आर्य खंड में भारत देश ही एक ऐसा देश है जो पावन संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। पावन संस्कृति का प्राणघाट है— मर्यादाओं का पालन। हमारे देश का व्यवहार कुशल आचरण मर्यादाए हर देश के लिए गौरव का किरीट बनी हुई थी विदेशो से व्यक्ति भारत के आचरण को देखने के लिए आता था वह कहता था।
हमारे यहाँ बासन है, राशन है पर आचरण नहीं हैं, इस देश में संयुक्त परिवार में रहते हुए भी सारी मान मर्यादाओं का पूर्ण रीति से पालन होता था, घर—घर में ऋतु धर्म (श्.ण्) की अनुलघनीय मर्यादाएँ थी, बंधन था, हर घर में स्वाध्याय सामूहिक होता था कथा पुराण चरित्र के माध्यम से महापुरूषों एवं सतियों के जीवन के क्रिया कलाप एवं कष्ट सहिष्णुता आदि के बारे में जानकारियाँ मिलती थी जिन्हें मानव अपने जीवन में उतार कर मुक्ति का पथिक बन जाता था।
घर—घर में अनुष्ठानों की ज्योति जली रहती थी, घर—घर में देवस्थान बने थे (श्.ण्) की एक छोटी सी भूल भी महान अनर्थकारी मानी जाती थी अत: एवं सभी गृहणी सावधानी बरतती थी। कन्या की प्रमुख शिक्षिका का निर्वाह उसकी माँ करती थी मौन से एक जगह बैठना और छुआछूत से अलग रहना यह आराधना तीन दिन तक माँ के द्वारा कराई जाती थी।
संयुक्त कुटुम्ब की सौहार्द भावना से भाभी और सास ननद समयानुसार एक—दूसरे का काम संभाल लेती थी लेकिन आज के समय में एकाकीपन की जिन्दगी में ढ़ेर सारे पाप पनपते जा रहे हैं ऋतु धर्म वाली महिला स्वच्छन्द होकर के जहाँ—तहाँ विचरण कर रही है और तो और अपने हाथों से भोजन बनाकर पति और बच्चो को खिलाती है कपड़ो को स्वयं धोकर रेसे में ही उठा लेती हैं उन्हीं वस्त्रों को पहन कर देव बन्दन, गुरू चरण स्पर्श सभी कार्य किए जाते है।
उन्हें यह पता नहीं हैं की इस पाप का परिणाम कितना भंयकर होगा, दुनिया भर के रोग प्रवेश पा जायेंगे पेट में अल्सर से लेकर कैंसर तक की असाध्य बीमारियाँ शरीर के अन्दर बिना पूछे ही प्रवेश कर लेगीं घर से सम्पत्ती का विचारन करने से प्रति समय मन चंचल और उदास—उदास सा रहेगा यह तो अत्यल्प फल यहाँ इसी भाव में प्राप्त होगा और अगले भवों में जन्मों जन्मान्तरों में नरक निगोद की सीट बिना डोनेशन की मिलेगी वह अलग।
यदि आप यह सब चाहते है या चाहती हैं कि दरिद्रता का निवास प्रवास हमारे घर पर हो रही बीमारियों की आव भगत हमें करनी पड़े पापवृत्ती का सम्मान हमारे हाथों से हो तो आप जैसा चाहें वैसा कर सकती हैं, यदि नहीं तो आप पूर्व संस्कृती प्राणाधर मर्यादाओं का पालन करके सती शिरोमणी या सर्वोच्च गृहिणी के पद को प्राप्त करके स्वर्गों के विमान में भी यात्रा कर सकती हैं।
हमारा उद्देश्य आपको ऊपर उठाने का है अभी कुछ भी नहीं बिगड़ा है सुबह का भूला यदि शाम को घर आ जाये तो भूला नहीं कहा जाता, अपनी आत्मा को दुर्गतियों में गिराने से बचाओ, और स्वयं संस्कारों से संस्कारित होकर अपनी संतति को भी सुसंस्कारित बनायें।