एक सिंहनी का प्रसव काल निकट था। एक बार वह अपने शिकार की खोज में बाहर निकली। उसने दूर से भेड़ों के एक झुण्ड को चरते देखा। उसने उन पर आक्रमण करने के लिए ज्योंही छलांग लगायी, त्योंही उसके प्राणपखेरु उड़ गये और उससे एक मातृहीन सिंह शावक ने जन्म लिया। भेडें उस सिंह शावक की देखभाल करने लगीं और वह भेड़ों के बच्चों के साथ—साथ बड़ा होने लगा, उन्हीं की भांति घास—पात खाकर रहने लगा और उन्हीं की भांति ‘में में’ करना सीख गया। कुछ समय बाद यद्यपि वह एक पूर्ण विकसित शक्तिशाली सिंह हो गया, तो भी वह अपने को भेड़ ही समझता था। इसी प्रकार दिन बीतते गये कि एक दिन एक बड़ा भारी सिंह शिकार के लिए उधर आ निकला; उसे यह देख बड़ा आश्चर्य हुआ कि भेड़ों के बीच एक सिंह भी है और वह भेड़ों की भांति डरकर भागा जा रहा है। तब सिंह उसे यह समझाने के लिए उसकी ओर आगे बढ़ा कि तू सिंह है, भेड़ नहीं। पर ज्योंही वह आगे बढ़ा, त्योंही भेड़ों का झुण्ड और उसके साथ—साथ वह भेड़—सिंह भी भागने लगा। खैर उसने उस भेड़ सिहं को उसके अपने यथार्थ स्वरूप को समझा देने का संकल्प नहीं छोड़ा। वह देखने लगा कि वह भेड़—सिंह कहां रहता है, क्या करता है। एक दिन उसने देखा कि वह एक जगह पड़ा सो रहा है। देखते ही वह छलांग मारकर उसके पास जा पहुँचा और बोला, ‘‘ अरे तू भेड़ों के साथ रहकर अपना स्वभाव कैसे भूल गया ? तू भेड़ नहीं है तू तो सिंह है।’’ भेड़ सिंह बोल उठा, ‘‘ क्या कह रहे हो ? मैं तो भेड़ हूँ, सिंह कैसे हो सकता हूँ ?’’ उसे किसी प्रकार विश्वास नहीं हुआ कि वह सिंह है, और वह भेड़ों की भांति मिमियाने लगा।
तब सिंह उसे उठाकर एक सरोवर के किनारे ले गया और बोला, ‘‘ यह देख, अपना प्रतिबिम्ब, और यह देख मेरा प्रतिबिम्ब।’’ तब वह भेड़—सिंह उन दोनों प्रतिबिम्बों की तुलना करने लगा। वह एक बार सिंह की और फिर अपने प्रतिबिम्ब की ओर ध्यान से देखने लगा । शीघ्र ही उसकी समझ में आ गया कि ‘सचमुच मैं तो सिंह ही हूँ।’ तब वह सिंह गर्जना करने लगा और उसका भेड़ों जैसा मिमियाना न जाने कहाँ चला गया। इसी प्रकार तुम सब सिंह हो— तुम आत्मा हो, शुद्ध अनन्त और पूर्ण हो। विश्व की महाशक्ति तुम्हारे भीतर है। ‘ हे सखे’ तुम क्यों रोते हो ? जन्म —मरण तुम्हारा भी नहीं है और मेरा भी नहीं। क्यों रोते हो, तुम्हें रोग—शोक कुछ भी नहीं है : तुम तो अनन्त आकाश के समान हो, उस पर नाना प्रकार के मेघ आते हैं। और कुछ देर खेल कर न जाने कहाँ लुप्त हो जाते हैं, पर वह आकाश जैसा पहले नीला था, वैसा ही नीला रह जाता है। इसी प्रकार के ज्ञान का अभ्यास करना होगा।