कहां से आया इबोला डॉक्टर अब तक पक्के तौर पर नहीं पता लगा पाए हैं कि इबोला वायरस आया कहां से । एक थ्योरी कहती है कि यह वायरस चमगादड़ , बंदर और सुअर के आंतों में पाया जाता है। संक्रमण से लक्षण तक यह वायरस शरीर में फैलने में दो से २१ दिन लगाता है। जब इसके लक्षण दिखने लगे तो मरीज इस बीमारी को फैलाने वाला बन जाता है। इसके अगले १२ दिन बेहद संवेदनशील होते हैं। चपेट में आने के बाद १२ दिन में मौत ७ से १० दिन वायरस जब विकसित होता है तब गले — आंखों में जलन, पेट में दर्द और उल्टियां होती हैं। सिरदर्द, थकान, बुखार, मांसपेशियों में जलन। त्वचा पर छोटे—छोटे सफेद लाल धब्बे पड़ने लगते हैं। ये बाद में खरोंच का रूप ले लेते हैं।फिर फटना शुरू हो जाते है। इनमें से खून निकलने लगता है। ११वां दिन: जीभ की ऊपरी सतह पूरी तरह से लाल हो जाती है। कई बार ये बाहर लटक जाती है या गले की तरफ चली जाती है। १२ वां दिन : वायरस नसों में खून जमा देता है। रंग काला पड़ने लगता है। खून जमने से लिवर, ब्रेन, फैफड़े , आंतों, समेत कई अंगों तक खून का बहाव रूकने लगता है। ये अंग काम करने बंद कर देते हैं। सारे अंगों के बंद होने के बाद मरीज की मौत हो जाती है। कैसे बचें किसी भी इबोला पीड़ित मरीज या जानवर से दूर रहें। अपने हाथ की रोजाना सफाई करें। दस्ताने और सुरक्षा एप्रन पहनकर इबोला मरीज के पास जाएं। सबसे पहले यहां फैला १९७६ में पहली बार दो स्थानों पर एक साथ फैला। ये हैं—नजारा (सुडान) और यामबुकु (कांगो)। इसका नाम इबोला नदी (कांगो) के ऊपर रखा गया है। फैलता कैसे है छूने से, खून, शरीर से निकले तरलस्राव, पसीना, छींक इत्यादि । वायरस से संक्रमित चमगादड़ (टेरोपोडिडे फैमिली) से बंदरों तक। बंदरों से इंसानों तक या सुअर से इंसानों तक। इंसानों से इंसानों तक।