प्राकृतिक चिकित्सा में मिट्टी का विभिन्न प्रकार से प्रयोग किया जाता है। मिट्टी का महत्व आदिकाल से चला आ रहा है। वास्तव में मिट्टी प्राकृतिक चिकित्सा का सबसे बड़ा माध्यम है। आयुर्वेद ग्रन्थों में भी मिट्टी की प्रशंसा की गई है यथा :
‘‘कर्दमो दाह—पित्तार्लिशोथध्न: शाीतल: सर:।’’
अर्थात् पानी में सानी हुई मिट्टी (कर्दम) ठण्ड देने वाली होती है, शौच साफ लाती है, जलन पित्त की पीड़ा एवं सूजन को दूर करती है।
‘‘कृष्ण मृत क्षत दाहास्त्रा प्रदरश्लेष्मपित्त नुत् ।।’’
अर्थात् काली मिट्टी घाव, दाह, रक्त विकार, प्रदर— (सफेद पानी) कफ एवं पित्त को मिटाती है। मिट्टी कई प्रकार के रोगों का उपचार करने में प्रयुक्त की जाती है। यह अतिसार, सिरदर्द , आंखों में दर्द, कब्ज, ज्वर, पेट दर्द, पेचिश, बवासीर, जोड़ों के दर्द, प्रदर, प्रमेह आदि रोगों में हितकारी है—
शरीर में दर्द होने पर:— शरीर में कहीं भी पेट, छाती, गला, कान, कनपटी, मूत्राशय, जिगर आदि में दर्द या सूजन होने पर मिट्टी को गीला करके रोेटी सी बनाकर रख देना चाहिए। इससे आशातीत लाभ होता है। इस बात का विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए कि मिट्टी ठीक दर्द वाले स्थान पर ही रखी जाए। रोगी की दशा के अनुसार २-४ घन्टे तक इस प्रकार की पुल्टिस बांधे रख सकते हैं। यदि लगातार रखने से मिट्टी गरम हो जाए तो उसे बदल देना चाहिए।
तेज ज्वर:— तेज ज्वर होने पर पेट एवं सिर पर मिट्टी बांधने से तेज बुखार एक दो घण्टे में कम हो जाता है।
जोड़ों का दर्द:— जोड़ों के दर्द पर मिट्टी लगाने से आराम मिलता है।
फोड़े—फुन्सी, घाव, जलने आदि पर हितकारी:— यदि घाव हो या शरीर का कोई हिस्सा जल गया हो तो सादी, चिकनी मिट्टी को गीली करके घाव पर रोटी सी बनाकर रख देनी चाहिए। यदि घाव गहरा हो तो घाव में मिट्टी लगाकर उस पर कपड़ा बांध देना चाहिए। इसे ‘पुल्टिस’ बांधना कहते हैं। इस से घाव तेजी से भरने लगता है। मिट्टी को बांधने से पहले बारीक छलनी से छान लें तो यथोचित होगा। छलनी से छानी हुई बारीक साफ मिट्टी को ठन्डे पानी में भिगोकर आटे की तरह गूंथकर मरहम सा गाढ़ा बना लेना चाहिए। तत्पश्चात् ही घाव आदि में भरकर पुल्टिस बांध देनी चाहिए।
चर्म रोगों में हितकारी :— चर्म रोगों में भी उपरोक्तानुसार मिट्टी की पुल्टिस दिन में दो बार दो—दो घण्टे तक बांधने से लाभ होता है। जलने पर भी मिट्टी बांधने से जलन कम हो जाती है। फोड़े—फुन्सियों, खुजली, दाद आदि सभी में मिट्टी बांधने से लाभ होता है।
गठिया एवं लकवा:— गठिया एवं लकवे में भी मिट्टी के उपचार में आशातीत लाभ मिलता है। इसमें रोगी को लिटाकर गर्म बालू से गर्दन तक ढांप देना चाहिए। प्रतिदिन दो—ढाई घण्टे तक इस उपचार को अपनाएं तो वांछित परिणाम प्राप्त होगा। गठिया एवं लकवे का यह उपचार प्राचीनकाल से प्रयुक्त किया जाता रहा है।
दाँत दर्द :— दांत का दर्द हो तो बाहर दुखती जगह पर गाल या जबड़े पर मिट्टी की पुल्टिस बांधनी चाहिए। इस प्रकार मिट्टी एक प्रकार से मानव के लिए प्रकृति की अनुपम देन है। मिट्टी में शरीर में गर्मी उत्पन्न करने वाले रोगों को शान्त करने की अपूर्ण क्षमता है। शरीर को निरोगी एवं स्वस्थ रखने के लिए मिट्टी से स्नान करना बेहद बढ़िया है। मिट्टी को विषहरण रखने की शक्ति से परिपूर्ण माना गया है।
जिनेन्दु, पाक्षिक ७ सितंबर, २०१४