जैन धर्म एवं णमोकार मंत्र प्रश्नोत्तरी
प्रश्न-१ जैन किसे कहते हैं?
उत्तर-१ जो कर्मों के विजेता जिनेन्द्र भगवान के उपासक हैं और उनक बतलाए गए मार्ग व सिद्धांतों पर चलते हैं उन्हें जैन कहते हैं।
उत्तर-१ जो कर्मों के विजेता जिनेन्द्र भगवान के उपासक हैं और उनक बतलाए गए मार्ग व सिद्धांतों पर चलते हैं उन्हें जैन कहते हैं।
प्रश्न-२ जैन धर्म का मूत्र मंत्र कौन सा है?
उत्तर-२ जैन धर्म का मूल मंत्र णमोकार मंत्र (महामंत्र) है। वह इस प्रकार है—णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।
उत्तर-२ जैन धर्म का मूल मंत्र णमोकार मंत्र (महामंत्र) है। वह इस प्रकार है—णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।
प्रश्न-३ यह णमोकार मंत्र किस भाषा में है व इसे किसने बनाया है?
उत्तर-३ णमोकार मंत्र प्राकृत भाषा में है व यह मंत्र अनादिनिधन मंत्र है। अर्थात् इसे किसी ने बनाया नहीं है, यह प्राकृतिकरूप
उत्तर-३ णमोकार मंत्र प्राकृत भाषा में है व यह मंत्र अनादिनिधन मंत्र है। अर्थात् इसे किसी ने बनाया नहीं है, यह प्राकृतिकरूप
से अनादिकाल से चला आ रहा है।
प्रश्न-४ णमोकार मंत्र में किसे नमस्कार किया गया है?
उत्तर-४ णमोकार मंत्र में पाँच परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया है।
उत्तर-४ णमोकार मंत्र में पाँच परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया है।
प्रश्न-५ पाँचों परमेष्ठियों के नाम बताओ?
उत्तर-५ पाँचों परमेष्ठियों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं-अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु।
उत्तर-५ पाँचों परमेष्ठियों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं-अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु।
प्रश्न-६ परमेष्ठी किसे कहते हैं?
उत्तर-६ जो परम पद में स्थित हैं, उन्हें परमेष्ठी कहते हैं।
उत्तर-६ जो परम पद में स्थित हैं, उन्हें परमेष्ठी कहते हैं।
प्रश्न-७ णमोकार मंत्र का लघु रूप बताओ?
उत्तर-७ णमोकार मंत्र का लघु रूप ‘ॐ’ है। इस ‘असिआउसा’ मंत्र में भी णमोकार मंत्र के पाँचों पद समाहित हो जाते हैं।
उत्तर-७ णमोकार मंत्र का लघु रूप ‘ॐ’ है। इस ‘असिआउसा’ मंत्र में भी णमोकार मंत्र के पाँचों पद समाहित हो जाते हैं।
प्रश्न-८ ‘ॐ’ में पाँचों परमेष्ठी कैसे समाहित हो तो हैं?
उत्तर-८ ‘अरिहंत’ का ‘अ’, सिद्ध (अशरीरी) का अ, आचार्य का ‘आ’, उपाध्याय का ‘उ’ और साधु अर्थात् मुनि का ‘म’, इस प्रकार अ+अ+आ+उ+म· ओम्’ बना।
उत्तर-८ ‘अरिहंत’ का ‘अ’, सिद्ध (अशरीरी) का अ, आचार्य का ‘आ’, उपाध्याय का ‘उ’ और साधु अर्थात् मुनि का ‘म’, इस प्रकार अ+अ+आ+उ+म· ओम्’ बना।
प्रश्न-९ णमोकार मंत्र का अर्थ बताओ?
उत्तर-९ णमो अरिहंताणं – अर्हंतों को नमस्कार हो। णमो सिद्धाणं – सिद्धों को नमस्कार हो। णमो आइरियाणं – आचार्यों को नमस्कार हो। णमो उवज्झायाणं – उपाध्यायों को नमस्कार हो। णमो लोए सव्वसाहूणं – लोक में सर्व साधुओें को नमस्कार हो।
उत्तर-९ णमो अरिहंताणं – अर्हंतों को नमस्कार हो। णमो सिद्धाणं – सिद्धों को नमस्कार हो। णमो आइरियाणं – आचार्यों को नमस्कार हो। णमो उवज्झायाणं – उपाध्यायों को नमस्कार हो। णमो लोए सव्वसाहूणं – लोक में सर्व साधुओें को नमस्कार हो।
प्रश्न-१० इस मंत्र में कितने अक्षर हैं? कितनी मात्राएँ हैं? कितने व्यंजन हैं?
उत्तर-१० इस मंत्र में ३५ अक्षर और ५८ मात्राएँ हैं। तथा १० व्यंजन हैं।
उत्तर-१० इस मंत्र में ३५ अक्षर और ५८ मात्राएँ हैं। तथा १० व्यंजन हैं।
प्रश्न-११ णमोकार मंत्र को कहाँ-कहाँ और कब जपना चाहिए?
उत्तर-११ णमोकार मंत्र को प्रत्येक अवस्था में और हर जगह जपना चाहिए। कहा भी है- अपवित्र या पवित्र जिस स्थिती में हो। यह पंचनमस्कार जपें पाप दूर हो।। (अपवित्र अवस्था में इस मंत्र को केवल मन में स्मरण करना चाहिए, बोलना नहीं चाहिए।
प्रश्न-१२ णमोकार मंत्र में सि’ से पहले अरहंत को क्यों नमस्कार किया गया है?
उत्तर-१२ णमोकार मंत्र में सिद्ध से पहले अरहंत को उपकार की दृष्टि से नमस्कार किया गया है क्योंकि सिद्ध भगवान की महिमा को बतलाने वाले अरहंत भगवान ही होते हैं। जैसे व्यवहार में कहा है-गुरु-गोविन्द दोउ खड़े काके लागूँ पाय। बलिहारि
उत्तर-१२ णमोकार मंत्र में सिद्ध से पहले अरहंत को उपकार की दृष्टि से नमस्कार किया गया है क्योंकि सिद्ध भगवान की महिमा को बतलाने वाले अरहंत भगवान ही होते हैं। जैसे व्यवहार में कहा है-गुरु-गोविन्द दोउ खड़े काके लागूँ पाय। बलिहारि
गुरु आपने गोविन्द दियो बताय।।
प्रश्न-१३ णमोकार मंत्र का अपमान करने वाले की कहानी सुनाओ?
उत्तर-१३ सुभौम चक्रवर्ती छ: खण्डों का स्वामी था। एक ज्योतिष्क देव ने शत्रुता से राजा को मारना चाहा परन्तु राजा के णमोकार मंत्र जपने से वह मार नहीं सका। तब उसने छल से राजा से कहा कि तुम इस णमोकार मंत्र पर पैर रख दो तो मैं तुम्हें छोड़ दूँगा। राजा ने वैसा ही किया। मंत्र के अपमान करने के कारण देव ने उसे समुद्र में डुबोकर मार दिया और वह मरकर सांतवें नरक में चला गया।
उत्तर-१३ सुभौम चक्रवर्ती छ: खण्डों का स्वामी था। एक ज्योतिष्क देव ने शत्रुता से राजा को मारना चाहा परन्तु राजा के णमोकार मंत्र जपने से वह मार नहीं सका। तब उसने छल से राजा से कहा कि तुम इस णमोकार मंत्र पर पैर रख दो तो मैं तुम्हें छोड़ दूँगा। राजा ने वैसा ही किया। मंत्र के अपमान करने के कारण देव ने उसे समुद्र में डुबोकर मार दिया और वह मरकर सांतवें नरक में चला गया।
प्रश्न-१४ णमोकार मंत्र की महिमा बताओ?
उत्तर-१४ एसो पंचणमोयारो, सव्व पावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं, पठमं हवइ मंगलं।।अर्थात् यह पंचनमस्कार मंत्र सब पापों का नाश करने वाला है और सभी मंगलों में पहला मंगल है।
उत्तर-१४ एसो पंचणमोयारो, सव्व पावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं, पठमं हवइ मंगलं।।अर्थात् यह पंचनमस्कार मंत्र सब पापों का नाश करने वाला है और सभी मंगलों में पहला मंगल है।
प्रश्न-१५ इस महामंत्र से कितने मंत्र निकले हैं?
उत्तर-१५ इस महामंत्र से ८४ लाख मंत्र निकले हैं।
प्रश्न-१६ णमोकार मंत्र को सुनकर सद्गति प्राप्त करने वाले किसी जीव की संक्षिप्त कहानी सुनावें?
उत्तर-१६ एक बार जीवन्धर कुमार ने मरते हुए कुत्ते को णमोकार मंत्र सुनाया जिसके प्रभाव से वह मरकर देवगति में सुदर्शन यक्षेन्द्र हो गया।
उत्तर-१६ एक बार जीवन्धर कुमार ने मरते हुए कुत्ते को णमोकार मंत्र सुनाया जिसके प्रभाव से वह मरकर देवगति में सुदर्शन यक्षेन्द्र हो गया।
प्रश्न-१७ णमोकार मंत्र सुनने से सद्गति प्राप्त करने वाले किन्हीं दो पशुओं के नाम बताओ?
उत्तर-१७ णमोकार मंत्र सुनने से सद्गति प्राप्त करने वाले दो पशुओं के नाम हैं-१. कुत्ता जो जीवंधर कुमार द्वारा णमोकार मंत्र सुनकर देव हुआ और बैल जो णमोकार मंत्र सुन कालान्तर में सुग्रीव हुआ।
उत्तर-१७ णमोकार मंत्र सुनने से सद्गति प्राप्त करने वाले दो पशुओं के नाम हैं-१. कुत्ता जो जीवंधर कुमार द्वारा णमोकार मंत्र सुनकर देव हुआ और बैल जो णमोकार मंत्र सुन कालान्तर में सुग्रीव हुआ।
प्रश्न-१८ अरहंताणं, अरिहंताणं में कौन सा शुद्ध पाठ है?
उत्तर-१८ प्राचीन आठ अरिहंताणं है और दोनों ही पाठ शुद्ध है।
उत्तर-१८ प्राचीन आठ अरिहंताणं है और दोनों ही पाठ शुद्ध है।
प्रश्न-१९ अरिहंत परमेष्ठी का लक्षण बताओ?
उत्तर-१९ जिन्होंने चार घातिया कर्मों का नाश कर दिया है, जिनमें छियालीस गुण होते हैं और अठारह दोष नहीं होते हैं वे अरिहंत परमेष्ठी कहलाते हैं।
उत्तर-१९ जिन्होंने चार घातिया कर्मों का नाश कर दिया है, जिनमें छियालीस गुण होते हैं और अठारह दोष नहीं होते हैं वे अरिहंत परमेष्ठी कहलाते हैं।
प्रश्न-२० अरिहंत भगवान के कितने कर्म बाकी हैं?
उत्तर-२० अरिहंत भगवान के चार अघातिया कर्म बाकी हैं- १. वेदनीय २. आयु ३. नाम ४. गोत्र
प्रश्न-२१ अरिहंत भगवान के कितने ज्ञान होते हैं?
उत्तर-२१ अरिहंत भगवान के मत्र एक केवलज्ञान ही होता है।
उत्तर-२१ अरिहंत भगवान के मत्र एक केवलज्ञान ही होता है।
प्रश्न-२२ अरिहंत भगवान कौन सा गुणस्थान होता है?
उत्तर-२२ अरहंत भगवान के सयोगकेवली नाम का तेरहवाँ गुणस्थान होता है।
उत्तर-२२ अरहंत भगवान के सयोगकेवली नाम का तेरहवाँ गुणस्थान होता है।
प्रश्न-२३ क्या अरिहंत परमेष्ठी पीछी कमण्डलु रखते हैं?
उत्तर-२३ नहीं, अरिहंत परमेष्ठी पीछी कमण्डलु नहीं रखते हैं। क्योंकि वे मुनि अवस्था से ऊपर सकलपरमात्मा की श्रेणी में आ जाते हैं।
उत्तर-२३ नहीं, अरिहंत परमेष्ठी पीछी कमण्डलु नहीं रखते हैं। क्योंकि वे मुनि अवस्था से ऊपर सकलपरमात्मा की श्रेणी में आ जाते हैं।
प्रश्न-२४ अरिहंत भगवान के ४६ गुण कौन-कौन से हैं?
उत्तर-२४ ३४ अतिशय, ८ प्रातिहार्य और ४ अनंतचतुष्टय ये अरिंहत के ४६ गुण हैं।
उत्तर-२४ ३४ अतिशय, ८ प्रातिहार्य और ४ अनंतचतुष्टय ये अरिंहत के ४६ गुण हैं।
प्रश्न-२५ अतिशय किसे कहते हैं?
उत्तर-२५ सर्व साधारण प्राणियों में नहीं पायी जाने वाली अद्भुत या अनोखी बात को अतिशय कहते हैं।
उत्तर-२५ सर्व साधारण प्राणियों में नहीं पायी जाने वाली अद्भुत या अनोखी बात को अतिशय कहते हैं।
प्रश्न-२६ ३४ अतिशय कौन-कौन से हैं?
उत्तर-२६ जन्म के १० अतिशय, केवलज्ञान के १० और देवकृत १४ अतिशय होते हैं।
उत्तर-२६ जन्म के १० अतिशय, केवलज्ञान के १० और देवकृत १४ अतिशय होते हैं।
प्रश्न-२७ जन्म के दश अतिशयों के नाम बताओ?
उत्तर-२७ जन्म के १० अतिशय इस प्रकार हैं—अतिशय सुन्दर रूप, सुगंधित शरीर, पसीना नहीं आना, मल-मूत्र रहित होना, हित-मित प्रिय वचन, अतुल बल, सफेद खून, शरीर में १००८ लक्षण, सम चतुरस्र संस्थान और वङ्कावृषभनाराच संहनन।
उत्तर-२७ जन्म के १० अतिशय इस प्रकार हैं—अतिशय सुन्दर रूप, सुगंधित शरीर, पसीना नहीं आना, मल-मूत्र रहित होना, हित-मित प्रिय वचन, अतुल बल, सफेद खून, शरीर में १००८ लक्षण, सम चतुरस्र संस्थान और वङ्कावृषभनाराच संहनन।
प्रश्न-२८ केवलज्ञान के दस अतिशयों के नाम बताओ?
उत्तर-२८ भगवान के चारों ओर सौ-सौ योजन तक सुभिक्षता, आकाश में गमन, एक मुख होकर भी चार मुख दिखना, हिंसा न होना, उपसर्ग नहीं होना, ग्रास वाला आहार नहीं लेना, समस्त विद्याओं का स्वामीपना, नख केश नहीं बढ़ना, नेत्रों की पलके नहीं झपकना और शरीर की परछाईं नहीं पड़ना, केवलज्ञान के होने पर ये दश अतिशय होते हैं।
उत्तर-२८ भगवान के चारों ओर सौ-सौ योजन तक सुभिक्षता, आकाश में गमन, एक मुख होकर भी चार मुख दिखना, हिंसा न होना, उपसर्ग नहीं होना, ग्रास वाला आहार नहीं लेना, समस्त विद्याओं का स्वामीपना, नख केश नहीं बढ़ना, नेत्रों की पलके नहीं झपकना और शरीर की परछाईं नहीं पड़ना, केवलज्ञान के होने पर ये दश अतिशय होते हैं।
प्रश्न-२९ देवकृत १४ अतिशय कौन-कौन से हैं?
उत्तर-२९ भगवान की अर्थ—मागधी भाषा, जीवों में परस्पर मित्रता, दिशाओं की निर्मलता, आकाश की निर्मलता, छहों ऋतुओं के फल-फूलों का एक ही समय में फलना-फूलना, एक योजन तक पृथ्वी का दर्पण की तरह निर्मल होना, चलते समय भगवान के चरणों के नीचे सुवर्ण कमल की रचना, आकाश में जय-जय शब्द, मंद सुगन्धित पवन, सुगंधमय जल की वर्षा, पवन कुमार देवों द्वारा भूमि की निष्कंटकता, समस्त प्राणियों को आनंद, भगवान के आगे धर्मचक्र का चलना और आठ मंगल द्रव्यों का साथ रहना ये १४ अतिशय देवों द्वारा किये जाते हैं।
प्रश्न-३० यह देवकृत क्यों कहलाते हैं? यह कब होते हैं?
उत्तर-३० देवों द्वारा किये जाने के कारण ये अतिशय देवकृत कहलाते हैं तथा यह केवलज्ञान होने पर होते हैं।
उत्तर-३० देवों द्वारा किये जाने के कारण ये अतिशय देवकृत कहलाते हैं तथा यह केवलज्ञान होने पर होते हैं।
प्रश्न-३१ आठ प्रातिहार्य के नाम बताओ?
उत्तर-३१ अशोक वृक्ष, रत्नमय सिंहासन, तीन छत्र, भामण्डल, दिव्यध्वनि, देवों द्वारा पुष्पवर्षा, यक्षदेवों द्वारा चौंसठ चंवर ढोरे जाना और दुंदुभी बाजे बजाना ये आठ प्रातिहार्य हैं।
प्रश्न-३२ प्रातिहार्य किसे कहते हैं?
उत्तर-३२ विशेष शोभा की चीजों को प्रातिहार्य कहते हैं।
उत्तर-३२ विशेष शोभा की चीजों को प्रातिहार्य कहते हैं।
प्रश्न-३३ अनंत चतुष्टय कौन-कौन से हैं?
उत्तर-३३ अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अनंत सुख और अनंतवीर्य ये चार अनंतचुष्टय हैं अर्थात् भगवान के ये दर्शन ज्ञानादि अंत रहित होते हैं।
उत्तर-३३ अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अनंत सुख और अनंतवीर्य ये चार अनंतचुष्टय हैं अर्थात् भगवान के ये दर्शन ज्ञानादि अंत रहित होते हैं।
प्रश्न-३४ अठारह दोषों के नाम बताओ?
उत्तर-३४ जन्म, बुढ़ापा, प्याय, भूख, आश्चर्य, पीड़ा, दु:ख, रोग, शोक, गर्व, मोह, भय, निद्रा, चिन्ता, पसीना, राग, द्वेष और मरण ये अठारह दोष अरिहंत भगवान में नहीं होते हैं।
उत्तर-३४ जन्म, बुढ़ापा, प्याय, भूख, आश्चर्य, पीड़ा, दु:ख, रोग, शोक, गर्व, मोह, भय, निद्रा, चिन्ता, पसीना, राग, द्वेष और मरण ये अठारह दोष अरिहंत भगवान में नहीं होते हैं।
प्रश्न-३५ सिद्ध परेमष्ठी का स्वरूप बताओ?
उत्तर-३५ जो आठों कर्मों का नाश हो जाने से नित्य, निरंजन, अशरीरी है, लोक के अग्रभाग पर विराजमान हैं वे सिद्ध परमेष्ठी कहलाते हैं। इनके आठ मूलगुण होते हैं, उत्तर गुण तो अनंतानंत हैं।
उत्तर-३५ जो आठों कर्मों का नाश हो जाने से नित्य, निरंजन, अशरीरी है, लोक के अग्रभाग पर विराजमान हैं वे सिद्ध परमेष्ठी कहलाते हैं। इनके आठ मूलगुण होते हैं, उत्तर गुण तो अनंतानंत हैं।
प्रश्न-३६ सिद्धों के वे आठ मूल गुण कौन-कौन से हैं?
उत्तर-३६ क्षायिक सम्यक्त्व, अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अगुरुलघुत्व, अवगाहनत्व, सूक्ष्मत्व, अनंतवीर्य और अत्याबाधत्व ये आठ मूल गुण सिद्धों के हैं?
उत्तर-३६ क्षायिक सम्यक्त्व, अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अगुरुलघुत्व, अवगाहनत्व, सूक्ष्मत्व, अनंतवीर्य और अत्याबाधत्व ये आठ मूल गुण सिद्धों के हैं?
प्रश्न-३७ सिद्ध परमेष्ठी ने कितने कर्मों का नाश कर दिया है?
उत्तर-३७ सिद्ध परमेष्ठी ने आठों कर्मों का नाश कर दिया है।
उत्तर-३७ सिद्ध परमेष्ठी ने आठों कर्मों का नाश कर दिया है।
प्रश्न-३८ क्या वे वापस संसार में लौट कर आवेंगे?
उत्तर-३८ नहीं, चूँकि उन्होंने आठों कर्मों का नाश कर दिया है इसलिए वे संसार में वापस लौटकर नहीं आवेंगे।
उत्तर-३८ नहीं, चूँकि उन्होंने आठों कर्मों का नाश कर दिया है इसलिए वे संसार में वापस लौटकर नहीं आवेंगे।
प्रश्न-३९ आचार्य परमेष्ठी का क्या स्वरूप है?
उत्तर-३९ जो पाँच आचारों का स्वयं पालन करते हैं और दूसरे मुनियों से कराते हैं, मुनिसंघ के अधिपति हैं और शिष्यों को दीक्षा व प्रायश्चित आदि देते हैं, वे आचार्य परमेष्ठी हैं।
उत्तर-३९ जो पाँच आचारों का स्वयं पालन करते हैं और दूसरे मुनियों से कराते हैं, मुनिसंघ के अधिपति हैं और शिष्यों को दीक्षा व प्रायश्चित आदि देते हैं, वे आचार्य परमेष्ठी हैं।
प्रश्न-४० आचार्य परमेष्ठी के कितने मूलगुण होते हैं?
उत्तर-४० आचार्य परमेष्ठी के ३६ मूलगुण होते हैं।
उत्तर-४० आचार्य परमेष्ठी के ३६ मूलगुण होते हैं।
प्रश्न-४१ छत्तीस मूलगुण कौन-कौन से हैं?
उत्तर-४१ १२ तप, १० धर्म, ५ आचार, ६ आवश्यक और ३ गुटित ये आचार्य के ३६ मूलगुण हैं।
उत्तर-४१ १२ तप, १० धर्म, ५ आचार, ६ आवश्यक और ३ गुटित ये आचार्य के ३६ मूलगुण हैं।
प्रश्न-४२ उत्तर गुण कितने हैं?
उत्तर-४२ उत्तर गुण अनेक हैं।
उत्तर-४२ उत्तर गुण अनेक हैं।
प्रश्न-४३ बारह प्रकार के तपों के नाम बताओ?
उत्तर-४३ अनशन (उपवास), ऊनोदर (भूख से कम खाना) व्रतपरिसंख्यान (आहार के समय अट्पटा नियम), रसपरित्याग (नमक आदि रस त्याग), विविक्त शय्यासन (एकांत स्थान में सोना, बैठना), कायक्लेश (शरीर से गर्मी, सर्दी आदि सहन करना) ये छह बाह्य तप हैं। प्रायश्चित (दोष लगने पर दण्ड लेना), विनय (विनय करना), वैयावृत्य (रोगी आदि साधु की सेवा करना), स्वाध्याय (शास्त्र पढ़ना), व्युत्सर्ग (शरीर से ममत्व छोड़ना) और ध्यान (एकाग्र होकर आत्मचिन्तन करना) ये छह अन्तरंग तप हैं।
उत्तर-४३ अनशन (उपवास), ऊनोदर (भूख से कम खाना) व्रतपरिसंख्यान (आहार के समय अट्पटा नियम), रसपरित्याग (नमक आदि रस त्याग), विविक्त शय्यासन (एकांत स्थान में सोना, बैठना), कायक्लेश (शरीर से गर्मी, सर्दी आदि सहन करना) ये छह बाह्य तप हैं। प्रायश्चित (दोष लगने पर दण्ड लेना), विनय (विनय करना), वैयावृत्य (रोगी आदि साधु की सेवा करना), स्वाध्याय (शास्त्र पढ़ना), व्युत्सर्ग (शरीर से ममत्व छोड़ना) और ध्यान (एकाग्र होकर आत्मचिन्तन करना) ये छह अन्तरंग तप हैं।
प्रश्न-४४ तप किनते प्रकार के होते हैं?
उत्तर-४४ तप बारह प्रकार के होते हैं-छह बाह्य तप, छह अंतरंग तप।
उत्तर-४४ तप बारह प्रकार के होते हैं-छह बाह्य तप, छह अंतरंग तप।
प्रश्न-४५ दश धर्म कौन-कौन से हैं?
उत्तर-४५ उत्तर क्षमा, मादर्व, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिञ्चन्य व ब्रह्मचर्य ये दश धर्म हैं।
प्रश्न-४६ आचार्य कौन से पंचाचारों का पालन करते हैं।
उत्तर-४६ दर्शनाचार अर्थात् दोषरहित सम्यग्दर्शन, ज्ञानाचार अर्थात् दोषरहित सम्यग्ज्ञान, चारित्राचार अर्थात् निर्दोष चारित्र, तपाचार अर्थात् निर्दोष तपश्चरण और वीर्याचार अर्थात् अपने आत्मबल को प्रगट करना ये पाँच आचार हैं।
उत्तर-४६ दर्शनाचार अर्थात् दोषरहित सम्यग्दर्शन, ज्ञानाचार अर्थात् दोषरहित सम्यग्ज्ञान, चारित्राचार अर्थात् निर्दोष चारित्र, तपाचार अर्थात् निर्दोष तपश्चरण और वीर्याचार अर्थात् अपने आत्मबल को प्रगट करना ये पाँच आचार हैं।
प्रश्न-४७ तप किसे कहते हैं?
उत्तर-४७ ‘‘इच्छानिरोधस्तप:’’ इच्छाओं को रोकना ही तप कहलाता है।
उत्तर-४७ ‘‘इच्छानिरोधस्तप:’’ इच्छाओं को रोकना ही तप कहलाता है।
प्रश्न-४८ तीन गुप्तियों के नाम बताओ?
उत्तर-४८ मोनगुप्ति—मन को वश में रखना, वचनगुप्ति—वचन को वश में रखना और कायगुप्ति—काय को वश में रखना ये तीन गुप्तियाँ हैं।
उत्तर-४८ मोनगुप्ति—मन को वश में रखना, वचनगुप्ति—वचन को वश में रखना और कायगुप्ति—काय को वश में रखना ये तीन गुप्तियाँ हैं।
प्रश्न-४९ छह आवश्यक कौन-कौन से हैं?
उत्तर-४९ समता, वंदना, स्तुति, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय और कायोत्सर्ग ये छह आवश्यक हैं।
प्रश्न-५० समता किसे कहते हैं?
उत्तर-५० सतस्त जीवों पर समता भाव और त्रिकाल सामायिक करना समता है।
उत्तर-५० सतस्त जीवों पर समता भाव और त्रिकाल सामायिक करना समता है।
प्रश्न-५१ वंदना किसे कहते हैं? स्तुति किसे कहते हैं?
उत्तर-५१ किसी एक तीर्थंकर को नमस्कार करना वंदना है। चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति करना ही स्तुति है।
उत्तर-५१ किसी एक तीर्थंकर को नमस्कार करना वंदना है। चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति करना ही स्तुति है।
प्रश्न-५२ प्रतिक्रमण क्या है?
उत्तर-५२ निज में लगे हुए दोषों को दूर करना प्रतिक्रमण है।
उत्तर-५२ निज में लगे हुए दोषों को दूर करना प्रतिक्रमण है।
प्रश्न-५३ स्वाध्याय और कायोत्सर्ग में क्या अंतर है?
उत्तर-५३ शास्त्रों को पढ़ना स्वाध्याय कहलाता है और शरीर में ममत्व छोड़ना और ध्यान करना कायोत्सर्ग है।
उत्तर-५३ शास्त्रों को पढ़ना स्वाध्याय कहलाता है और शरीर में ममत्व छोड़ना और ध्यान करना कायोत्सर्ग है।
प्रश्न-५४ ‘प्रत्याख्यान’ नामक क्रिया का क्या अर्थ है?
उत्तर-५४ आगे होने वाले दोषों का और आहार-पानी आदि का त्याग करना ‘प्रत्याख्यान’ है।
उत्तर-५४ आगे होने वाले दोषों का और आहार-पानी आदि का त्याग करना ‘प्रत्याख्यान’ है।
प्रश्न-५५ उपाध्याय परमेष्ठी का स्वरूप बताओ?
उत्तर-५५ जो मुनि ११ अंग और चौदह पूर्व के ज्ञानी होते हैं अथवा तत्काल के सभी शास्त्रों के ज्ञानी होते हैं तथा जो संघ में साधुओं को पढ़ाते हैं वे उपाध्याय परमेष्ठी होते हैं।
उत्तर-५५ जो मुनि ११ अंग और चौदह पूर्व के ज्ञानी होते हैं अथवा तत्काल के सभी शास्त्रों के ज्ञानी होते हैं तथा जो संघ में साधुओं को पढ़ाते हैं वे उपाध्याय परमेष्ठी होते हैं।
प्रश्न-५६ इनके २५ मूलगुण कौन से हैं?
उत्तर-५६ ११ अंग और १४ पूर्व को पढ़ना-पढ़ना ही इनके २५ मूलगुण हैं।
उत्तर-५६ ११ अंग और १४ पूर्व को पढ़ना-पढ़ना ही इनके २५ मूलगुण हैं।
प्रश्न-५७ ग्यारह अंगों के नाम बताओ?
उत्तर-५७ आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञातृ कथांग, उपासकाध्ययनांग, अंतकृद्दशांग, अनुत्तरोपपादकदशांग, प्रश्नव्याकरणांग और विपाक सूत्रांग ये ११ अंग हैं।
उत्तर-५७ आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञातृ कथांग, उपासकाध्ययनांग, अंतकृद्दशांग, अनुत्तरोपपादकदशांग, प्रश्नव्याकरणांग और विपाक सूत्रांग ये ११ अंग हैं।
प्रश्न-५८ चौदह पूर्वों के नाम बताओ?
उत्तर-५८ उत्पादपूर्व, अग्रायणीपूर्व, वीर्यानुप्रवादपूर्व, अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व, ज्ञानप्रवादपूर्व, कर्मप्रवाद पूर्व, सत्प्रवादपूर्व, आत्मप्रवादपूर्व, प्रत्याख्यानप्रवादपूर्व, विद्यानुवादपूर्व, कल्याणप्रवादपूर्व, प्राणानुवाद पूर्व, क्रियाविशालपूर्व और लोकविन्दुपूर्व ये चौदह पूर्व कहलाते हैं।
उत्तर-५८ उत्पादपूर्व, अग्रायणीपूर्व, वीर्यानुप्रवादपूर्व, अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व, ज्ञानप्रवादपूर्व, कर्मप्रवाद पूर्व, सत्प्रवादपूर्व, आत्मप्रवादपूर्व, प्रत्याख्यानप्रवादपूर्व, विद्यानुवादपूर्व, कल्याणप्रवादपूर्व, प्राणानुवाद पूर्व, क्रियाविशालपूर्व और लोकविन्दुपूर्व ये चौदह पूर्व कहलाते हैं।
प्रश्न-५९ साधु परमेष्ठी का स्वरूप बताओ?
उत्तर-५९ जो पाँचों इन्द्रियों के विषयों से तथा आरम्भ और परिग्रह से रहित होते हैं, ज्ञान, ध्यान और तप में लीन रहते हैं ऐसे दिगम्बर मुनि मोक्षमार्ग का साधन करने वाले होने से साधु परमेष्ठी कहलाते हैं।
उत्तर-५९ जो पाँचों इन्द्रियों के विषयों से तथा आरम्भ और परिग्रह से रहित होते हैं, ज्ञान, ध्यान और तप में लीन रहते हैं ऐसे दिगम्बर मुनि मोक्षमार्ग का साधन करने वाले होने से साधु परमेष्ठी कहलाते हैं।
प्रश्न-६० इनके कितने मूलगुण होते हैं?
उत्तर-६० इनके २८ मूलगुण होते हैं।
उत्तर-६० इनके २८ मूलगुण होते हैं।
प्रश्न-६१ अट्ठाईस मूलगुण कौन-कौन से हैं?
उत्तर-६१ ५ महाव्रत, ४ समिति, ५ इन्द्रियविजय, ६ आवश्यक और ७ शेषगुण ये साधु के २८ मूलगुण हैं।
उत्तर-६१ ५ महाव्रत, ४ समिति, ५ इन्द्रियविजय, ६ आवश्यक और ७ शेषगुण ये साधु के २८ मूलगुण हैं।
प्रश्न-६२ पाँच प्रकार के महाव्रत कौन से हैं?
उत्तर-६२ हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पाँचों पापों का मन, वचन, काय से सर्वथा त्याग कर देना ये पाँच महाव्रत कहलाते हैं।
उत्तर-६२ हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पाँचों पापों का मन, वचन, काय से सर्वथा त्याग कर देना ये पाँच महाव्रत कहलाते हैं।
प्रश्न-६३ पाँच समितियाँ कौन-कौन सी हैं।
उत्तर-६३ ईर्या, भाषा, एषणा, आदान-निक्षेपण और प्रतिष्ठापना ये पाँच समितियाँ हैं।
उत्तर-६३ ईर्या, भाषा, एषणा, आदान-निक्षेपण और प्रतिष्ठापना ये पाँच समितियाँ हैं।
प्रश्न-६४ ईर्यासमिति किसे कहते हैं?
उत्तर-६४ चार हाथ आगे जमीन देखकर चलना ईर्यासमिति है।
प्रश्न-६५ भाषा समिति का अर्थ बताओ?
उत्तर-६५ हित-मित-प्रिय वचन बोलना भाषा समिति है।
उत्तर-६५ हित-मित-प्रिय वचन बोलना भाषा समिति है।
प्रश्न-६६ एषणा समिति का क्या अर्थ है?
उत्तर-६६ निर्दोष आहार ग्रहण करना एषणा समिति है।
उत्तर-६६ निर्दोष आहार ग्रहण करना एषणा समिति है।
प्रश्न-६७ आदान-निक्षेपण समिति किसे कहते हैं?
उत्तर-६७ पिच्छी से देख-शोधकर पुस्तक आदि को उठाना-धरना आदान-निक्षेपण समिति है।
उत्तर-६७ पिच्छी से देख-शोधकर पुस्तक आदि को उठाना-धरना आदान-निक्षेपण समिति है।
प्रश्न-६८ प्रतिष्ठापना समिति किसे कहा है?
उत्तर-६८ जीव रहित भूमि में मल आदि विसर्जित करना प्रतिष्ठापना समिति है।
उत्तर-६८ जीव रहित भूमि में मल आदि विसर्जित करना प्रतिष्ठापना समिति है।
प्रश्न-६९ इन्द्रियविजय नामक पाँच मूलगुण कौन से हैं?
उत्तर-६९ स्पर्शप, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण-इन पाँचों इन्द्रियों को वश करना ये इन्द्रियविजय नामक पाँच मूलगुण हैं।
उत्तर-६९ स्पर्शप, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण-इन पाँचों इन्द्रियों को वश करना ये इन्द्रियविजय नामक पाँच मूलगुण हैं।
प्रश्न-७० मुनियों के ७ शेष गुण कौन से हैं?
उत्तर-७० स्नाना का त्याग, भूमि पर शयन, वस्त्र त्याग, केशों का लोच, दिन में एक बार लघु भोजन, दातोन का त्याग और खड़े
उत्तर-७० स्नाना का त्याग, भूमि पर शयन, वस्त्र त्याग, केशों का लोच, दिन में एक बार लघु भोजन, दातोन का त्याग और खड़े
होकर आहारग्रहण ये ७ शेष गुण हैं।
प्रश्न-७१ मुनि कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-७१ मुनि पाँच प्रकार के होते हैं—पुलाक, वकुश, कुशील, निग्र्रन्थ और स्तानक। एक और प्रकार से मुनि दो प्रकार के होते हैं—१. जिनकल्पी २. स्थविरकल्पी।
उत्तर-७१ मुनि पाँच प्रकार के होते हैं—पुलाक, वकुश, कुशील, निग्र्रन्थ और स्तानक। एक और प्रकार से मुनि दो प्रकार के होते हैं—१. जिनकल्पी २. स्थविरकल्पी।
प्रश्न-७२ जिनकल्पी मुनि किसे कहते हैं?
उत्तर-७२ जितेन्द्रिय, सम्यक्त्व रत्न के विभूषित, एकादश अंग के ज्ञाता, निरंतर मौन रखने वाले, वङ्का वृषभमाराचसंहनन के धारी, वर्षाकाल में षट्मास निराहार रहने वाले व जिनभगवान सदृश विहार करने वाले जिनकल्पी है।
उत्तर-७२ जितेन्द्रिय, सम्यक्त्व रत्न के विभूषित, एकादश अंग के ज्ञाता, निरंतर मौन रखने वाले, वङ्का वृषभमाराचसंहनन के धारी, वर्षाकाल में षट्मास निराहार रहने वाले व जिनभगवान सदृश विहार करने वाले जिनकल्पी है।
प्रश्न-७३ स्थाविरकल्पी मुनि का क्या लक्षण है?
उत्तर-७३ जिनमुद्रा के धारक, संघ के साथ विहार करने वाले, धर्म प्रभावना तथा उत्तम-उत्तम शिष्यों के रक्षण व वृद्ध साधुओं के रक्षण व पोषण में सावधान रहने वाले साधु स्थविरकल्पी मुनि कहलाते हैं।
उत्तर-७३ जिनमुद्रा के धारक, संघ के साथ विहार करने वाले, धर्म प्रभावना तथा उत्तम-उत्तम शिष्यों के रक्षण व वृद्ध साधुओं के रक्षण व पोषण में सावधान रहने वाले साधु स्थविरकल्पी मुनि कहलाते हैं।
प्रश्न-७४ मुनिराज कौन से १३ प्रकार के चारित्र का पालन करते हैं?
उत्तर-७४ पाँच महाव्रत, पाँच समिति और तीन गुप्ति ये तेरह प्रकार के चारित्र हैं जिनका कि मुनिराज पालन करते हैं।
उत्तर-७४ पाँच महाव्रत, पाँच समिति और तीन गुप्ति ये तेरह प्रकार के चारित्र हैं जिनका कि मुनिराज पालन करते हैं।
प्रश्न-७५ छ: प्रकार के आहार कौन से हैं?
उत्तर-७५ ओजाहार, लेपाहार, मानसाहार, कवलाहार, कर्माहार और नोकर्माहार ये आहार के छ: भेद हैं।
प्रश्न-७६ कवलाहार का अर्थ बताओ?
उत्तर-७६ कवलाहार का अर्थ ग्रास का आहार करने से है।
प्रश्न-७७ परीषह कितनी होती है? उनके नाम बताओ?
उत्तर-७७ परीषह बाईस होती हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं—क्षुधा, तृषा, शति, उष्ण, दंशमशक, नग्नता, अरति, स्त्री, चर्या, निषद्या, शय्या, आक्रोश, तद्य, याचना, अलाभ, रोग, तृणस्पर्श, मल, सत्कार, पुस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान और अदर्शन।
उत्तर-७७ परीषह बाईस होती हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं—क्षुधा, तृषा, शति, उष्ण, दंशमशक, नग्नता, अरति, स्त्री, चर्या, निषद्या, शय्या, आक्रोश, तद्य, याचना, अलाभ, रोग, तृणस्पर्श, मल, सत्कार, पुस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान और अदर्शन।
प्रश्न-७८ एक साथ कितनी परीषह उदय में आ सकती है?
उत्तर-७८ एक साथ उन्नीस परीषह उदय में आ सकती हैं।
उत्तर-७८ एक साथ उन्नीस परीषह उदय में आ सकती हैं।
प्रश्न-७९ उपसर्ग किन-किन के द्वारा होते हैं? उपसर्ग किसे कहते हैं?
उत्तर-७९ उपसर्ग प्रकृति द्वारा तथा व्यन्तद देवों, मनुष्यों व तिर्यंचों के द्वारा होते हैं। उपसर्ग उसे कहते हैं जो दूसरों के द्वारा दिया गया कष्ट हो और उसे सहन करना पड़े।
उत्तर-७९ उपसर्ग प्रकृति द्वारा तथा व्यन्तद देवों, मनुष्यों व तिर्यंचों के द्वारा होते हैं। उपसर्ग उसे कहते हैं जो दूसरों के द्वारा दिया गया कष्ट हो और उसे सहन करना पड़े।
प्रश्न-८० परीषह एवं उपसर्ग में क्या अंतर है?
उत्तर-८० कष्टों को स्वयं बुला-बुला कर सहन करना परीषह है तथा दूसरों द्वारा किये जाने वाले कष्टों को सहन करना पड़े वह उपसर्ग कहलाता है।
उत्तर-८० कष्टों को स्वयं बुला-बुला कर सहन करना परीषह है तथा दूसरों द्वारा किये जाने वाले कष्टों को सहन करना पड़े वह उपसर्ग कहलाता है।
प्रश्न-८१ केशलोंच क्यों किये जाते हैं?
उत्तर-८१ साधुओं के मूलगुण होने के साथ में अहिंसक, अयाचक और अपरिग्रह के सूचक हैं।
उत्तर-८१ साधुओं के मूलगुण होने के साथ में अहिंसक, अयाचक और अपरिग्रह के सूचक हैं।
प्रश्न-८२ दिगम्बर जैन पिच्छीधारी कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-८२ दिगम्बर जैन पिच्छीधारी चार प्रकार के होते हैं-१. मुनि २. आर्यिका ३. क्षुल्लक ४. क्षुल्लिका
उत्तर-८२ दिगम्बर जैन पिच्छीधारी चार प्रकार के होते हैं-१. मुनि २. आर्यिका ३. क्षुल्लक ४. क्षुल्लिका
प्रश्न-८३ जैन साधु केशलोंच कब करते हैं?
उत्तर-८३ जैन साधु २ महीने से ४ महीने के भीतर-भीतर केशलोंच करते हैं। उत्तम २ माह के अंतराल से, मध्यम ३ माह में अंतराल में और जघन्य ४ माह के अंतराल में करते हैं।
उत्तर-८३ जैन साधु २ महीने से ४ महीने के भीतर-भीतर केशलोंच करते हैं। उत्तम २ माह के अंतराल से, मध्यम ३ माह में अंतराल में और जघन्य ४ माह के अंतराल में करते हैं।
प्रश्न-८४ कितनी अंतराय टालकर मुनि-आर्यिका आहार लेते हैं?
उत्तर-८४ ३२ प्रकार की अंतराय टालकर मुनि-आर्यिका आहार लेते हैं।
उत्तर-८४ ३२ प्रकार की अंतराय टालकर मुनि-आर्यिका आहार लेते हैं।
प्रश्न-८५ ३२ प्रकार की अंतराय के नाम बताओ?
उत्तर-८५ काक, अमेध्य, छर्दि, रोधन, रुधिर, अश्रुपात, जान्वध: परामर्श, जानूपरिव्यतिक्रम, नाभ्यधोनिर्गमन, प्रत्याख्यात सेवना, जन्तुवध, काकादि पिंडहरण, ग्रासपतन, पाणिजन्तुवध, मांसादिदर्शन, पादान्तर प्राणिनिर्गमन, देवाधुपसर्ग, भाजनसम्पात, उच्चार, प्रस्रवण, भोज्यगृहप्रवेश, पतन, उपवेशन, सदंश, भूमिस्पर्श, निष्ठीवन, करेणकिंचित्ग्रहण, उदरकृमिनिर्गमन, अदत्तग्रहण, प्रहार, ग्रामदाह, पादेन किंचित् ग्रहण ये ३२ प्रकार की अंतराय हैं।
उत्तर-८५ काक, अमेध्य, छर्दि, रोधन, रुधिर, अश्रुपात, जान्वध: परामर्श, जानूपरिव्यतिक्रम, नाभ्यधोनिर्गमन, प्रत्याख्यात सेवना, जन्तुवध, काकादि पिंडहरण, ग्रासपतन, पाणिजन्तुवध, मांसादिदर्शन, पादान्तर प्राणिनिर्गमन, देवाधुपसर्ग, भाजनसम्पात, उच्चार, प्रस्रवण, भोज्यगृहप्रवेश, पतन, उपवेशन, सदंश, भूमिस्पर्श, निष्ठीवन, करेणकिंचित्ग्रहण, उदरकृमिनिर्गमन, अदत्तग्रहण, प्रहार, ग्रामदाह, पादेन किंचित् ग्रहण ये ३२ प्रकार की अंतराय हैं।
प्रश्न-८६ जैन साधु मयूर पंख की पिच्छी ही क्यों रखते हैं? कमण्डलु क्यों रखते हैं?
उत्तर-८६ जैन साधु कमण्डलु तो शुद्धि हेतु रखते हैं और मयूरपंख की पिच्छी इसलिए रखते हैं कि वह शुद्ध, कोमल व जीवों की रक्षा में सहायक होती है तथा उनके आदान-निक्षेपण समिति में सहायक होती है।
उत्तर-८६ जैन साधु कमण्डलु तो शुद्धि हेतु रखते हैं और मयूरपंख की पिच्छी इसलिए रखते हैं कि वह शुद्ध, कोमल व जीवों की रक्षा में सहायक होती है तथा उनके आदान-निक्षेपण समिति में सहायक होती है।
प्रश्न-८७ साधु के पास कौन-कौन से उपकरण होते हैं?
उत्तर-८७ कमण्डलु-पिच्छी (शुद्धि व जीव रक्षा हेतु) व शास्त्र (स्वाध्याय हेतु) ये ही उपरकण साधु के पास होते हैं।
प्रश्न-८८ साधुओं के दस भेद कौन-कौन से हैं, बताओ?
उत्तर-८८ आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष्य, ग्लान, गण, कुल, संघ साधु और मनोज्ञ ये साधुओं के दश भेद हैं।
उत्तर-८८ आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष्य, ग्लान, गण, कुल, संघ साधु और मनोज्ञ ये साधुओं के दश भेद हैं।
प्रश्न-८९ दिगम्बर जैन परम्परा में पिच्छीधारियों को नमस्कार करते समय क्या-क्या बोलना चाहिए?
उत्तर-८९ दिगम्बर जैन परम्परा में मुनियों को नमस्कार करते समय नमोस्तु, आर्यिकाओं को वन्दामि तथा ऐलक, क्षुल्लक व क्षुल्लिका को इच्छमि कहते हैं।
उत्तर-८९ दिगम्बर जैन परम्परा में मुनियों को नमस्कार करते समय नमोस्तु, आर्यिकाओं को वन्दामि तथा ऐलक, क्षुल्लक व क्षुल्लिका को इच्छमि कहते हैं।
प्रश्न-९० गणिनी के एवं आर्यिका के कितने मूलगुण होते हैं?
उत्तर-९० गणिनी के मुनियों की भाँति ही ३६ मूलगुण और आर्यिकाओं के २८ मूलगुण होते हैं।
उत्तर-९० गणिनी के मुनियों की भाँति ही ३६ मूलगुण और आर्यिकाओं के २८ मूलगुण होते हैं।
प्रश्न-९१ मुनि एवं आर्यिकाओं के कौन-कौन से मूलगुण में अंतर होता है?
उत्तर-९१ मुनि एवं आर्यिकाओं के दो मूलगुणों में अंतर होता है-१. आचेलक्य अर्थात् मुनि तो पूर्ण त्यागी हैं पर र्आियकाओं के लिए शास्त्र में दो साड़ी बताई हैं २. स्थित भोजन, मुनि खड़े होकर आहार लेते हैं किन्तु आर्यिका के मूलगुण में बैठकर आहार लेना बताया है।
उत्तर-९१ मुनि एवं आर्यिकाओं के दो मूलगुणों में अंतर होता है-१. आचेलक्य अर्थात् मुनि तो पूर्ण त्यागी हैं पर र्आियकाओं के लिए शास्त्र में दो साड़ी बताई हैं २. स्थित भोजन, मुनि खड़े होकर आहार लेते हैं किन्तु आर्यिका के मूलगुण में बैठकर आहार लेना बताया है।
प्रश्न-९२ मुनि एवं आर्यिकाओं की दिन भर की मुख्य क्रियाएँ बतलावें?
उत्तर-९२ मुनि एवं आर्यिका दिन भी की मुख्य क्रियाओं में चार बार स्वाध्याय, तीन बार देव वंदना और दो बार प्रतिक्रमण करते हैं।
उत्तर-९२ मुनि एवं आर्यिका दिन भी की मुख्य क्रियाओं में चार बार स्वाध्याय, तीन बार देव वंदना और दो बार प्रतिक्रमण करते हैं।
प्रश्न-९३ साधुओं की तपस्या का कितना भाग पुण्य राजाओं को स्वयमेव प्राप्त हो जाता है?
उत्तर-९३ साधुओं की तपस्या का छठाँ भाग पुण्य राजाओं को स्वयमेव प्राप्त हो जाता है।
उत्तर-९३ साधुओं की तपस्या का छठाँ भाग पुण्य राजाओं को स्वयमेव प्राप्त हो जाता है।
प्रश्न-९४ गुरु शिष्य के आपसी सम्बन्धों के बारे में कौन सा उदाहरण किया जाता है?
उत्तर-९४ चाणक्य और चन्द्रगुप्त का।
उत्तर-९४ चाणक्य और चन्द्रगुप्त का।
प्रश्न-९५ गुरु का लक्षण बताओ?
उत्तर-९५ जो गुरु परम्परा से ग्रंथ, अर्थ और उभयरूप से सूत्र को यथावत् सुनकर और उसे अवधारण करके स्वयं संसार से
उत्तर-९५ जो गुरु परम्परा से ग्रंथ, अर्थ और उभयरूप से सूत्र को यथावत् सुनकर और उसे अवधारण करके स्वयं संसार से
भयभीत होकर शिष्यों को उभयनीति-निश्चय व्यवहारनय की पद्धति के बल से सूत्रों को पढ़ाते हैं वे गुरु कहलाते हैं।
प्रश्न-९६ शिष्य का लक्षण बताओ?
उत्तर-९६ जो दुराग्रह से रहित हो तथा श्रवण, धारण आदि बुद्धि के विभव से युक्त हो, इत्यादि गुणों से युक्त शिष्य ही ‘शास्य’ – उपदेश के लिए पात्र है।
उत्तर-९६ जो दुराग्रह से रहित हो तथा श्रवण, धारण आदि बुद्धि के विभव से युक्त हो, इत्यादि गुणों से युक्त शिष्य ही ‘शास्य’ – उपदेश के लिए पात्र है।
प्रश्न-९७ कायोत्सर्ग किसे कहते हैं?
उत्तर-९७ शरीर में ममत्व का त्याग करना-णमोकार मंत्र का स्मरण करना कायोत्सर्ग है।
प्रश्न-९८ एक बार के कायोत्सर्ग में कितने स्वाझोच्छ्वास लेने चाहिए?
उत्तर-९८ एक बार के कायोत्सर्ग में २७ श्वासोच्छ्वास लेना चाहिए।
उत्तर-९८ एक बार के कायोत्सर्ग में २७ श्वासोच्छ्वास लेना चाहिए।
प्रश्न-९९ आर्यिकाएँ कितने मीटर की साड़ी पहनती हैं?
उत्तर-९९ आर्यिकाएँ आठ मीटर की साड़ी पहनती हैं।
उत्तर-९९ आर्यिकाएँ आठ मीटर की साड़ी पहनती हैं।
प्रश्न-१०० नमस्कार किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर-१०० नमस्कार हाथ जोड़कर अर्थात् साधारण रूप से, पंचांग साष्टांग तथा दोनों घुटने टेककर के किया जाता है।
उत्तर-१०० नमस्कार हाथ जोड़कर अर्थात् साधारण रूप से, पंचांग साष्टांग तथा दोनों घुटने टेककर के किया जाता है।
प्रश्न-१०१ आवर्त, शिरोनति एवं पंचांग तथा साष्टांग नमस्कार किस प्रकार से किया जाता है?
उत्तर-१०१ हाथ जोड़कर उसे तीन बार घुमाने को आवर्त, मस्तक झुकाकर नमस्कार करने को शिरोनति, पंचांग-गवासन बैठकर दोनों हाथों को आगे कर जमीन पर रखते हुए सिर को दोनों हाथों के बीच में जमीन से टिकाना तथा पूर्णरूपेण पेट के बल लेटकर प्रमाण करना साष्टांग है।
उत्तर-१०१ हाथ जोड़कर उसे तीन बार घुमाने को आवर्त, मस्तक झुकाकर नमस्कार करने को शिरोनति, पंचांग-गवासन बैठकर दोनों हाथों को आगे कर जमीन पर रखते हुए सिर को दोनों हाथों के बीच में जमीन से टिकाना तथा पूर्णरूपेण पेट के बल लेटकर प्रमाण करना साष्टांग है।
प्रश्न-१०२ वर्तमान में कितने पिच्छीधारी साधु हैं?
उत्तर-१०२ वर्तमान में ६०० पिच्छीधारी साधु हैं?
उत्तर-१०२ वर्तमान में ६०० पिच्छीधारी साधु हैं?
प्रश्न-१०३ चातुर्मास की स्थापना व निष्ठापना कब होती है?
उत्तर-१०३ चातुर्मास की स्थापना आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी को तथा चातुर्मास की निष्ठापना कार्तिक वदी चतुर्दशी को होती है।
उत्तर-१०३ चातुर्मास की स्थापना आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी को तथा चातुर्मास की निष्ठापना कार्तिक वदी चतुर्दशी को होती है।
प्रश्न-१०४ साधू सामायिक एवं प्रतिक्रमण दिन में कितनी बार करते हैं?
उत्तर-१०४ साधू तीन बार सामायिक एवं दो बार प्रतिक्रमण करते हैं?
उत्तर-१०४ साधू तीन बार सामायिक एवं दो बार प्रतिक्रमण करते हैं?
प्रश्न-१०५ मुनियों के कितने आवश्यक कत्र्तव्य वे कितने महाव्रत होते हैं?
उत्तर-१०५ मुनियों के षट्आवश्यक कत्र्तव्य और ५ महाव्रत होते हैं।
उत्तर-१०५ मुनियों के षट्आवश्यक कत्र्तव्य और ५ महाव्रत होते हैं।
प्रश्न-१०६ चारित्र के कितने भेद हैं?
उत्तर-१०६ चारित्र के दो भेद हैं-१. सकल २. निकल।
प्रश्न-१०७ आशीर्वाद देते समय साधु किनके लिए क्या-क्या बोलते हैं?
उत्तर-१०७ आशीर्वाद देते समय साधु व्रती के लिए ‘समाधिस्तु’, ‘बोधिलाभोस्तु’, अव्रती के लिए ‘सद्धर्मवृद्धिरस्तु तथा अन्य के लिए कल्याणमस्तु कहते हैं। अधर्मी के लिए या नीच प्राणी के लिए ‘पापमक्षयास्तु’ कहते हैं।
उत्तर-१०७ आशीर्वाद देते समय साधु व्रती के लिए ‘समाधिस्तु’, ‘बोधिलाभोस्तु’, अव्रती के लिए ‘सद्धर्मवृद्धिरस्तु तथा अन्य के लिए कल्याणमस्तु कहते हैं। अधर्मी के लिए या नीच प्राणी के लिए ‘पापमक्षयास्तु’ कहते हैं।
प्रश्न-१०८ क्षुल्लकों के कितने मूलगुण होते हैं?
उत्तर-१०८ क्षुल्लकों के भी मुनियों की भाँति २८ मूलगुण होते हैैं।
उत्तर-१०८ क्षुल्लकों के भी मुनियों की भाँति २८ मूलगुण होते हैैं।
प्रश्न-१०९ क्षुल्लकों को कितनी प्रतिमाएँ होती हैं?
उत्तर-१०९ क्षुल्लकों की ११ प्रतिमाएँ होती हैं।
उत्तर-१०९ क्षुल्लकों की ११ प्रतिमाएँ होती हैं।
प्रश्न-११० क्षुल्लक आहार किस प्रकार लेते हैं तथा कितनी बार लेते हैं?
उत्तर-११० क्षुल्लक आहार कटोरे या थाली में लेते हैं तथा मुनि आदि की भाँति एक बार ही आहार लेते हैं।
उत्तर-११० क्षुल्लक आहार कटोरे या थाली में लेते हैं तथा मुनि आदि की भाँति एक बार ही आहार लेते हैं।
प्रश्न-१११ क्या, क्षुल्लक मुनियों की भाँति ही केशलोंच करते हैं?
उत्तर-१११ नहीं, क्षुल्लकों के लिए मुनि की भाँति केशलोंच का विधान नहीं है व नाई से बाल बनवा सकते हैं परन्तु कोई-कोई क्षुल्लक आगे उत्कृष्ट तप की प्राप्ति के हेतु अर्थात् मुनि बनने हेतु पहले से ही क्षुल्लकावस्था में करते हैं जिसमें कोई दोष नहीं है।
उत्तर-१११ नहीं, क्षुल्लकों के लिए मुनि की भाँति केशलोंच का विधान नहीं है व नाई से बाल बनवा सकते हैं परन्तु कोई-कोई क्षुल्लक आगे उत्कृष्ट तप की प्राप्ति के हेतु अर्थात् मुनि बनने हेतु पहले से ही क्षुल्लकावस्था में करते हैं जिसमें कोई दोष नहीं है।
प्रश्न-११२ चार प्रकार के मुनि कौन-कौन से हैं?
उत्तर-११२ यति, मुनि, अनगार और ऋषि ये चार प्रकार के मुनि हैं।
उत्तर-११२ यति, मुनि, अनगार और ऋषि ये चार प्रकार के मुनि हैं।
प्रश्न-११३ मुनियों के छत्तीस उत्तर गुण कौन-कौन से हैं?
उत्तर-११३ बारह तप और बाईस परिषह जय ये मुनियों के छत्तीस उत्तर गुण हैं।
उत्तर-११३ बारह तप और बाईस परिषह जय ये मुनियों के छत्तीस उत्तर गुण हैं।
+प्रश्न-११४ चतुर्विध संघ किसे कहते हैं?
उत्तर-११४ (मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका) चतुर्विध संघ कहलाते हैं।
उत्तर-११४ (मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका) चतुर्विध संघ कहलाते हैं।