आजकल बाजार में रसायनों से पकाये गये फल ही मुख्यत: बिकते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बड़े घातक हैं। आम, केला, पपीता, चीकू आदि फल रसायन की मदद से पकाये जाते हैंं ये पदार्थ आंतों, फेफड़े गुर्दों आदि को नुकसान पहुंचाते हैं। शासन-प्रशासन, चिकित्सक, समाजसेवी और जागरूक लोग इस ओर से आंखें मूंदे हुए हैं। उन्हें नागरिकों के जीवन और स्वास्थ्य की जरा भी चिन्ता नहीं है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि फलों को पकाने में प्रयुक्त होने वाले रसायनों से कैंसर जन्म ने की प्रबल संभावना है। यूं तो यह रसायन पाउडर के रूप में मिलता है और फलों के मध्य कागज में लपेटकर रखा जाता है और इससे निकलने वाली गैस से फल पकते हें लेकिन इन फलों में समाई गैस तो नुकासान देती ही है। फल पकने के बाद उलटने पलटने के वक्त अधिकांश पुड़िया फट जाती है। फलों पर चूंकि चिपचिपाहट होती है इस कारण पाउडर फलों पर चिपक जाता है। फलों को धो भी लिया जाये तब भी रसायन पूरी तरह फलों से छूटते नहीं हैं। इस तरह हमारे शरीर के लिए हानिकारक इन रसायनों का कुछ अंश हमारे शरीर में पहुंच जाता है। मुनाफे की संस्कृति ने व्यापारी को इतना जन विरोधी बना दिया है कि वह सिर्फ अपने भले को ही सोचता है। फलों और सब्जियों पर कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग होता है। यहां ऐसी अनेक कीट और रोगनाशक दवाएं इस्तेमाल की जा रही हैं जिनको विकसित देशों में प्रतिबंधित कर दिया गया है। डाल पर पके फल तोड़ने और उन्हें बाजार तक ले जाने में काफी फल नष्ट हो जो हैं, इसलिए अधपके फल तोड़कर उन्हें गोदामों में सहेज लिया जाता है। उनके मध्य फल पकाने वाले रसायन रख दिये जाते हैं। इस तरह पके फलों से भले ही खाने वालों को नुकसान होता है पर व्यपसायी अधिक मुनाफा कमाने में सफल रहते हैं। जरूरत इस बात की है कि रसायनों से फल पकाने के खिलाफ अभियान छेड़ा जाये और घरों में फलदार वृक्ष लगाने की आदत डाली जाए।