अनेकों व्यक्ति मांसाहार के परित्याग को प्रोत्साहित होंगे । इस तरह एक आपके मांसाहार त्यागने का अर्थ कालांतर में अनेक व्यक्तियों द्वारा मांसाहार त्यागना होगा।
प्रश्न : यदि सांप, शेर, भेड़िये आदि को मारना बुरा नहीं है तो मांसाहार करना क्यों बुरा है?
उत्तर : स्वयं जियो और जीने दो का पालन ही उत्तम है । यदि कोई पशु आक्रमण करता है तो अपनी रक्षा के लिए उसे मारना आत्मरक्षा है । ऐसी अवस्था में तो मनुष्य को मारना भी उचित माना जाता है, क्योंकि इसमें भावना आत्मरक्षा की है, हत्या की नहीं किन्तु अपने शौक, स्वाद आदि के लिए किसी पशु की हत्या करना अपराध है व सभी धर्मो में इसका निषेध है । कानून की दृष्टि में भी किसी को जानबूझ कर मारना अपराध माना जाता है । आत्मरक्षा करने के प्रयत्न में हमलावार की हत्या हो जाने से वैसा अपराध नहीं माना जाता ।
प्रश्न : जब मनुष्य चलता है तब भी बहुत सी चीटियां मर जाती हैं तब फिर अन्य जीवों की यदि मनुष्य के लिए हत्या हो तब उसमें क्या अंतर है?
उत्तर : मनुष्य का चरित्र उसके विचार और इच्छापूर्वक किए गए कार्यों पर आधारित है । यदि मनुष्य जान-बूझकुर अपने पैर के नीचे रेंगने वाले ऐसे जीवों को किसी स्वार्थवश कुचल देता है जो उसे हानि नहीं पहुंचा रहे तो यह हिंसा है, किन्तु यदि असावधानी में या अनिवार्यता के कारण कुछ जीवाणु मर जाते हैं तो वह आपद् स्थिति अथवा मजबूरी है किन्तु अकारण किसी को अपने भोजन के हेतु मारना अथवा मरवाना तो केवल हत्या है ।
प्रश्न : वनस्पति विज्ञान के अनुसार पेड़-पौधों आदि में भी जीवन है । अत: मांसाहार व शाकाहार में अन्तर ही क्या रहा?
उत्तर:संसार में दो प्रकार के जीव हैं- एक जड़ दूसरे चेतन । मनुष्य, पशु, पक्षी, मछली इत्यादि चेतन जीव हैं जबकि पेड-पौधे जड़ पदार्थो की श्रेणी में आते हैं । पेड़ों के फल पककर अपने आप गिर पड़ते हैं, वृक्षों की टहनियां व पत्ते काटने पर फिर फूट पड़ते हैं । कई पौधों की कलमें लगाई जाती हैं जो एक जगह से उखाड़ कर दूसरी जगह लगाए जा सकते हैं, किन्तु किसी पशु, पक्षी के साथ ऐसा नहीं हो सकता कि उसका कोई अंग काट दिये जाने पर दुबारा नया अंग आ जाए । पशु, पक्षियों को मनुष्य पौधों की भांति धरती से उत्पन्न नहीं कर सकता । संसार के सभी जीव पंचतत्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश से बने हैं । मनुष्य में यह पांचों तत्व प्रकट व पूर्णरूप से हैं । पशुओं (चौपायों) में चार तत्व, पृथ्वी, जल, अग्नि, व वायु की ही प्रमुखता है । पक्षियों में तीन तत्व वायु, जल व अग्नि ही प्रमुख हैं । कीड़े, मकौड़े आदि में केवल दो तत्व पृथ्वी व अग्नि ही प्रमुख हैं । फल, शाक, सब्जी, वनस्पति में केवल जल तत्व की प्रमुखता है बाकी चार तत्व मृत-प्राय: ही हैं अत: वनस्पति पदार्थों के खाने में जीवों का मांस खाने की अपेक्षा हानि प्राय: न्यून ही है । संत महात्मा पेड़ों से स्वयं फल नहीं तोड़ते, टूट कर गिरे हुए फल ही खाते हैं ताकि न्यून पाप भी न हो । पेड़ों से फल प्राप्त करना बुरा नहीं है, पेड़ों को काटना बुरा है । मांसाहार कर हजार मन गुनाह का बोझ लादने से शाकाहार कर दस किलो बोझ लादना बेहतर है ।
प्रश्न : क्या मांस अधिक शक्ति देने वाला आहार नहीं है?
उत्तर :दालों, सोयावीन, मेवों, मूंगफली आदि में मांस व अण्डों की अपेक्षा अधिक प्रोटीन होता है । हमारे शरीर को जितनी प्रोटीन की आवश्यकता है उससे कहीं अधिक हम केवल शाकाहारी भोजन से ही सुगमता से प्राप्त कर सकते हैं । इसके अतिरिक्त शाकाहारी भोजन में शरीर के विकास व उसे निरोग रखने के लिए आवश्यक विटामिन्स, खनिज आदि भी प्राप्त हो जाते हैं जो मांसाहारी पदार्थो में नहीं होते । मांस खाने से शरीर में बल नही अपितु एक प्रकार की उत्तेजना उत्पन्न होती है । मांस खाने से शरीर को नाइट्रोजन अधिक मिलता है जिससे यूरिक ऐसिड, ल्युकोमिन, क्रियेटिनिन आदि पदार्थ उत्पन्न होते हैं । इन व्यर्थ पदार्थो को शरीर से बाहर निकालने के लिए शरीर को बहुत सी एकत्रित शक्ति व्यय करनी पड़ती है जिसको शक्ति उत्पन्न होना समझ लिया जाता है, वास्तव में तो इस प्रक्रिया से अंगो की शक्ति पहले से घट जाती है ।
प्रश्न : यूरोप की मांसाहारी जातियां क्या अधिक सुसभ्य, विद्वान् व शक्तिशाली नहीं हैं?
उत्तर : उनकी सभ्यता, शक्ति या विद्वत्ता मांसाहार की देन नहीं है, अपितु उनके अन्य गुणों जैसे अनुशासन, लगन, सहयोग से कार्य करना व प्रकृति की शक्तियों से शक्ति प्राप्त करना आदि गुणों के कारण हैं । मांसाहारी तो अनेक जंगली जातियां भी हैं किंतु इन गुणों के न होने से वे पिछड़ी हुई ही हैं । यूरोप में तो अब मांसाहार के विरुद्ध व शाकाहार के पक्ष में तीव्र आंदोलन होने लगा है । अत : यह कहना कि यूरोप की जातियों की शक्ति का कारण मांसाहार है, गलत है ।
प्रश्न : यदि डाक्टर मांसाहारी भोजन लेने के लिए कहे तब क्या करें?
उत्तर :प्रकृति ने इतने शाकाहारी पदार्थ उत्पन्न किये हैं जो मांस के स्थान पर लेने से वह उद्देश्य पूरा कर सकते हैं । मांसाहारी पदार्थो में केवल प्रोटीन व फैट ही अधिक होते हैं जो दालों, मेवों, दूध, मक्खन आदि से प्राप्त हो जाते हैं अत : मांसाहारी पदार्थ ही लें यह आवश्यक नहीं । इस बारे में महात्मा गांधी के बच्चे व जार्ज बर्नाड शा का उदाहरण प्रत्यक्ष है जिन्होंने डाक्टरों के यह कहने पर भी कि मांसाहार नहीं किया तो जान नहीं बचेगी, मांसाहार नहीं किया और बच गए! अत : डाक्टर का मांसाहार लेने का परामर्श मानना उचित नहीं है उसके स्थान पर उचित शाकाहारी पदार्थ लें ।