तर्ज—सावन का महीना……………………..
‘‘सावन का महीना हुआ राजगृही में शोर, समवशरण में सिंहासन पर बैठे वीरा मौन
होऽऽ बारह सभा बनी अति सुन्दर, प्रभु दर्शन कर हर्षाया।
विपुला पर्वत के ऊपर ,विनय भाव से शीश झुकाया।
दिव्यध्वनि ना खिरी प्रभु का , वेष दिगम्बर तत्क्षण धारा।
क्योंकि नहीं थे कोई गणधर,प्रथम गणाधीश का पद पाया।
गणधर के बिन प्रभुजी की वाणी झेले कौन ?
खिरी वाणी प्रभुवर की, जैसे हो बादल का शोर ।
समवशरण……………. समवशरण में……………..
अवधिज्ञान से इंद्र ने जाना, पावापुरी उद्यान मनोहर इंद्रभूति को अब है लाना
र्काितक कृष्ण अमावस प्रात: देश मगध में पहुँचेपुरन्दर
वीर प्रभु ने मुक्ति पाई बना लिया वृद्ध ब्राह्मण
बाना देवों ने भस्मी शीश चढ़ाई श्लोक सुना गौतम ने,
सोचा यह ज्ञानी कौन दीप जले रत्नों के, हो गई जगमग चहूँ और
समवशरण……………. समवशरण में……………..
अहंकार से भर इंद्रभूति,सायंकाल में प्रभु गौतम जी संग चले
अग्नि—वायुभूति हुए केवली प्रकटी ज्योति पांच सौ शिष्य चले संग
उनके गूंज उठा था जय—जयकारा हर्षाये
समवशरण निरख केफैला रत्नों का उजियारा मान गला गौतम को,
देखा मानस्तंभ की ओर दीपावली मनाते हैं सारे जग के लोग
समवशरण……………. समवशरण में……………..