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अपने स्वयं के पुरुषार्थ से आत्मा परमात्मा बन सकती है।
विश्व विजेता का बल आत्म विजेता के बल के सामने तुच्छ है।
हमारी वाणी मीठी—मधुर होगी तो सुनने वाले का चित्त प्रसन्न होगा।
परिवार का मुखिया वही हो सकता है जो पूरे परिवार की सुरक्षा का दायित्व उठाता हो।
इंसान तभी दु:खी होता है जब वह अंदर से अच्छा महसूस नहीं करता।
जिसके मन में कृतज्ञता का भाव है, उसे हमेशा मददगार मिलते हैं।
जीवन में अगर आगे बढ़ना है तो लगातार सीखना जरूरी है।
जो व्यक्ति हिम्मत नहीं हारता है वही व्यक्ति अपनी मंजिल पाता है।
जीवन एक ऐसा खेल है जिसमें व्यक्ति गिरता भी है और उठता भी है।
आत्मोत्थान के लिए आत्म—बोध आवश्यक है।
हम अपनी सुषुप्त शक्तियों को पहचानें एवं उन्हें जागृत करें।
संबंधों की मधुरता बनाये रखने के लिए यह जरूरी है कि हम दूसरों के गुणों की प्रशंसा करें और अवगुणों की ओर ध्यान न दें।
काम चाहे छोटा हो या बड़ा, उसे पूरे मनोयोग से करना चाहिये।
धन को कमाना, टिकाना और काम में लेना सभी में परेशानी ही परेशानी है।
यह शरीर व्याधि का घर है। न मालूम कब कोई रोग हो जाए अत: समय रहते इसका उपयोग धर्माराधना में कर लेना चाहिए।
श्रद्धा के बिना साधना सफल नहीं होती।
जिनवाणी विचारों को निर्मल बनाती है, विवेक को जागृत करती है।
मोक्ष का सुख शरीर सापेक्ष नहीं आत्म—सापेक्ष होता है।
यदि हमारी भावनाएँ शुद्ध होगी तो हमारा आचरण भी सही होगा।