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फूलमाल पचीसी
July 27, 2017
जैन जातियाँ
jambudweep
फूलमाल पचीसी
दोहा-
जैन धरम त्रेपन क्रिया, दया धरम संयुक्त। यादो वंश विषैं जये, तीन ज्ञान करि युक्त।।१।।
भयो महोत्सव नेमि को, जूनागढ़ गिरनार। जाति चुरासिय जैनमत, जुरे क्षोहनी चार।।२।।
माल भई जिनराज की, गूंथी इन्द्रन आय। देश देश के भव्य जन, जुरै लेनकों धाय।।३।।
-छप्पय-
देश गौड़ गुजरात चौड़ सोरठि बीजापुर। करनाटक काश्मीर मालवा अरु अमरेपुर।।
पानीपत हिसार और वैराट महालघु। काशी अरु मरहट्ट मगध तिरहुत पट्टन सिंधु।।४।।
तहं बंग चन्द बन्दर सहित, उदधि पारला जुुरिया सब। आये जु चीन मह चीन लग, माल भई गिरनारि जब।।
-नाराच छंद-
सुगंध पुष्प बेलि कुंदि केतकी मंगायके। चमेली चम्प सेवती जूहीगुही जु लायके।
गुलाब कञ्ज रायची सबै सुगन्ध जातिके।
मालती महा प्रमोद लै अनेक भांतिके।।५।।
सुवर्णतार पोई बीच मोती लाल लाइया। सु हीर पन्न नील पीत पद्म जोति लाइया।
शची रची विचित्र भांति चित्त देवनाइ है। सुइन्द्र ने उछाहसों जिनेन्द्र को चढ़ाई है।।६।।
सुमागहीं अमोल माल हाथ जोरि वानिये। जुरी तहां चुरासि जाति राव राज जानिये।।
अनेक और भूप लोग सेठ साहू को गने। कहालुं नाम वर्णिए सु देखते सभा बनें।।७।।
खण्डेलवाल, जैसवाल, अग्रवाल आइया। बघेरवाल, पोरवाल, देशवाल, छाइया।।
सहेलवाल, दिल्लीवाल, सेतवाल जातिके। बढ़ेलवाल पुष्पमाल श्री श्रीमाल पांतिके।।८।।
सु ओसवाल पल्लिवाल चूरुवाल चौसखा। पद्मावतीय पोरवाल परवार अठे सखा।।
गंगेरवाल बन्धुराल तोर्णवाल सोहिला। करिन्दवाल पल्लिवाल मेडवाल खोंहिला।।९।।
लमेंचू और मांहुरे महेसरी उदार हैं। सुगोलवार गोलपूर्व गोलहूँ सिघार हैं।।
बंधनौर मागधी विहारवाल गूजरा। सुस्वण्ड राग हाय और जानराज बूसरा।।१०।।
भुराल और सोरठ और मुराल चित्तोरिया। कपोल सोमराठ वर्महूँमड़ा नागौरिया।
सीराग होड़ भंडिया कनौजया अजोधिया। मिवाड़ मलवान और जोधड़ा समोधिया।।११।।
सुभट्टनेर रायबल नागरा रुधाकरा। सुकन्थ रारु जालरालु बाल भीक भाकरा।
परवारलाड़ चोड़ कोड़ गोड़ मोड़ मंभारा। सु खण्डिआत श्री खटाचतुर्थ पंचसंभरा।।१२।।
सरत्राकार भोजकार नरसिंह है पुरी। सु जम्बूवाल और क्षेत्रब्रह्म वश्य लौं जुरी।।
आई हैं चुरासी जाति जैनधर्म की घनी। सब विराज गोठियों जु इन्द्र की सभा बनी।।१३।।
सुमाल लेने को अनेक भूप लोग आवहीं। सुएक एक तैं सुमांग मालको बढ़ावहीं।।
कहें जु नाथ जोरि-जोरि नाथ माल दीजिए। मंगाय दउँ हेम रत्न सो भण्डार कीजिए।।१४।।
बघेरवाल वां कड़ा हजार वीस देत हैं। हजार दे पचास पर वार फैरि लेत हैं।
सु जैसवाल लाख देत माल लेत चोपसों। जु दिल्लीवाल दोय लाख देत हैं आगोपसों।।१५।।
सु अग्रवाल बोलिये जु माल मोहि दीजिए। दिनार देहुँ एक लक्ष सो गिनाय लीजिए।
खण्डेलवाल बोलियो जु दोय लाख देउंगो, सुबांटिके तमोल मैं जिनेन्द्र माल लेउंगो।।१६।।
असुभरी कहैं सुमेरि खान लेउ जाय कैं। सुवर्ण खानि देत हैं चित्तौड़िया बुलायके।।
अनेक भूप गाँव देत राय सों चदेरिका। खजाना खोल कोठरी सु देत हैं अमेरिका।।१७।।
सुगौड़वाल यों कहैं गयन्द बीस लीजिए। मंगाय देव हेमदन्त माल मोहि दीजिए।
परमारके तुरङ्ग साजि देत हैं बिना गिनें। लगाम जीन पाहुड़े जड़ाउ हेमके बने।।१८।।
कनौजिया कपूर देत गाड़िया भरायके। सुहीरा मोति लाल देत ओसवाल आयके।।
सु हूंमड़ा हंकार ही हमैं न माल देउगे। भराइये जहाज में कितेक काम लेउगे।।१९।।
कितेक लोग आयके खड़े थे हाथ जोरिके। कितेक भूप देखिके चले जु बाग मोरिके।
कितेक सूम यों कहैं जु कैसे लक्षि देत हौ। लुटाय माल आपनी सु फूलमाल लेत हौ।।२०।।
कई प्रवीन श्राविका जिनेन्द्र को बधावहीं। कई सुकण्ठ रागसों खड़ी जु माल गावहीं।
कई सु नृत्यकों करै लहै अनेक भावहीं। कई मृदङ्ग तालप सु अङ्गको फिरावहीं।।२१।।
कहैं गुरु उदारधी सु यों न माल पाइये।। कराइये जिनेन्द्र यज्ञ बिंबहू भराइये।
चलाइये जु संघजात संघही कहाइये। तबै अनेक पुण्यसों अमोल माल पाइये।।२२।।
संबोधि सर्व गोठिसो गुरु उतारके लई। बुलायके जिनेन्द्र माल संघराय को दई।
अनेक हर्षसों करैं जिनेन्द्र तिलक पाइये। सुमाल श्री जिनेन्द्र की विनोदीलाल गाइए।।२३।।
दोहा-
माल भर्ई भगवन्त की, पाई सिंघई नरन्दि। लालविनोदी उच्चरे, सबको जयति जिनन्द।।२४।।
माला श्री जिनराज की, पावैं पुण्य संयोग। यश प्रगटै कीरति बढ़ै, धन्य कहैं सब लोग।।२५।।
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