इन्द्राणी की सखी-हे शचि इन्द्राणी ! आज आप कुछ चिन्तन की मुद्रा में हैं, बताइए ना, आप क्या सोच रही हैं?
शचि इन्द्राणी (जम्बूद्वीप)-हाँ देवी! बात ही कुछ ऐसी है कि मेरा चिन्तन उस ओर चला गया। सखी-ऐसा क्या हुआ! क्या अपने स्वर्गलोक में कोई बात हुई है?
शचि (जम्बूद्वीप)-नहीं देवी! आज मैं स्वर्गलोक की नहीं मध्यलोक की ओर चिन्तनरत थी।
सखी-क्या हुआ मध्यलोक में?
शचि (पूर्व धातकीखण्ड)-मध्यलोक में एक गंभीर समस्या आ पड़ी है।
सखी-मैं आपका मतलब नहीं समझी सखी!
शचि (पूर्व धातकीखण्ड)-देवी ! देखो , संसार परम्परा को चलाने के लिए स्त्री और पुरुष दोनों का बराबर का सहयोग होता है। दोनों गृहस्थीरूपी गाड़ी के दो पहिए हैं उनमें अगर एक खराब हो गया तो क्या होगा ?
सखी-गाड़ी ही नहीं चलेगी देवी!
शचि (पश्चिम धातकीखण्ड)-हाँ, बिल्कुल ठीक कहा तुमने! आज पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाववश वही गाड़ी डिस्बैलेंस हो रही है। मध्यलोक में भारतदेश में जहाँ कभी कन्या को रत्न माना जाता था, शास्त्रों में वर्णन आता था कि अगर किसी शुभ कार्य को जाते समय कुमारी कन्या सामने आ जाये तो वह कार्य निश्चित ही सफल होगा परन्तु अब? (चितिंत मुद्रा में)
सखी-अब क्या इन्द्राणी जी!
शचि (पश्चिम धातकीखण्ड)-अब तो, अब तो, कन्या का जन्म ही अभिशाप माना जाता है, गर्भ में बालक के आते ही उसका परीक्षण करवाया जाता है और अगर यह पता लग जाये कि वह लड़की है तो उसको गर्भ में ही खत्म कर दिया जाता है और पता है यह कार्य कौन करता है?
सखी-हे सौधर्म इन्द्राणी! (कान पर हाथ रखकर) यह मैं क्या सुन रही हूँ? यह कैसी काल की विडम्बना है, माँ स्वयं हत्यारिन अगर वहाँ ऐसा ही होता रहा है तब तो पृथ्वीलोक में कन्याओं की संख्या बहुत घट गई होगी।
इन्द्राणी (पश्चिम पुष्करार्ध द्वीप)-हाँ बहन! आज वहाँ की स्थिति यह है कि अगर ५०० लड़के विवाह के योग्य हैं तो उनके समानान्तर मात्र २०० कन्याएं हैं। अब तू ही बता, अगर यही हाल रहा तो एक दिन फिर से स्वयंवर प्रथा प्रारंभ हो जायेगी। सौ युवकों में से कन्या किसी एक को पसंद करेगी और बाकी बेचारे मुंह देखते रह जायेंगे।
सखी-हे शची! क्या यह जरूरी है कि गर्भ के परीक्षण में जो मशीनें बताती हैं वही सही हो, वे गलत भी तो हो सकती हैं और क्या वहाँ की सरकार ने इसके लिए कोई कानून नहीं बनाया?
इन्द्राणी (जम्बूद्वीप)-अरे मेरी भोली सखी! वह मध्यलोक है, वहाँ के मनुष्यों में वर्तमान में सदाचार, विवेक और सरलता कम है, कपट, मायाचारी ज्यादा है, सरकार चाहे जितना कानून बनाइए दे अगर जनता साथ न दे तो वह बेचारी क्या करेगी। खैर, कानून तो लागू हो ही गया और यह कानूनन जुर्म भी है, इसके लिए सरकार पता लगने पर सजा भी देती है। रही बात मशीनों की, तो मशीनें कोई अवधिज्ञानी तो हैं नहीं जो सब कुछ सही-सही बता दें, कई बार ना, पुत्री के धोखे में पुत्र की भी हत्या हो जाती है और फिर उसका वंश चलाने वाला कोई नहीं रहता।
सखी-वंश चलाने की बात पर एक बात पूछूं देवी! क्या कन्या से उसके माता-पिता का नाम रोशन नहीं होता, क्या वह उसके कुल की शान नहीं बढ़ाती, क्या उससे उनका वंश नहीं चलता?
इन्द्राणी (पूर्व धातकीखण्ड)-देवी! क्यों नहीं चलता, आज वहाँ के भारतदेश में ना जाने कितनी ऐसी कन्याएं हुई हैं जिन्होंने माता-पिता, समाज और कुल का ही नहीं पूरे देश का मस्तक गौरव से ऊँचा किया है।
सखी-क्या कोई ताजा उदाहरण है देवी?
इन्द्राणी (पश्चिम धातकीखण्ड)-अवश्य देवी! है ना एकदम ताजा उदाहरण है, भारत क्या पूरे विश्व की आन-बान-शान हैं वो कन्यारत्न, जिसने जैनजगत में एक क्रान्ति ला दी है। पूरे जैन समाज को जिन पर गौरव है। बाराबंकी जिले में एक छोटे से ग्राम टिकैतनगर में जन्मीं पिता छोटेलाल और माता मोहिनी की प्रथम कन्यारत्न कु. मैना ने माता ज्ञानमती बनकर ढाई सौ ग्रंथों की रचना कर, तीर्थों का उद्धारकर, जन्मभूमियों का विकास कर पूरे देश का गौरव बढ़ाया है।
सखी-जय हो, जय हो, माता ज्ञानमती की जय हो, कन्यारत्न की जय हो। शचि! फिर तो प्रत्येक माता-पिता को उनसे उदाहरण लेना चाहिए और कन्या को अभिशाप न समझकर रत्न समझना चाहिए।
इन्द्राणी (पूर्व पुष्करार्ध द्वीप)-बिल्कुल देवी! और भी कितनी कन्याएं आज लड़कोें से ज्यादा आगे बढ़कर हर क्षेत्र में कार्य कर रही हैं फिर भी लोग कन्या को अभिशाप समझते हैं और गर्भ परीक्षण कर फिर भी उन्हें मारा जाता है।
सखी-(दोनों हाथों को मुख पर लगाकर) हे भगवन्! क्या होगा इस देश का?
इन्द्राणी (पश्चिम पुष्करार्ध द्वीप)-भ्रूण हत्या महापाप है। बेटी-बेटे सब एक समान होते हैं इसलिए मेरे हिसाब से तो भूलकर भी कन्या की भ्रूणहत्या नहीं करवानी चाहिए।
सखी-हे इन्द्राणी! एक बात तो बताइए कि क्या घर के बड़े बुुजुर्ग उन्हें ऐसा करने से नहीं रोकते?
इन्द्राणी (पूर्व पुष्करार्ध द्वीप)-देवी! आज की नारी ज्यादा मॉडर्न बनने की होड़ में ही ऐसा कर रही है, उनकी नजर में बुजुर्गों की भी कोई इज्जत नहीं होती पर बड़े-बुजुर्गों की बात जो भी मानता है वह हमेशा फायदे में रहता है, जिस घर में आज भी बुजुर्गों की चलती है उस घर में क्या रौनक बिखरती है उसका उदाहरण मैं तुम्हें एक सच्ची घटना के द्वारा बताती हूँ। क्या तुम मेरे साथ चलकर देखना चाहोगी?
सखी-अवश्य देवी, चलिए? मेरी तो उत्कण्ठा बढ़ती जा रही है, चलिए, कहाँ चल रही हैं आप?
इन्द्राणी (पश्चिम पुष्करार्ध द्वीप)-देवी! आज मैं आपको इंदौर नगर की एक सच्ची घटना दिखाती हूँ, चलिए देखें वहाँ एक घर में क्या आश्चर्यजनक घटना घटी-(इंदौर में एक दम्पत्ति अपने माता-पिता और दो बेटियों के साथ रहते हैं। घर की बहू नेहा एक बार पुन: गर्भवती होती है तब उसे बड़ी चिंता होती है और वह अपने पति राकेश से कहती है) (सुबह का समय है, पति-पत्नी कुर्सी पर बैठे नाश्ता कर रहे हैं, पत्नी पति से कहती हैं)
पत्नी-सुनिये! आज मुझे जरा डॉ. वंदना के पास जाना है?
पति-(खुश होकर) क्या कहा? डॉ. वंदना के पास, तो-तो इसका मतलब तुम फिर से माँ बनने वाली हो।
पत्नी-(बिना कोई खुशी हाजिर किए) आप तो ऐसे खुश हो रहे हैं मानों इस बार बेटा ही होगा।
पति-अरी भागवान्! बेटी हो या बेटा क्या फर्क पड़ता है। आजकल बेटियां बेटोें से ज्यादा नाम रोशन कर रही हैं, अपने पड़ोस के मनोज भाई की दोनों बेटियों को तुमने नहीं देखा कितनी होशियार हैं, एक डाक्टरी पढ़ रही है और एक इंजीनियरिंग का कोर्स कर रही है। सब उनकी तारीफ करते हैं। भई, मुझे तो बेटे-बेटी में कोई फर्क नहीं नजर आता।
पत्नी-(गुस्से में) आप चुप भी करिए। बहुत सुन ली बेटियों की तारीफ। मैं भी अपनी बेटियों को अच्छा पढ़ा लिखा रही हूँ, कौन सा उन्हेें कष्ट दे रही हूँ पर बिना बेटे के भी कभी वंश चलता है। (इतने में ससुर जी आ जाते हैं)
ससुर जी-क्या हुआ भई! आज हमारी बहूरानी इतनी चिंतित कैसे है? (बहू के सिर पर हाथ फेरकर) क्या हुआ बेटा! मुझे बताओ क्या परेशानी है?
बेटा-पिताजी! परेशानी नहीं खुशी की बात है, नेहा फिर से माँ बनने वाली है।
ससुर जी-(खुश होकर) अरे वाह बेटा! क्या खुशखबरी सुनाई, मन प्रसन्न हो गया। लेकिन बेटा! बहू क्यों चिंतित है? चल अच्छा, बहू, तू ही बता क्या बात है?
बहू-पिताजी! वो……….मुझे डॉ. वंदना को दिखाने के लिए…….
ससुरजी-(बीच में ही) अरे हाँ हाँ क्यों नहीं? बेटा! सुन, आज तू ऑफिस न जाकर बहू को डॉक्टरनी को दिखाकर ला। समझ गया और मैं जल्दी से जाता हूँ तेरी माँ को यह खुशखबरी सुनाने।
बेटा-जी पिताजी! (ससुर जी अपनी पत्नी को आवाज देते हुए चले जाते हैं) (राकेश और नेहा दोनों डॉ. वंदना को दिखाने जाते हैं। राकेश बाहर बैठा है, नेहा अंदर जाती है और डॉक्टर से कहकर जबरदस्ती भ्रूण परीक्षण करवाती है, पुन: बाहर आ जाती है) (डॉ. वंदना का क्लीनिक)
डॉ. वंदना-(नेहा से) बैठिये नेहा जी! अभी पाँच मिनट में आपकी रिपोर्ट आने वाली है।
नेहा-जी डॉ.। (पाँच मिनट बाद नर्स रिपोर्ट लेकर आती है) कांग्रेचुलेशन्स मिस्टर एण्ड मिसेज राकेश! रिपोर्ट नार्मल है। मैं कुछ दवाईयां लिखे देती हूँ। उनको समय पर ले लेना।
नेहा-वह तो ठीक है डॉ. लेकिन आपने मुझे बताया नहीं कि बच्चा बेटी है या बेटा।
डॉ. वंदना-देखिए! मेरे हिसाब से तो बेटी-बेटा एक समान हैं, मैं स्वयं भी तो किसी की बेटी हूँ, आप स्वयं भी तो किसी की बेटी हैं।
नेहा-इसका मतलब इस बार फिर बेटी ही होगी। नहीं, नहीं, बिल्कुल नहीं, इस बार मैं इसे जन्म नहीं दूँगी। मैं गर्भपात करवा दूंगी।
राकेश-यह क्या बकवास है नेहा! तुम इतनी संस्कारवान होकर एक बच्ची की हत्या करोगी, एक मासूम बच्ची की, जो इस दुनिया में आई ही नहीं है।
नेहा-मैं कुछ नहीं सुनना चाहती, डॉ. प्लीज! आप अभी इसी वक्त मेरा एबार्सन कर दीजिए।
डॉ. वंदना-देखिए मैडम! बिना घर वालोें की परमीशन के मैं कुछ नहीं कर सकती। सॉरी! आप जा सकती हैं। और हाँ! डॉक्टर होेने के नाते मैं एक बार फिर आपको समझाती हूूँं कि यह गलत है और कानूनन जुर्म है, आगे आप लोग जैसा उचित समझें।
नेहा-(राकेश से) सुनिये! आप मुझे ऐसा करने की परमीशन दे दीजिए, मैं अब तीसरी लड़की को बिल्कुल भी जन्म नहीं दे सकती।
राकेश-देखो नेहा! जल्दबाजी में लिए गए फैसले हमेशा गलत होते हैं, उस बच्ची का क्या कुसूर जिसने अभी यह दुनिया ही नहीं देखी, फिर माँ-बाबू जी भी तो हैं उनसे बिना इजाजत लिए मैं कुछ नहीं कर सकता। (नेहा मन मसोसकर पति के साथ घर चली जाती है) घर में बाबूजी, माँ जी और दोनों बच्चियाँ बड़े खुश हैं) (घर पहुँचते ही)
ससुर जी-अरी बेटी! आ गई, क्या बताया डॉ. ने, मैंने और तुम्हारी माँ ने सारे रिश्तेदारों को खबर कर दी है।
नेहा-लेकिन बाबू जी! शायद आपको सुनकर निराशा होगी कि इस बार भी बेटी ही है।
ससुर जी-कैसी निराशा मेरी लाडो! अरे! कन्या तो दो कुल की शोभा है, मैं तो सुनकर बहुत ही खुश हूँ।
नेहा-माँ जी! मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूँ।
सासू माँ-हाँ, हाँ, बोलो बेटी, क्या कहना है?
नेहा-(सास को अलग ले जाकर) माँ! मैं इस बच्ची को जन्म नहीं देना चाहती, मैं गर्भपात करवाना चाहती हूँ पर इसके लिए मुझे आपकी और बाबूजी की इजाजत चाहिए।
सासू माँ-(आश्चर्य से) हे भगवान्! यह क्या कह रही है तू। तूने ऐसा सोचा भी कैसे? अजी सुनते हो राकेश के पिताजी।
ससुर जी-क्या हुआ राकेश की माँ! क्यों चिल्ला रही हो?
सासू माँ-अरे! बात ही ऐसी है, बहू कह रही है कि (उनके कान में बताती है) (सुनकर ससुर जी गुस्से में आ जाते हैं)
ससुर जी-क्या कहा बहू! तूने ऐसा पाप करने की सोची भी कैसे, क्या यही संस्कार मिले हैं तुझे माँ-बाप से। कान खोलकर सुन लो, जब तक मैं जीवित हूँ इस घर में यह पाप कभी नहीं होगा और अगर यही करना है तो मेरा तेरा रिश्ता यहीं खत्म। (बहू ससुरजी के गुस्से के आगे कुछ नहीं कर पाती, धीरे-धीरे नौ माह बीत जाते हैं। नेहा हॉस्पीटल में एडमिट होती है अब देखिए क्या होता है)-
डॉ. वंदना-(बाहर आकर) बधाई हो लालाजी! बधाई हो। आज तो बहुत सारा इनाम लूँगी मैं भी, आप एक बार फिर से दादाजी बन गए।
ससुर जी-जरूर-जरूर बेटी। क्या मैं अपनी पोती को देख सकता हूँ।
डॉ. वंदना-पोती नहीं लाला जी पोता हुआ है पोता।
ससुर जी-क्या कहा पोता! हे भगवान! यह मैं क्या सुन रहा हूँ, बहू तो कह रही थी कि बेटी होगी।
सासू मां-अजी! मैं तो पूरे मुहल्ले में लड्डू बटवाऊंगी। मैंने तो बहू से बार-बार समझाया कि बेटी! कोई परीक्षण मत करवा, ऊपर वाला जो भी दे उसे खुशी-खुशी स्वीकार कर ले।
डॉ. वंदना-जी माँ जी! आजकल जो मशीनें चली हैं उनका दुरुपयोग हो रहा है। भ्रूण परीक्षण करवाकर बालिका की गर्भ में ही हत्या करवा देना बिल्कुल गलत है, अब क्या करें! हमारा भी पेशा है लेकिन फिर भी हम हर एक को ऐसा करने के लिए अवश्य मना करते हैं। मैंने तो आपकी बहू को भी समझाया था। अब देखो ना। पुत्ररत्न मिल गया उसे।
ससुर जी-हाँ बेटी! सच कह रही है तू। अगर लोग इतना ही समझने लग जाएं तो यह पाप करना ही छोड़ दें।
राकेश-डॉ. साहिबा! क्या मैं अपनी पत्नी और बच्चे से मिल सकता हूँ।
डॉ.-जी, क्यों नहीं! आइए, आप सब आइए। (सब अंदर जाते हैं। अंदर नेहा पलंग पर लेटी है पास में बच्चा लेटा है) (सभी को देखकर नेहा बैठ जाती है)
राकेश-क्यों नेहा! अब क्या कहती हो। अगर तुमने उस समय एबार्शन करवाया होता तो क्या बेटे को जन्म दे पाती।
नेहा-बाबू जी! माँ जी! मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई मुझे क्षमा कर दीजिए। मैं इन नौ महीनों में पूरी तरह से समझ गई हूूं कि बेटे-बेटी एक समान होते हैं सच तो यह है कि अगर मुझे इस बार भी बेटी होती, तो मुझे कोई दुख नहीं होता।
सासू माँ-(प्यार से सिर पर हाथ फेरकर) वाह बेटी! आज तो तूने मन खुश कर दिया। ससुर जी-हाँ नेहा बेटा! आज तूने पते की बात कही है। तुझे ही क्या हर माँ को यही समझना चाहिए कि बेटा और बेटी में कोई अंतर नहीं होता, दोनों एक समान होते हैं। चलो देर से ही सही, तुझे ज्ञान तो हुआ, सुबह का भूला शाम को घर आ जाये तो वह भूला नहीं कहलाता।
नेहा-हाँ! आज मैं यहाँ बैठी हर माँ से यही अपील करना चाहूँगी कि वह बेटे-बेटी में कोई फर्क न करें, उन्हें एक बराबर शिक्षा दें बल्कि हो सके तो बेटी को बेटे से अधिक प्यार-दुलार दें, पढ़ाए लिखाए ताकि बड़ी होकर वह सारे देश का नाम रोशन कर सके। (इन्द्राणी और देवी की पुन: वार्ता)
इन्द्राणी-देखा देवी! अगर वह महिला गर्भपात करवाती तो पुत्र सुख से वंचित रह जाती।
सखी-हाँ शची! आज तो मैं भी इस स्वर्गलोक से समस्त मध्यलोकवासियों से यह अपील करती हूँ कि यह भ्रूणहत्या जैसा निंद्य कार्य बंद करें और भारत देश को पहले जैसा भारत बनाएं। अगर बन सके तो भ्रूण हत्या निषेध का आह्वान करें। तभी देश में खुशहाली आएगी, नहीं तो गृहस्थी की गाड़ी डिस्बैंलेंस हो जायेगी। बेचारे कितने ही लड़के कुवारें रह जायेंगे, इसलिए सभी को मिलकर इस कुरीति को मिटाना ही होगा।