बच्चों पर कम्प्यूटर के नकारात्मक प्रभाव को नजरअंदाज न करें
आज के प्रगतिशील युग में कम्प्यूटर बहुत फायदेमंद साबित हुआ है परन्तु इसके नकारात्मक प्रभाव को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। आज बच्चे कम्प्यूटर पर इतनी देर तक बैठे रहते हैं कि उससे उनका स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। नवीनतम शोधों से पता चला है कि जो बच्चे अपने साथियों के साथ पार्क या खेल के मैदान में खेलते हैं, उनका स्वास्थ्य उन बच्चों की तुलना में अधिक अच्छा पाया गया जो घर की चार दीवारी में बैठे कम्प्यूटर या टीवी देखते रहते हैं। कम्प्यूटर के सामने बैठे रहने वाले बच्चों की नेत्रादृष्टि भी कमजोर पायी गयी, साथ ही कोई शारीरिक गतिविधि न करने के कारण इन बच्चों में मोटापे की संभावना अधिक पायी गयी। खेल—कूद के माध्यम से बच्चों का शारीरिक विकास तो सही होता ही है, साथ ही उनमें दोस्ती व रचनात्मक भावनाएं भी जन्म लेती हैं। अभिभावक प्राय: यह सोचते हैं कि टेक्नॉलाजी के इस युग में कम्प्यूटर का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है और इस क्षेत्र में बहुत पैसा भी है इसलिए वे बच्चे को प्रारंभ से ही घर में कम्प्यूटर खरीद कर दे रहे हैं ताकि उनका बच्चा किसी से पीछे न रह जाए। इसलिए पब्लिक स्कूलों, कान्वेंट स्कूलों और यहां तक कि सरकारी स्कूलों में भी कम्प्यूटर शिक्षा अनिवार्य हो गई है। अभिभावकों का यह सोचना गलत नहीं पर क्या यह सही है कि कम्प्यूटर शिक्षा के कारण बच्चे को अन्य स्वास्थ्यगत समस्याओं का सामना करना पड़े और उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य इससे प्रभावित हो। शायद नहीं, कोई भी अभिभावक यह नहीं चाहेगा इसलिए अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों को अधिक देर तक कम्प्यूटर के सामने न बैठे रहने दें। उसका कुछ समय तय करें ताकि उसे ज्ञान भी मिलता रहे और उसके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव न पड़े। बच्चे को खेलने के लिए प्रोत्साहित करें, खासकर आउटडोर गेम्स खेलने के लिए जिससे उनका सही शारीरिक व मानसिक विकास हो सके। कम्प्यूटर सीखते—सीखते कहीं आपका बच्चा भी कम्प्यूटर की भांति एक मशीन बनकर न रह जाए। यह ध्यान रखें कि यह मशीन सिर्फ मशीन होती है और आपका बच्चा एक मशीन नहीं, उसमें भावनाएं भी हैं।