राष्ट्रीय झंडा किसी भी देश के मान—सम्मान का सर्वोच्च प्रतीक चिन्ह होता है। राष्ट्रीय ध्वज में देश की राजनीति, सामाजिक एवं व्यक्तियों का इतिहास छिपा होता है । हमारे देश का राष्ट्रीय झंडा महज एक तीन रंगों के कपड़े का एक टुकड़ा नहीं है। वह इस महान देश के नागरिकों देश की संस्कृति, वतनपरस्ती तथा स्मिता का केद्र बिंदु हैं। इस देश का इतिहास गवाह है कि राष्ट्रीय झंड़े के सम्मान की खातिर देशभक्तों ने हंसते—हंसते अपने प्राणों की आहुति दे दी। हमारा वर्तमान राष्ट्रीय तिरंगा झंडा स्वाधीनता संग्राम के उन अमर शहीदों की अनमोल यादगार है जिन्होंने अपने देश की आजादी के लिए संघर्ष करते हुए अपना सम्पूर्ण बहुमूल्य जीवन देश को समर्पित कर दिया। हमारे देश के राष्ट्रीय झंडे की कहानी बहुत पुरानी है। राष्ट्रीय आंदोलन के समय से इसे तिरंगे झंडे के नाम से जाना जाता है। सन् १८५७ में हमारा राष्ट्रीय ध्वज हरे रंग का था। और उस पर रूपहले रंग का सूरज बना हुआ था। सन् १८८५ में हमारे झंड़े में कुछ परिवर्तन हुआ। उसमें तीन रंगों का प्रयोग हुआ।१९०६ तथा १९०७ में फहराये गये ध्वज को लेकर कुछ इतिहासकारों में मत—भिन्नता थी। सन् १९१६ में होमरूल आंदोलन के समय कांग्रेसी नेता ऐनी बेसेण्ट ने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का दिया गया झंड़ा फहराया जिसमें एक के बाद एक पांच लाल रंग और चार हरे रंग की पट्टियां थी तथा बांयी ओर कोने में यूनियन जैक था। उसके सामने दायें कोने पर अर्धचन्द्र और एक तारा भी था । अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सन् १९२१ ई. में विजयवाड़ा में एक बैठक हुई जिसमें महात्मा गांधी ने देश को एक नया झंडा दिया। उस झंडे के बीच में चरखे का चित्र अंकित था ।
यह तिरंगा इतना लोकप्रिय हुआ कि हर समारोह में फहराया जाने लगा। सन् १९३१ में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में राष्ट्रीय ध्वज निश्चित करने के लिए एक समिति गठित की गई जिससे पं. जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सरदार बल्लभ भाई पटेल, डॉ. हार्डीकर शामिल थे। इस समिति ने सर्वसम्मति से यह राय दी थी कि राष्ट्रीय झंडा चौरस और एक ही रंग केसरिया का हो तथा उस पर चरखे का चिन्ह अंकित रहे लेकिन अगस्त १९३१ में राष्ट्रीय कांग्रेस ने जो झंडा अपनाया उसमें केसरिया, सफेदऔर हरी तीन पट्टियां तथा चरखे का चिन्ह अंकित था। आजादी के २४ दिन पूर्व २२ जुलाई १९४७ को हमारा राष्ट्रीय झंडा भारतीय संविधान द्वारा स्वतंत्र भारत के लिए स्वीकृत किया गया। इस झंडे की लम्बाई–चौड़ाई तथा रंग तो वही रहा, सिर्फ सफेद पट्टी में चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को अंकित कर दिया गया। इस समय अपनाये गये तिरंगे झंडे के रंगों की व्याख्या में कहा गया कि कैसरिया साहस, बलिदान और त्याग का, सफेदशांति, सत्य और प्रेम का तथा हरा , वीरता और हमारे देश की हरियाली का प्रतीक है। चरखे को जनता की आशाओं का प्रतीक कहा गया। अशोक चक्र के संबंध में कहा गया कि यह जीवन को गति प्रदान करने का प्रतीक है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारा राष्ट्रीय झंडा समय के अनुरूप बदलता रहा तथा विभिन्न समय में इसकी विभिन्न व्याख्या होती रही। १५ अगस्त १९४७ को इसी तिरंगे झंडे को फहराकर भारतवासियों ने राष्ट्र के नवनिर्माण का संकल्प लिया तथा राष्ट्रीय तिरंगे की रक्षा के प्राणोत्सर्ग की कसमे खाई। उसी दिन से तिरंगे का ध्वजारोहण राष्ट्रीय पुनीत पर्व बन गया।