(श्री ज्ञानमती माताजी के प्रवचन)
भव्यात्माओं! जिस प्रकार से मकान का मूल आधार नींव है और वृक्ष का मूल आधार पाताल तक गई हुई उसकी जड़े हैं उसी प्रकार से धर्म का मूल आधार सम्यग्दर्शन है। क्योंकि सम्यग्दर्शन के बिना धर्मरूपी मकान अथवा धर्मरूपी वृक्ष ठहर नहीं सकता है। जीवरक्षारूप आत्मा का परिणाम दया है, वह दया ही धर्म का लक्षण है।