आज यह तथ्य निर्विवादरूप से स्वीकृत हो चुका है कि सिन्धु-सभ्यता की भाषा ‘प्राकृत’थी।आर.पी. देशमुख, ‘इण्डस् सिविलाईजेशन: ऋृग्वेद एवं हिन्दू कल्चर, अ. १९, पृ. ३६७ । प्राकृत और संस्कृत भारतीय संस्कृति के वाहक भाषारूपी रथ के चक्रयुगल हैं। चिरकाल से भारतीय वाङमय-प्रसाद के शिल्पियों ने इन भाषाओं का यथेच्छ उपयोग किया है और इनके माध्यम से अपनी बहुमुखी प्रतिभा के मणिदर्पणों में राष्ट्र के ज्ञान-विज्ञान के सौन्दर्य को झलकाया है। संस्कृत की सहगामिनी होकर भी प्राकृत भाषा संस्कृत की तरह वर्ग-विशेष के द्वारा सेव्य नहीं रही, अपितु लोकभाषा के रूप में व्यापक वर्ग को विचारसम्प्रेषण-माध्यम बनी। प्रजाओं की भाषा होने से इसे ‘प्राकृत’ नाम दिया गया। अतएक वेदों से लेकर संस्कृत नाट्य-साहित्य तक प्राकृत के प्रचुर प्रयोग प्राप्त होते हैं। जैन साहित्यकारों ने जनहित को प्रधान रखते हुए अपना मूल आगम साहित्य प्राकृत में लिखा, परन्तु संस्कृत से परहेज उन्होंने कभी नहीं किया और अपनी भाषा को ‘देवभाषा’ और अन्य लोगों की भाषा को ‘शूद्रभाषा’ जैसे संकीर्ण मानसिकता के सूचक शब्द प्रयोग भी उन्होंने कभी नहीं किये। ‘कसायपाहुड’ में संस्कृत-प्राकृत का मिश्रित प्रयोग कर उसे ‘मणि-प्रवाल-सौन्दर्य’ की उपमा दी है-
चूंकि प्राकृत बहुजन-समादृत भाषा रही, तो इसमें किसी जाति-पन्थ या वर्गविशेष का योगदान नहीं था; अपितु ‘प्राकृत’ भाषा की अपनी विशेषतायें थीं, जिनके कारण जनसामान्य ने उसे अपनाया। ‘प्राकृत शब्दानुशासन’ में प्राकृत की इन विशेषाताओं का परिचय देते हुए बताया गया है कि-
‘‘अल्पार्थ सुखोच्चार: शब्द: साहित्य-जीवितम् । सच प्राकृतमेवेति मतं सूत्रानुवर्तिनाम् ।।’’ प्राकृत शब्दानुशासन, ७ ।
अर्थात् ‘साहित्य को संजीवन प्रदान करने के लिए ऐसी शब्दावलि की आवश्यकता होती है, जिसमें अर्थ की बहुलता हो, जिसका सुखपूव्रक उच्चारण किया जा सके। ऐसी भाषा‘प्राकृत’ ही है- ऐसा भाषासूत्रकारों एवं उनके अनुवर्तियों का स्पष्ट अभिमत है। आगम-प्रणेताओं ने इसे जीवमात्र के स्वाभाविक गुणों से सम्पन्न भाषा माना है-
‘‘जीवस्स साभावियगुणेहिं ते पागदभासाए ।’’सूत्रकृताङ्ग निर्युक्ति में ।
अर्थात् ‘प्राकृत भाषा जीव के स्वाभाविक गुणों से निष्पन्न है।’ ज्ञानमण्डल, काशी द्वारा प्रकाशित ‘हिन्दी साहित्य कोष’ में विद्वान् सम्पादकोंडॉ. धीरेन्द्र वर्मा, डॉ. ब्रजेश्वर शर्मा, डॉ. धर्मवीरा भारती एवं डॉ. रामस्वरूप चतुवेर्दी आदि।संयोजक – डॉ. रघुवंश । ने स्पष्ट किया है कि ‘‘प्राकृत भाषायें अपने नैसर्गिक रूप में वैदिक काल से पूर्व भी विद्यमान थीं। स्वयं वैदिक भाषा को उस काल में प्रचलित प्राकृत बोलियों का साहित्यिक रूप माना जा सकता है। ….. वैयाकरणों ने सम्भवत: संकुचित अर्थ में साहित्यिक प्राकृत का मूल आधार संस्कृत को माना है। यद्यपि यहाँ ‘संस्कृत’ से आशय प्राचीन आर्यभाषा के स्वच्छन्द रूप ‘वैदिक’ से लेना युक्तिसंगत है, क्योंकि ‘संस्कृत’ तो स्वयं ही लोकभाषा का संस्कार किया गया रूप है।’’ वास्तव में प्राकृतभाषा एक अति समृद्ध भाषा है। आज उसके अनुसंधानमूलक अध्ययन से अनेकों लुप्तप्राय: शब्दों को समझकर अपनी सांस्कृतिक धरोहर एवं शब्द-सम्पदा की रक्षा की जा सकती है। साथ ही प्रादेशिक भाषाओं के ऐसे शब्द, जिन्हें ‘अव्युत्पन्न’ अथवा ‘ग्राम्य’ कहा जाता है, इसके अध्ययन से सुप्रतिष्ठित हो सकते हैं और उनकी मूलप्रकृति जानने से शब्द-शास्त्र के बौद्धिक आनन्द को प्राप्त किया जा सकता है। जैसे कि प्राकृत के शब्द राई (संस्कृत-राज्ञी), ओली (अवलि-पंक्ति), मइट्ठो (मतिज्येष्ठि राजस्थानी में ‘म्हांटो’) आदि। केवल भारतीय भाषाओं में ही नहीं अपितु प्राचीनकाल में विश्व व्यापार- परिदृश्य में भारत प्रमुख केन्द्र होने से विश्व भी की भाषाओं में प्राकृतभाषा की शब्द-सम्पदा उपलब्ध होती है, जिसकी कुछ बानगियाँविशेष दृ. : पं. रघुनन्दन शर्मा: ‘वैदिक सम्पत्ति’ पृ. २८९-३०१ तक। निम्नानुसार हैं :-संस्कृत अपभ्रंश अर्थ प्राकृत -ऋत राइट सत्य सच्च -छाया साया छाया छाया -विष्टर बिस्तर बिछौना वित्थर -उष्ट्र उश्तर, शुतर ऊँच उट्ठ -स्थान स्तान (हिन्दुस्तान) स्थान ठाण-आप् आब पानी पाणी -अभ्र अब्र बादल अब्भ -क्षुद्र खुर्द (खुर्दबीन) छोटा खुद्द-खुद्द -उक्ष उच्छ बैल उच्छ २ प्राकृत, वेद और संस्कृत शब्दों में अर्थ-भिन्नता- प्राकृत वेदशब्द वैदिक अर्थ संस्कृत अर्थ -अहि अहि मेघ सर्प -गोयम गौतम चन्द्रमा ऋषि -इंद इन्द्र सूर्यं देवपति ३ एक ‘मेरु’ शब्द विश्व की अनेक भाषाओं में पाया जाता है- संस्कृत प्राकृत जन्द ग्रीक मिस्री तुर्की -मेरु मेरु मौरु मेरोस मेरई मेहरु ४ प्राकृत, ‘‘जन्दावेस्ता’’ पारसीग्रंथ की भाषा ‘‘जन्द’’ और संस्कृत- प्राकृत संस्कृत जन्द अर्थ -असुर असुर अहुर परमेश्वर -सोम सोम होम वनस्पति -सत्त सप्त हप्त सात -सेणा सेना हेना सेना -हत्थ हस्त जस्त हाथ -बाहु बाहु बाजु हाथ -अहि अहि अजि सर्प -वज्ज वङ्का वङ्का वङ्का -अजा अजा अजा बकरी -विस्स विश्व विस्प संसार, सब अन्य समान शब्द :- पशु, यव, वायु इषु, वैद्य, रथ, गाथा, इष्टि, अर्थवन् आदि। ५ प्राकृत, संस्कृत-फारसी शब्द-साम्य- प्राकृत संस्कृत फारसी अर्थ -तणु तनु तन शरीर -जाणु जानु जानु घुटना -बाहु बाहु बाजू हाथ -पिट्ठ पृष्ठ पुश्त पीठ -णाभि नाभि नाफ नाभि -गीबा ग्रीवा गरेबाँ गर्दन -चम्म चर्म चिरम चर्म -अस्सो, आसे अश्व अस्प घोड़ा -खर खर खर गधा -गो गौ गव गाय -कीड किरमी कृमि किरम कीड़ा -खीर क्षीर शीर दूध -सलागा शलाका सलाख सलाई -पुरु पुरु पीर श्रेष्ठ ६ प्राकृत, संस्कृत अंग्रजी शब्द-साम्य – संस्कृत अंग्रेजी हिन्दी अर्थ प्राकृत -मनु मैन मनुष्य मणु -पितर, मातर फादर, मदर पिता, माता पिदु-मादु -सूनु सन पुत्र सूणू -षष्टि सिक्स्टी साठ सट्ठी -लक्ष लैक लाख लक्ख -उक्ष ऑक्स बैल उच्छ -गौ काउ गौ गउ, गो -नक्त नाइट रात्रि नत्त -हृत् हार्ट हृदय हिदय, हिअअ -अन्तर अण्डर नीचे अंतर -मृद् मड मिट्टी मट्टि -पथ पाध मार्ग पंथ -नाम नेम नाम णाम -समिति कमिटी सभा सभा -तरु ट्री वृक्ष उक्ख -मिश्र मिक्स मिला हुआ मिस्स -धनी गिनी धनवान् धणि ७ प्राकृत, संस्कृत-यूनानी-शब्द – प्राकृत संस्कृत यूनानी हिन्दी अर्थ -साणो श्वान क्वान कुत्ता -दस दश डेक दस -दंसिअ, दिट्ठ ददर्श डेडर्क देखा ८ प्राकृत, संस्कृत मिस्र शब्द- प्राकृत संस्कृत मिस्री अर्थ -अत्त अथ आत आरम्भ -अपूय अपूप पूपू रोटी -अंत अन्त अन्तू सीमा -पुप्फ पुष्प पुष पुष्प/फूल -उसा उषा उषा प्रात:काल ९ प्राकृत-संस्कृत-अरबी-शब्दतुल्यता – प्राकृत संस्कृत अरबी हिन्दी अर्थ -हम्म हम्र्य हरम महल -सुर सुर हूर देवता -अंतकाल अन्तकाल इन्तकाल मृत्यु -कित्तण कीर्तन किरतैअन पठन -मा मा मा नहीं, निषेध -छट्ठ षष्ठ सित्ता छठा -दिज्ज दैत्य दियत राक्षस -ओरस औरस वारिस पुत्र उत्तराधिकारी -अम्मा अम्बा उम्म माता -धणि धनी गनी धनवान -अब्बण अर्वन अरबन अश्व, “} आदम:- ‘ब्रह्मा’ ही इस्लामी और यहूदी ग्रंथों का ‘आदम’ है। अब्राह्म-ब्रह्म, आदम- आदि मानव ‘इब्राहिम’। -भारतीय संस्कृति का इतिहास, भगवद्दत्त, चौथा अध्याय। १० प्राकृत- संस्कृत और स्वाहिली (अफ्रीकी) भाषा – प्राकृत संस्कृत स्वाहिली हिन्दी अर्थ -झाण ध्यान धानी विचार करना -कत्त कत्र्र काटा काटना -मय, मच्चू मृत्यु माती मृत्यु -जूअ घूस जुआ सूर्य -जंबू जम्बु जम्बुरऊ जामुन -सिंह, सिंघ सिंह सिम्बा सिंह ११. प्राकृत-संस्कृत-हिब्रू-शब्द – प्राकृत संस्कृत हिब्रू हिन्दी अर्थ -अरिहो अर्ह: यलिह पूज्य -मेह इलीविश इब्लीश मेघ, असुर, वृत्र १२ प्राकृत, संस्कृत-चीनी-शब्द-साम्य – प्राकृत संस्कृत चीनी हिन्दी अर्थ -थाण स्थान तान स्थान -सिरि श्री शिरी गुरु, आचार्य -अम्बा, अम्मा अम्बा मा माता -सग्ग द्युस्थान टियनतान स्वर्ग १३ प्राकृत-संस्कृत-जापानी शब्द साम्य- प्राकृत संस्कृत जापानी हिन्दी अर्थ -किं किम् का क्या -उच्छ अक्षन् ओडशी बैल -बहु बहुत्व भोत्तो बहुत -सिस्स शिष्य शोसेर शिष्य -कणग कनक किनका सुवर्ण -ज्झाण ध्यान गेन ध्यान -जम यम इम्मा यम “} उक्त विवरण से सुस्पष्ट है कि भारत की प्राचीनतम भाषा प्राकृत का प्रभाव एवं सम्पर्क क्षेत्र अतिव्यापक एवं अन्तर्महाद्वीपीय था। इस क्षेत्र में उदार दृष्टि से विशद अध्ययन एवं गहन शोध की अपेक्षा है।
डॉ. सुदीप जैन प्राकृत विद्या जुलाई-सितम्बर १९९५ अंक २