पुजारी प्रभात और संध्या के समय आरती भी सँजोता और घण्टा का नाद भी करता। उसके लिए आरती और घण्टा पूजा के समान उपकरण थे। लेकिन आरती और घण्टा में कशमकश चलती रहती। घण्टा ऊँचे पर टंगा था, भगवान की प्रतिमा से भी ऊँचे पर और आरती उससे नीचे वेदी पर रहती थी। घण्टा इससे अपने को उच्च समझता था। आरती भगवान की प्रतिमा के निकट रह जाती है; इसलिए वह भी अपने को कम नहीं समझती थी। एक दिन सुनसान के समय घण्टा बोला—‘‘देख आरती ! तू मेरा बड़प्पन सुन ले। आकार से ही देख तू कितनी छोटी और मैं कितना विशाल।’’ आरती तपाक से बोला—‘‘आकार से तो दीवार विशाल है और प्रतिमाजी छोटी तो क्या प्रतिमाजी से दीवार का अधिक बड़प्पन कोई मानेगा ?’’ घण्टा एक क्षण चुप रहा, फिर बोला—‘‘अच्छा देख ! मैं नाद करता हूँ तब मन्दिर के घेरे में ही नहीं आसपास भी दूर—दूर तक मेरी गूँज फैलती है और तु जरा से घेरे में टिमटिमाती—सी रहती है। बोल, मेरा प्रभाव—क्षेत्र बड़ा है या तेरा ?’’ आरती बोली—‘‘यह सही है कि मेरे प्रकाश की परिधि छोटी है, किन्तु मैं सारभूत प्रतिमाजी पर प्रकाश फेककर भक्तों को दर्शन करने का अवसर प्रदान करती हूँ। तू तो व्यर्थ ही शोरगुल करके मन्दिर को कंपा देता है और इसी में बड़प्पन मानता है।’’ तब घण्टे ने एक तर्क और रखा—‘‘देख ! मेरा नाद पंचेन्द्रिय का विषय है और तेरा प्रकाश चतुरिन्द्रिय का विषय ही रह जाता है। इस दृष्टि से भी क्या अपने को बड़ा समझती है ?’’ ‘‘लेकिन मेरे प्रकाश में भगवान के दर्शन होते हैं, तेरे नाद में केवल शोर है, वहाँ कुछ सार नहीं है। नाद में भी कोई अर्थ या सार हुआ है ?’’ तब घण्टा कुछ तेजी मेें आ गया और बोला—‘‘क्या नाद में कुछ अर्थ या सार नहीं है ? स्वयं भगवान तो नाद से ही संसार के जीवों को उपदेशामृत पिलाते थे। निरक्षरी ध्वनि की महिमा अपरम्पार है। सच तो यह है कि तू अल्प ज्योति बड़ों की बात क्या समझे ?’’ आरती जरा गम्भीर होकर बोली—‘‘लेकिन यह भूल न जाना कि ओम् नाद या दिव्यध्वनि तभी खिरती है, जब भगवान के हृदय में केवलज्ञान की ज्योति जगमगाती है। ज्योति का जन्म पहिले और नाद का पश्चात्। यह सच है कि हम दोनों एक—दूसरे के निकट बन्धु हैं।’’ घण्टा चुप हो गया। सचाई जानकर उसका हृदय परिर्वितत हो गया। उसके लिए आरती एक बन्धु बन गयी। दोनों में खूब मेल हो गया। जब आरती प्रतिमाजी के आगे नाचती तब घण्टा ताल देकर मधुर नाद करता। ज्योति और नाद के मिलन से मन्दिर मधुरिमा से भर जाता। भक्त भी भक्ति की लय में लीन हो जाते। तब से बराबर आरती और घण्टे में मेल चला आ रहा है।