संसार में जितने भी प्राणी हैं, सभी को नींद आती है। हृदय जो चेतना का स्थान है, एक कमल के समान है। जब हम जागते हैं तो यह कमल खिला रहता है और जब हम सोते हैं यह कमल थोड़ी देर के लिए बंद हो जाता है। स्वभाव से ही सभी प्राणियों को नींद आती है। शरीर के लिए जिस प्रकार भोजन, पानी और हवा की जरूरत है, उसी प्रकार नींद भी जरूरी है। प्राचीन समय में मनुष्य को दण्ड देने का एक तरीका उसे सोने न देना था। इस प्रकार न सोने के कारण उसकी हालत खराब होती जाती थी। सोने से शरीर को बल और नया उत्साह मिलता है। नींद संबंधी कुछ नियम हैं। इन नियमों का पालन करने से ही इसका अधिक से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। रात को जल्दी सोना और पौ फटे बिस्तर छोड़ देना सबसे अधिक लाभकारी रहता है। दिन में सोने से खांसी जुकाम, अरूचि, शरीर टूटना और सिर का भारीपन आदि रोग होते हैं। छोटे बालकों को अधिक से अधिक नींद लेनी चाहिए। सोते समय मुंह को कपड़े से लपेटना अनुचित है। गर्मी के मौसम में खुली हवा में सोना अच्छा रहता है। लेकिन ओस में नहीं सोना चाहिए। रात को सोने से पहले पानी पीकर सोना चाहिए। नींद न आ रही हो तो शरीर पर तेल का मलना, आदि से नींद आती है। सोने से पहले मन में अच्छे विचार लेकर सोना उचित रहता है, नहीं तो बुरे सपने आते हैं। युवक—युवतियों को लकड़ी के बिस्तर पर सोना चाहिए। इससे उन्हें शान्ति मिलती है व मन स्थिर रहता है। क्रोध या तनावग्रस्त होकर नहीं सोना चाहिए। ऐसा करने से शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है।