मन्त्र का जाप करने के लिए सर्वप्रथम आठ प्रकार की शद्धियों का होना आवश्यक है।
१. द्रव्य शुद्धि : पंचेन्द्रिय तथा मन को वश कर कषाय और परिग्रह का शक्ति के अनुसार त्याग कर कोमल और दयालु चित्त हो जाप करना। यहाँ द्रव्यशुद्धि का अभिप्राय पात्र की अन्तरंग शुद्धि से है। जाप करने वाले को यथा शक्ति अपने विकारों को हटाकर ही जाप करना चाहिए। अन्तरंग से काम, क्रोध, लोभ, मोह, मान, माया आदि विकारों को हटाना आवश्यक है।
२. क्षेत्र शुद्धि : निराकुल स्थान, जहाँ हल्ला-गुल्ला न हो तथा डाँस, मच्छर आदि बाधक जन्तु न हों। चित्त में क्षोभ उत्पन्न करने वाले उपद्रव एवं शीत-उष्ण की बाधा न हो, ऐसा एकान्त निर्जन स्थान जाप करने के लिए उत्तम है। घर के किसी एकान्त प्रदेश में, जहाँ अन्य किसी प्रकार की बाधा न हो और पूर्ण शान्ति रह सके, उस स्थान पर भी जाप किया जा सकता है।
३. समय शुद्धि : प्रात: मध्याह्नन और संध्या समय कम से कम ४५ मिनट तक लगातार जाप करना चाहिए। जाप करते समय निश्चित रहना एवं निराकुल होना परम आवश्यक है।
४. आसन शुद्धि : काष्ठा, शिला, भूमि, चटाई या शीतल पट्टी पर पूर्वदिशा या उत्तर दिशा की ओर मूंह करके पद्यासन, खड्गासन या अर्धपद्मासन होकर क्षेत्र तथा काल का प्रमाण करके मौनपूर्वक इस मन्त्र का जाप करना चाहिए।
५. विनय शुद्धि : जिस आसन पर बैठकर जाप करना हो, उस आसन को सावधानीपूर्वक ईर्यापथ शुद्धि के साथ साफ करना चाहिए तथा जाप करने के लिए नम्रता पूर्वक भीतर का अनुराग भी रहना आवश्यक है। जब तक जाप करने के लिए भीतर का उत्साह नहीं होगा, तब तक सच्चे मन से जाप नहीं किया जा सकता।
६. मन: शुद्धि : विचारों की गन्दगी त्याग कर, मन को एकाग्र करना, चंचल मन इधर-उधर न भटकने पाये इसकी चेष्ठा करना, मन को पूर्णतया पवित्र बनाने का प्रयास करना ही इस शुद्धि में अभिप्रेत है।
७. वचन शुद्धि : धीरे-धीरे साम्यभाव-पूर्वक इस मन्त्र का शुद्ध जाप करना अर्थात् उच्चारण करने में अशुद्धि न होने पाये तथा उच्चारण मन-मन में ही होना चाहिए।
८. काय शुद्धि : शौचादि शंकाओं से निवृत होकर यत्नाचारपूर्वक शरीर शुद्ध करके हलन-चलन क्रिया से रहित जाप करना चाहिए। जाप के समय शारीरिक शुद्धि का भी ध्यान रखना चाहिए।
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जाप करने की विविधाँ :- कमल जाप्य, हस्तांगुलि जाप्य और माला जाप्य
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कमल जाप विधि :- अपने हृदय में आठ पाँखुडी के एक श्वेत कमल विचार करें। उसकी प्रत्येक पाँखुडी पर पीतवर्ण के बारह-बारह बिन्दुओं की कल्पना करें तथा मध्य के गोलवृत-कर्णिका में बारह बिन्ददुओं का चिन्तन करें। इन १०८ बिन्दुओं पर एक-एक मन्त्र का जाप करते हुए १०८ बार इस मन्त्र का जाप करें। कमल की आकृति निम्न प्रकार चिन्तन की जायेगी।
हस्तांगुलि जाप :- अपने हाथ की अंगुलियों पर जाप करने की प्रक्रिया यह है कि मध्यमा-बीच की अँगुली के बीच वाले पौरूये पर इस मन्त्र को पढ़ें, फिर उस अँगुली के ऊपरी पौरूये पर, फिर तर्जनी-अँगूठे के पास वाली अँगुली के ऊपरी पोरूये पर मन्त्र जाप करें। फिर उसी अँगुली के बीच पोरूये पर मन्त्र पढ़ें, फिर नीचे के पोरूये पर जाप करें। अनन्तर बीच की अँगुली के निचले पोरूये पर फिर अनामिका, सबसे छोटी अंगुली के पास वाली अंगुली के निचले पौरूये पर फिर बीच तथा ऊपर के पोरूये पर क्रम से जाप करें। इस प्रकार पुन: बीच की अँगुली के बीच के पोरूये से जाप आरम्भ करें। इस तरह १२ बार जपने से १०८ बार में पूरा एक जाप होता है।
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अँगुलियों के नाम
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अँगूठे को अँगुष्ठ कहते हैं।
अँगूठे के साथ की अँगुली को तर्जनी कहते हैं।
तीसरी बीच की अँगुली को मध्यता कहते हैं।
चौथी यानि मध्यमा के पास की अँगुली (अँगुष्ठ से चौथी) को अनामिका कहते हैं।
पाँचवी सबसे छोटी अंगुली को कनिष्ठा कहते हैं।
जाप्य विधी में मोक्ष तथा धर्म के वास्ते अँगुष्ठ के साथ तर्जनी से, शान्ति के लिए मध्यमा तथा सब कार्यों की सिाqद्ध के लिए अनामिका अँगुली से जाप करें।
‘‘कनिशष्ठा सर्व सिध्द्यार्थ एतत् स्याज्जाप्य लक्षणम् ।
असंख्यातं च यज्जप्तं तत् सर्व निष्फलं भवेत् ।।’’
कनिष्ठा सर्व सिद्धिन के वास्ते श्रेष्ठ है, ये जाप्य के लक्षण जाने बिना तथा मर्यादा से कम या अधिक किया हुआ सब जाप्य निष्फल होता है, अर्थात् किसी मन्त्र का २१ बार जाप्य लिखा है, तो वहाँ २१ से कम या अधिक जाप्य नहीं करना, ऐसा करने से वह निष्फल होता है। मन्त्र सिद्ध नहीं होता।
अँगुली के अग्र भाग से तथा माला के ऊपर जो तीन दाने मेरू के हैं, उनको उल्लंघन करके व्याकुल चित्त से जो जाप किया जाता है वह सब निष्फल होता है।
माला जाप – एक सौ आठ दाने की माला द्वारा जाप करें।
इन तीनों जाप की विधियों में उत्तम कमल-जाप विधि है। इसमें उपयोग अधिक स्थिर रहता है तथा कर्म-बन्धन को क्षीण करने के लिए यही जापविधि अधिक सहायक है। सरल विधि माला जाप कर लेना है।
सब कार्यो में पाँचों वर्णों की माला श्रेष्ठ है, परन्तु दुष्टों को डराने में तथा स्तम्भन करने व कीलने में कठोर (सख्त) वस्तु के मणियों की माला से जाप करें।
जाप करने के पश्चात् भगवान का दर्शन करना चाहिए। बताया गया है —
अर्थात् प्रात: काल के जाप के पश्चात् चैत्यालय में जाकर सब तरह के मंगल करने वाले, पापों को क्षय करने वाले सातिशय पुण्य के कारण एवं सुरासुरों द्वारा वन्दनीय श्री जिनेन्द्र भगवान् के दर्शन करना चाहिए।
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माला में १०८ मणिका का हेतु
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प्रतिदिन व्यक्ति १०८ प्रकार के पाप करता है, अत: १०८ बार मन्त्र का जाप करने से उस पाप का नाश होता है। आरभ्य, समारभ्य, संरभ्य, इन तीनों का मन, वचन, काय से गुणा किया तो 3×3=9 हुआ। इनको कृत, कारित, अनुमोदित और कषायों से गुणा किया तो 9x3x4=108 । बीच वाले गोलवृत्त में १२ बिन्द हैं और आठ दलों में से प्रत्येक में बारह-बारह बिन्दु हैं। इस प्रकार कुल 12×9=108 बिन्दुओं पर १०८ बार यह मन्त्र पढ़ा जाता है।
जाप तीन प्रकार का होता है।
मानसिक, वाचनिक (उपांशु) और कायिक।
मानसिक जाप – मन में मन्त्र का जप करना, यह कार्य सिद्धि के लिए होता है।
वाचनिक जाप – उच्च स्वर में मन्त्र पढ़ना, यह पुत्र प्राप्ति के लिए होता है।
कायिक जाप – बिना बोले मन्त्र पढ़ना, जिसमें होंठ हिलते रहें। यह धन प्राप्ति के लिए होता है।
इन तीनों में मानसिक जाप श्रेष्ठ है। जाप उंगलियों पर या माला द्वारा करना चाहिए। माला सूत, स्फिटिक, सोने, चाँदी या मोती आदि की हो।
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आसन विधान
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बाँस की चटाई पर बैठकर जाप करने से दारिद्रय, पाषाण पर बैठकर जाप करने से व्याधि, भूमि पर बैठकर जाप करने से दु:ख, पट्टे पर बैठकर जाप करने से दुर्भाग्य तथा घास की चटाई पर बैठकर जाप करने से भ्रम हो जाता है, कथरी पर बैठकर जाप करने से मन चंचल होता है, चमडे पर बैठकर जाप करने से ज्ञान नष्ट हो जाता है, कंबल पर बैठकर जाप करने से मान भंग हो जाता है।
नीले रंग के वस्त पहनकर जाप करने से बहुत दु:ख होता है। हरे रंग के वस्त पहनकर जाप करने से मान भंग हो जाता है। श्वेत वस्त पहनकर जाप करने से यश की वृद्धि होती है। पीले रंग के वस्त्र पहनकर जाप करने से हर्ष बढता है। ध्यान में लाल रंग के वस्त्र श्रेष्ठ हैं। सर्व धर्मकार्य सिद्ध करने के लिए दर्भासन (डाब का आसन) उत्तम है।
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जाप हेतु उपयुक्त स्थान
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गृहे जपफलं प्रोत्तं वने शत गुणं भवेत्, पुण्यस्थाने तथारण्ये सहस्त्र गुणितं मतम् ।
पर्वते दश सहस्त्र च नद्यों लक्ष सुदाहतम्,कोटि देवालये प्राहुरनन्तं जिन सान्निधौ ।।
घर में जाप का फल होता है, उससे सौ गुणा फल वन में जाप करने से होता है। पुण्य क्षेत्र तथा जंगल में जाप करने से हजार गुणा फल होता है। पर्वत् पर जाप करने से दस हजार गुणा, नदी के किनारे जाप करने से लाख गुणा, देवालय (मन्दिर) में जाप करने से करोड़ गुणा और भगवान के समीप जाप करने से अनन्त गुणा फल मिला है।
दुष्ट या व्यंतर देवों के उपद्रव दूर करने, स्तम्भन विधि हेतु, रोग शान्ति के लिए तथा पुत्र प्राप्ति के लिए मोती की माला या कमल बीज की माला से जाप करना चाहिए। शत्रु उच्चाटन के लिए रुद्राक्ष की माला, सर्व कर्म के लिए या सर्व कार्य सिद्धि के लिए पंच वर्ण के पुष्पों से जाप करना चाहिए।
हाथ की अंगुलियों पर जाप करने से दस गुणा, आँवले की माला पर जाप करने से सहस्र गुण, लौंग की माला से पाँच हजार गुणा, स्फटिक की माला से दस हजार गुणा, मोतियों की माला से लाख गुणा, कमल के बीज की माला से दस लाख गुणा, सोने की माला से जाप करने से करोड़ गुणा फल मिलता है। माला के साथ भाव शुद्धि विशेष होनी चाहिए।
विश्व शान्ति के लिए आठ करोड़ आठ लाख आठ हजार आठ सौ आठ जाप करें। कम से कम सात लाख जाप करें कर जाप नियमबद्ध होकर निरन्तर करें, सूतक पातक में भी छोडें नहीं। विश्व शान्ति जाप के लिए दिनों का प्रमाण कर देना चाहिए।
पुत्र प्राप्ति, नवग्रह शान्ति, रोग निवारण आदि कार्यों के लिए एक लाख जाप करें। आत्मिक शान्ति के लिए सदा जाप करें, दिनों को कोई नियम नहीं है, स्त्रियों को रजस्वला होने पर भी जाप करते रहना चाहिए, स्नान करने के पश्चात् मन्त्र का जाप मन में करें, जोर से नहीं बोलें और माला भी काम में न लें।
जाप पूर्ण होने पर भगवान का अभिषेक करके यथाशक्ति दान पुण्य करें।