‘‘एक वृक्ष सात डालियाँ’’ पुस्तक पूज्य आर्यिकारत्न श्री अभयमती माताजी की मौलिक कृति है। इसमें रत्नत्रयरूपी एक कल्पवृक्ष बनाकर उसमें सात डालियाँ निकाली हैं जो कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत एवं परिग्रहपरिमाणव्रत रूप बताई है। एक दीनानाथ नामक लकड़हारे के माध्यम से विषय वस्तु को सुन्दर अलंकार रूप में प्रस्तुत किया है। दीनानाथ लकड़हारा प्रतिदिन जंगल में लकड़ी काटता और अपने परिवार का पालन पोषण करता था कि एक दिन उसे ऐसा वृक्ष दिखा जिसमें अजीब सी सुगंध आ रही थी उसने सोचा कि उस वृक्ष की लकड़ियाँ काटकर बेचेगा तो उसे ज्यादा लाभ होगा, वे चंदन से अधिक कीमत पर बिकेगी। पर उस वृक्ष को काटने के लिए उसने जैसे ही कुल्हाड़ी उठाई, उस वृक्ष ने उसे रोक दिया, कहा-ठहरो! मुझे काटने के पहले मेरी एक बात का जवाब दो। फिर वृक्ष ने उसे एक कहानी सुनाई और कहा, तुम इस कहानी के नायक की तरह योग्य हो तो मुझ पर चलाओ कुल्हाड़ी अन्यथा चोट तुम्हें उल्टी लगेगी। एक के बाद एक उस वृक्ष की सात डालियों ने भी दीननाथ को एक-एक कहानी सुनाई और अंत तक दीनानाथ उस वृक्ष को न काट सका। इस पुस्तक में पूज्य माताजी ने रत्नत्रयरूपी कल्पवृक्ष और दीनानाथ लकड़हारे के माध्यम से अनेक सुन्दर पौराणिक कथाओं को प्रस्तुत किया है। इसके अतिरिक्त और भी अनेक विषयों को जैसे-मनुष्य कौन है? जैन कौन है? सच्ची भक्ति, बुद्धि की कला, करनी का फल, सच्चाई का फल, सात पीढ़ी की कथा, णमोकार मंत्र का महात्म्य, व्यवहार एवं निश्चय, भाग्य एवं पुरुषार्थ आदि विभिन्न विषयों को उदाहरण, सूक्ति एवं कथाओं के माध्यम से सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है। जनसामान्य के लिए यह पुस्तक ज्ञानवर्धक एवं जीवनोपयोगी है। पूज्य माताजी ने अपनी प्रतिभा, बुद्धि का उपयोग करते हुए लोगों की रुचि के अनुसार यह पुस्तक लिखकर प्रदान की है इसे पढ़कर अपने जीवन में रत्नत्रय एवं पंचाणुव्रत को धारणकर मानव जीवन को सार्थक करें, यही मंगल कामना है।