१. स्वयं को व्यवस्थित करने के लिए समय की पाबन्दी आवश्यक है।
(अ) जीवन में कभी मुँह बन्द करने का अवसर प्राप्त हो तो उसे कभी न खोएं।
(ब) भगवान ने हमें दो कान तथा एक मुँह दिया है। अत: दो बार सुनना तथा एक बार बोलना स्वयं को व्यवस्थित करने के लिये अति आवश्यक है।
२. क्षितिज से परे दृष्टिपात
(अ) जीवन में ज्ञान की ऐसी सीढ़ी तैयार की जा सकती है जिसकी सहायता से व्यक्ति ऊँची से ऊँची मंजिल छू सकता है। कठिनाईयाँ हमारी प्रगति में सहायक मील का पत्थर है।
(ब) जीवन यात्रा में आप जितने हल्के होते हैं, संज्ञा का स्वरूप उतना ही आनन्दमयी होता है। (स) धन्यवाद की अपेक्षा नहीं करते हुये निस्वार्थ सेवा एक ऐसा कृत्य है जिससे व्यक्ति क्षितिज के परे प्राप्ति की क्षमता बढ़ती है।
३. समस्या के समाधान के लिये उसे मानें, स्वीकार करें तथा उनसे समायोजन करके स्थिति सुधारने का प्रयत्न करे। समस्या से आंख मूंद लेना कमजोरी की निशानी है।
४. परिश्रम सफलता और असफलता एक ही सिक्के के दो पहलू है तथा परिश्रम करते रहना ही सफलता की कुंजी है।
५. स्वास्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। शरीर को स्वस्थ रखना व्यक्ति का निजी दायित्व है। स्वस्थ रहने के लिए हंसना आवश्यक है। ३० सेकिण्ड हंसने में दिल को इतना व्यायाम मिलता है जितना ३ मिनट नौका चलाने में।
६. मानसिक शान्ति के लिये दूसरों की गलतियाँ ढूढ़ना बन्द करें तथा अपनी स्वयं की गलती देखें।
७. शृ्रद्धा तथा ज्ञान से जीवन का आनन्द प्राप्त होता है। स्वयं के नियम बनाकर उस पर जीवन संचालित करना ही सफलता की कुंजी है।