आज हर व्यक्ति चिंताओं में घिरा है। नर्म बिस्तर पर लेटकर भी उसे नींद नहीं आती क्योंकि उसका दिमाग आज के बनावटी जीवन और भौतिक वस्तुओं के पीछे अंधी दौड़ , छल कपट, कूटनीति व चालबाजी में ग्रस्त रहता है। बुढ़ापा, बीमारी और असुरक्षा का भय अलग उसे घेरे रहता है। नींद न आने से वह और परेशान हो उठता है। इस तरह यह एक दुष्चक्र बन जाता है। अनिद्रा की बीमारी का उपचार दवा नहीं वरन हमें इसकी जड़ देखनी चाहिए कि आखिर नींद जो एक नैसर्गिक प्रक्रिया है, क्यूं नहीं आती । दरअसल नींद प्रकृति का व्यक्ति के दिनभर के कार्यकलापों से क्षीण होती बैटरी को रिचार्ज करने का एक बढ़िया सिस्टम है। प्रकृति के नियमों के साथ छेड़छाड़ इंसान के हक में फायदेमंद नहीं। कुछ बातों को अगर ध्यान में रखा जाये तो काफी हद तक इस रोग से बचा जा सकता है। विस्तर का सही होना बहुत जरूरी है। ऊंचे तकिये से गर्दन का दर्द तथा स्पॉडिलाइटिस हो सकता है। बगैर तकिये सोया जाए तो अच्छा है या फिर नर्म और नीचा तकिया लगायें। बिस्तर पर अपनी सुविधानुसार लेटें मगर हाथ—पैर बिल्कुल रिलेक्स रहें। दिन की परेशानी, दुख—तकलीफ, आशंकाएं और नकारात्मक विचारों को त्याग दें। कभी कोई प्राकृतिक सौंदर्य वाली जगह गये हों तो उसकी याद ताजा कर लें या जीवन के कोई हसीन लम्हें या किसी आत्मीय का मधुर वार्तालाप याद करें। किसी खूबसूरत, गजल, कविता, गीत की पंक्तियां दोहराई जा सकती हैं। कोई धार्मिक श्लोक, हनुमान चालीसा या कोई ऐसी ही ईश्वरीय प्रार्थना दोहराई जा सकती है।और कुछ न बने तो उल्टी या सीधी गिनती ही गिन लें, फिर देखिए चमत्कार, पलक झपकते में पलके झपक जाएंगी। शयन से पूर्व कोई गर्म पेय खासकर सर्दियों में लेना बहुत लाभप्रद है। जो लोग दूध पीने के आदी हैं, वे दूध ले सकते हैं नहीं तो हल्की चाय या कॉफी लें पर कई लोगों की नींद चाय या कॉफी से गायब हो जाती है।
आहार पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। संतुलित आहार लिया जाना चाहिए। नाश्ता डट कर करें लेकिन रात्रि का भोजन हमेशा हल्का रखें। भूख से कुछ कम ही खायें। जहां अत्यधिक भोजन के नुकसान हैं वहां एकदम खाली पेट भी नहीं आयेगी। खाना खाते भोजन जहर बन जाता है और सोने के समय में कम से कम दो घंटे का अंतर होना चाहिए। बहुत शोर—शराबे, तेज रोशनी में भी नींद को बैर है। नाइट लैम्प जलाकर सोयें। रोशनी जीरो वाट के बल्ब के ऊपर शेड लगा हो ताकि आंखों पर सीधे चौंध न पड़े। कमरे में थोड़ी बहुत ताजी हवा की भी गुंजाइश होनी चाहिए। दमघोंटू वातावरण और हवा की कमी से भी घबराहट पैदा होती है और ऐसे में नींद आना असंभव जान पड़ता है। शारीरिक श्रम करने वालों को अनिद्रा का रोग कभी नहीं होता। इंसान जब शारीरिक रूप से बुरीतरह थका होता है तब अपना सिर ज्यों ही तकिए पर रखता है वह नींद की गिरफ्त में होता है लेकिन मानसिक कार्य करने वाले दिनभर कुर्सी तोड़ने वालों के साथ अक्सर नींद न आने की समस्या रहती है। वर्जिश के अभाव में मांसपेशियां तनी रहेंगी। दिमाग तनावों से घिरा होगा। हाजमा ठीक न होगा। इंसान आलसी और काहिल बन जाएगा। ऐसे में नींद न आये तो नींद का क्या कसूर । महानगरों में छोटे—छोटे मकान होते है जहां— ज्यादा चलने फिरने की भी गुंजाइश नहीं होती । ऐसे में स्पॉट जॉगिंग यानी एक ही जगह खड़े रहकर लेफ्ट—राइट करते रहना— की जा सकती है। वर्जिश व्यायाम के लिए कोई भी वक्त सुविधानुसार चुना जा सकता है सिर्फ खाना खाने के एकदम बाद को छोड़कर । कई लोगों को पढ़ते हुए बड़ी अच्छी नींद आ जाती है। यह एक तरह से अच्छी ही आदत है। बस ध्यान ग्रह रहे कि सोने से पहले जो साहित्य पढ़ा जाए, वह जासूसी या हॉरर वाली किताब न हो। इसी तरह कई लोग संगीत लहरी में झूलते हुए मीठी—मीठी नींद सोते हैं। यह भी ठीक है। ध्यान रहे अगर नींद आ रही है, आप करवट पर करवट बदले जा रहे हैं तो तुरंत उठ जाइए। अपनी मनपसंद का कोई आधा अधूरा काम जो रात्रि को संभव है, लेकर बैठ जाइए। खत्म होते न होते आप नींद के आगोश में होंगे। ख्याल रहे सोने का समय निर्धारित होना चाहिए। जल्दी सोना, जल्दी उठना इसी से इंसान स्वस्थ और बुद्धिमान रहता है और धन सम्पदा प्राप्त कर सकता है।