बथुए का रस मलेरिया, बुखार और कालाजार जैसे संक्रामक रोगों में भी फायदेमंद होता है। पीलिया होने पर बथुआ का रस ले सकते हैं। एनीमिया होने पर बथुए के पत्तों के २५ ग्राम रस में पानी मिलाकर पीना काफी लाभकारी होता है। यदि शरीर के किसी हिस्से में सूजन है, तो इसके पत्तों का पुल्टिस गर्म करके सूजन वाले भाग पर बांधा जा सकता है। अगर लिवर की समस्या है, या शरीर में गांठे हो गई हैं तो, पूरे पौधे को सुखाकर १० ग्राम पंचांग (पौधे के पाँचों अंग) का काढ़ा पिलाएँ। बथुए की तासीर के गर्म होने की वजह से इसका सेवन गर्भवती महिलाओं के लिए र्विजत है। पेट के कीड़े नष्ट करने हों या रक्त शुद्ध करना हो तो इसके पत्तों के रस के साथ नीम के पत्तों का रस मिलाकर लें। काफी फायदा मिलेगा। शीतपित्ती अर्थात् शरीर पर ददोरे की परेशानी हो, तब भी इसका रस पीना लाभदायक रहता है। मासिक धर्म रुक जाए और दर्द होता हो तो इसके १५ से २० ग्राम बीजों का काढ़ा सौंठ मिलाकर दिन में दो तीन बार लें। श्वेत प्रदर के निदान के लिए भी बथुए के रस में पानी और मिश्री मिलाकर पीयें। यह आमाशय को बलवान बनाता है। यह नेत्र ज्योति वर्धक, शुक्रवर्धक है और आमवात को दूर करता है। घुटनों के दर्द में बथुआ पानी में उबालकर इस उबले पानी में कपड़ा भीगाकर घुटनों पर गर्म—गर्म सेक करने से लाभ होता है। बथुआ कब्ज दूर करता है। बड़े हुए यकृत व तिल्ली को भी ठीक करता है। नियमित बथुआ खाने वाले के पास अजीर्ण, गैस, पाइल्स (बवासीर) जैसे रोग कभी नहीं फटकते।