नई दिल्ली।तनाव , चिड़चिडापन, आत्महत्या का ख्याल आना या फिर मस्तिष्क से जुड़ी कई बीमारियों का इलाज दवाओं से नहीं , बल्कि आधुनिक तकनीक से कुछ दिनों में संभव है। एम्स की ब्रेन लेब में ऐसी ही कुछ नई तकनीकों का इस्तेमाल करके अब तक २०० मानसिक रोगियों को ठीक किया जा चुका है। नई तकनीक की मदद से दो से तीन सिटिंग में मनोरोगी को ठीक किया जा सकता है। एम्स के मनोचिकित्सा विभाग के एसोसिएट प्रोपेफेसर डॉ. नंद कुमार ने बताया कि मानसिक रोगों में अब तक दी जाने वाली दवाएं मरीज को कुछ समय तक तो फायदा देती हैं। लेकिन अधिकांश मरीज दवाओं के सहारे अधिक दिन तक नहीं रहना चाहते। ऐसे मरीजों के लिए डिफाइब्रेशन या फिर मैगनेटिक तरंगों के इलाज को बेहतर कहा जा सकता है। ब्रेन लैब में हर रोज पांच मरीजों का इलाज किया जा रहा है।
क्या है ब्रेन लैब:
इसमें डेंटल चेयर की तरह दिखने वाली एक कुर्सी पर मरीज को बैठाया जाता है। फिर नेविगेशन की मदद से मस्तिष्क के अंदर की सभी नसों को मॉनिटर पर देखा जाता है। नेविगेशन के साथ ही मशीन से जुड़ा मैगनैटिक हाईबीम लेंस मस्तिष्क की प्रभावित जगहों पर तरंगों को पहुंचाता है। इन तकनीकों से होता है उपचार
ट्रांस मैग्नेटिक स्टिम्यूलैशन (टीएमएस)
इसमें बेहद कम वेग की न्यूरोमैगनेटिक तरंगो को मस्तिष्क के प्रभावित जगह पर पहुंचाया जाता है। एक विशेष उपकरण को सिर के उपर रखकर तरंगों को मस्तिष्क में प्रवाहित किया जाता है। साधारण एंजाइटी, डिप्रेशन लंबे समय के दर्द को इस विधि से सही किया जा सकता है।
विगर्सनर्व स्टिम्युलैशन (वीएनएस)
एपिलेप्सी के इलाज के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें मस्तिष्क की ऊपरी सतह पर छोटे से उपकरण को लगाया जाता है, जो मस्तिष्क को जरूरी संदेश भेजता है।लंबे समय के डिप्रेशन का इलाज भी वीएनएस से संभव है। इसे कॉलर बोन पर लगाते हैं।
डीप ब्रेन स्टिम्यूलैशन (डीबीएस)
यह एक तरह का मस्तिष्क में इस्तेमाल किए जाने वाला पेसमेकर है। जिसे न्यरोसर्जिकल विधि से दिमाग में लगाया जाता है। पार्विकसन के इलाज के लिए डीबीएस का प्रयोग होता है। इसमें मस्तिष्क की प्रभावित जगह तक रेडियोप्रिक्सी को पहुंचाते है। रिपीटेटिव ट्रांव्रेनियल मैगनेटिक सिचुमुलेशन इस तकनीक में मस्तिष्क के हैलिशेसन कान की बे वजह की आवाजे आना की स्थिति को ठीक किया जाता है। इसमें मैनेटिक तरंगों को मस्तिष्क के प्रभावित जगह पर पहुंचाया जाता है।