मई—जून की शरीर जलाने वाली तेज गर्मी के बाद जब बरसात की रिमझिम फुहारें पड़ती हैं तो मानव तो मानव, पशु, पेड़—पौधे सबको एक शीतलता का एहसास होता है। ऐसा लगता है कि प्रकृति ने नहा—धोकर एक साफ सुथरी हरी चादर ओढ़ ली है। ऐसा कहा जाता है कि बारिश की बूंदें वनस्पति के लिए अमृत समान होती हैं मगर यह भी सच है कि बरसाती मौसम के दौरान जैसी बीमारियां एक साथ दस्तक देती हैं वे कम से कम मनुष्य समाज के लिए तो घातक सिद्ध होती ही है। बारिश के मौसम में वातावरण में नमी बढ़ जाने के कारण कींटाणुओं—वायरस, फंगस, वैक्टीरिया के पनपने के लिए आइडियल तापमान होने के कारण इनसे होने वाली बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में खेत—खलियानों में पानी भर जाने के कारण जहरीले सांप—बिच्छु और विषैले कीड़े—मकोड़ों के बाहर आने और लोगों को काटने का खतरा बढ़ जाता है। वहीं शहरी क्षेत्रों में सारी समस्या बारिश के पानी के इकट्ठा होने और जलभराव के कारण होती है। एक जगह रूके हुए पानी में मलेरिया—डेंगू के मच्छर पनपने के कारण इन बीमारियों का प्रसार सबसे ज्यादा होता है। बारिश के मौसम में दूषित पानी और दूषित भोजन के सेवन से लोग संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं। दूषित पानी में उपस्थित बैक्टरिया तथा वायरस छोटी आंतों में बीमारी पैदा करते हैं जिससे कालरा, ईकोलोई का संक्रमण होता है। इसकी वजह से उल्टी व दस्त होने लगता है। बच्चों में यह समस्या ज्यादा होती है। चिकित्सकों का कहना है कि इस मौसम में यथासंभव साफ पानी का प्रयोग करना चाहिए।
पीने के पानी को उबाल कर पीना ज्यादा सुरक्षित रहता है। खाने पीने का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। मौसम में ठंडापन और खुशगवारी के कारण अक्सर लोग बाहर की चटपटी और मसालेदार चीजें खाना पसंद करते हैं जो बहुत हानिकारक सिद्ध होती हैं। इस मौसम में फूड पायजनिंग का खतरा सबसे अधिक होता है। इसलिए यही कोशिश करनी चाहिए कि सिर्फ घर के खाने का सेवन किया जाए। इस मौसम में संक्रमण से फैलने वाली बीमारियों को खतरा सबसे अधिक होता है। इनसे सबसे पहला स्थान आता है। डेंगू और मलेरिया का। घर के अंदर और आसपास एनाफिलिस और एडिस मच्छरों द्वारा जमे हुए पानी पर अंडे देने से मलेरिया व डेंगू फैलते हैं। पिछले कुछ वर्षों में तो राजधानी समेत कई क्षेत्रों में डेंगू का कहर बहुत ज्यादा बढ़ गया है। इसका शुरुआती लक्षण होता है कंपकपी, बुखार, नाक से पानी निकलना तथा पेट में जबरदस्त मरोड़ उठना। इसके बचाव हेतु ये करना चाहिए कि आसपास गंदा पानी इकट्ठा न होने दें, गमलों—कूलरों तथा ऐसे स्थानों की नियमित सफाई करें, मिट्टी तेल का छिड़काव करना चाहिए। मच्छरदानी एवं मोस्क्यूटोक्वाइल का उपयोग तथा ग्रामीण क्षेत्रों में नीम के पत्तों को जलाने से इन मच्छरों के फैलने का खतरा कम हो जाता है। दूसरी सबसे बड़ी बीमारी इस मौसम की होती है हैजा। दूषित पानी व भोजन के सेवन से उल्टी, दस्त, पीलिया, तेज बुखार आदि का संक्रमण होता है। शरीर में नमक और पानी की कमी हो जाने से शरीर निढाल हो जाता है। इससे बचाव का उपाय होता है कि खाने की चीजों को पकाने से पहले अच्छी तरह धोया जाए। कच्ची सब्जियों, कटे फलों एवं रेहड़ी पटरी पर बिकने वाली चीजों को खाने से परहेज तथा गर्म भोजन का सेवन करना चाहिए। संक्रमित व्यक्ति को नमक—चीनी का एवं ग्लूकोज का घोल पिलाने से शरीर में नमक और पानी की क्षतिपूर्ति होती है।
इसके अलावा बरसात के मौसम में लोग अक्सर चर्म रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं। बारिश में भीगने, गंदे पानी, पसीना न सूखने एवं देर तक गीला करने के कारण वातावरण में मौजूद नमी से फफूंद का संक्रमण हो जाता है। इससे पैरों में, गले पर एवं कानों के आसपास खुजली, चकते तथा धब्बे आदि की शिकायत हो जाती है। इसके बचाव हेतु लंबे समय तक गीले कपड़े विशेषकर जूतों व मोजों को नहीं पहनना चाहिए एवं पैरो में सरसों के तेल की मालिश करनी चाहिए। बरसात के दौरान तापमान काफी अस्थिर रहता है जिससे अस्थमा यानी दमा के फैलने का खतरा बढ़ जाता है। यह बीमारी एक दूसरे के संपर्क में रहने पर फैलती है। बुखार, नाक बहना, कफ, खांसी तथा सांसों का फूलना इसके लक्षण हैं। इससे बचने के लिए भीड़भाड़ वाले स्थानों में जाने से बचना चाहिए। इसके अलावा कंजक्टीवाइटिस यानी आई फ्लू भी बरसात के दिनों में तेजी से फैलता है। यह भी एक वायरस जनित बीमारी है जो तापमान में अचानक परिवर्तन एवं दूषित पानी के कारण फैलती है। आंखों में खुजली होना, आंखों का दुखना इसके प्रथम लक्षण हैं। पीड़ित व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे रूमाल तौलिए आदि का किसी और के द्वारा उपयोग करने से उसे भी आई फ्लू की संभावना बहुत अधिक हो जाती है। इसके बचाव के लिए अच्छा होता है कि स्कूल—दफ्तर से छुट्टी लेकर आंखों को पूर्ण आराम दिया जाए। आंखों पर काला चश्मा अवश्य लगाना चाहिए। आई फ्लू के लिए उपलब्ध विशेष मलहम का उपयोग करना चाहिए। बरसात के मौसम में खुद को इन बीमारियों से बचाने के लिए कुछ सावधानियों को बरतने से इनका खतरा कम हो जाता है। बरसात के दौरान बरसाती , छतरी का उपयोग यानी खुद को गीला होने से बचाना, बाहर के खाने की उपेक्षा, शरीर के बाहरी भागों की नियमित तेल—मालिश आदि से बीमारी की चपेट में आने से बचा जा सकता है।