धन दौलत में नहीं, परिश्रम व सृजन में ही निहित है वास्तविक प्रसन्नता
हम सब अपने जीवन को अपार खुशियों से भरना चाहते हैं। इसके लिए खुशहाली व समृद्धि की कामना करते हैं। खुशहाल होने के लिए जी तोड़ परिश्रम भी करते हैं। समृद्धि पाने के लिए कई बार हम अपने स्वास्थ्य से भी समझौता कर लेते हैं तो कई बार नियम कानून व नैतिक मूल्यों से भी, लेकिन समृद्धि के बावजूद खुशी है कि दस्तक देने का नाम नहीं लेती।यदि वास्तव में खुशी का संबंध आर्थिक समृद्धि से होता तो हम सब येन केन प्रकारेण आर्थिक समृद्धि प्राप्त कर लेते । प्रसन्नता पाने के लिए दूसरों की सम्पत्ति पर कब्जा कर लेते अथवा चोरी—डकैती द्वारा धन एकत्र कर लेते लेकिन धन—दौलत से प्रसन्नता का दूर—दूर तक का कोई नाता नहीं। पैसों से नर्म — मुलायम बिस्तर खरीदा जा सकता है, नींद नहीं।
पैसों से आलीशान मकान बनवाया या खरीदा जा सकता है, घर नहीं बनाया जा सकता। पैसों से कीमती कलाकृतियाँ क्रय की जा सकती है, कलाकार नहीं बना जा सकता । पैसों से ऐशो—आराम का हर सामान खरीदा जा सकता है, खुशी नहीं। प्रसन्नता का संबंध तो परिश्रम से है। जब हम जी तोड़ मेहनत करते हैं और उसके बदले कुछ पाते हैं तभी प्रसन्नता मिलती है। बाजार जाकर वहाँ से फूल खरीद लाने अथवा माली से गमलों में फूलों के पौधे लगवा लेने में वैसी खुशी कहाँ जो स्वयं परिश्रम करके फूल उगाने में मिल सकती है। वास्तविक प्रसन्नता तो मिट्टी को कूट—पीटकर उसमें बीज बोने, पौधे उगने पर उनकी देखभाल करने, उनमें खाद—पानी देने व बड़े होने पर फूल—फल प्राप्त करने में है। और उससे भी अधिक प्रसन्नता तो प्राप्त फल फूलों को दूसरों को भेंट कर देने में है। आज भी ग्रामीण अंचल के लोग फसल आने पर सबसे पहले उनका कुछ भाग अपने पड़ोसियों, मित्रों अथवा अन्य किसी जरूरतमंद को दान में दे देते हैं। कुछ लोग अच्छा लजीज भोजन करके खुशी पाना चाहते हैं लेकिन भोजन में खुशी कहाँ यदि वह ठीक से न किया जाए। ठीक से भोजन करने का तात्पर्य यह है कि भोजन सात्त्विक हो तथा आजीविका सम्यक। भूख लगने पर ही भोजन किया जाए। कहते हैं कि भूख न देखें बासी भात।
विद्यासागर नौटियाल की कहानी ‘‘माटावाली’’ याद आ रही है। माटी बेचने वाली गरीब मजदूर बुढ़िया रूखी सूखी बासी रोटी मिलने पर भूख की महिमा का गुणगान करते हुए कहती है कि भूख मीठी कि भोजन मीठा। ऐसी होती है भूख की महिमा। प्रसन्नता के लिए कुछ न कुछ काम करना, थकान जरूरी है। बागवानी कीजिए या घर की सफाई, पसीना निकलना और थकना जरूरी है। थकान के बिना न तो आराम का ही मजा है और न अच्छी भूख और भोजन का ही और न गहरी नींद ही संभव है। थककर चूर हो जाने पर भूख लगने में जोरदार भूख लगने पर भोजन करने में और इन सबके परिणामस्वरूप गहरी नींद सोने में जो आनंद है, वह अन्य किसी भी प्रकार की भौतिक सुख—समृद्धि में नहीं मिल सकता। ऐसा करेंगे तो आजीविका भी सम्यक होगी और सम्यक आजीविका से बड़ी प्रसन्नता की बात हो ही नहीं सकती।