हाट—बाजार जाते समय हमकों कोई बेमौसम की हरी सब्जियां दिखें तो हमारा चेहरा खिल उठता है। स्वत: ही उन सब्जियों का स्वाद मुंह में महसूस होता है और हम लपक पड़ते हैं उन्हें खरीदने अब चाहे वह पाव भर ही क्यों न हो लेकिन कभी आपने यह जानने की कोशिश की है कि बेमौसम की सब्जियां हमारे लिए कितनी लाभदायक हैं। अगली बार आप जब बाजार सब्जी खरीदने जाएं तो बेमौसम की ही भिंडी या लौकी जैसी सब्जियों को खरीदने से पहले एक बात गौर कर लें कि उन्हीं सब्जियों के माध्यम से कहीं आप धीमें विष का शिकार तो नहीं हो रहे हैं। बेमौसम की इन हरी मन लुभावनी सब्जियों के जरूरत से अधिक हरी होने का राज कृत्रिम रंग भी होने की संभावना है। सच पूछा जाए तो कृत्रिम हरे रंग का प्रयोग अमूमन खुदरा विव्रेताओं द्वारा मूल रूप से अधिकाधिक किया जाता है ताकि उनकी सड़ी—गली सब्जियों को ताजा दिखाकर ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचा जा सके। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशन द्वारा मिलावटी पदार्थों की सूची तैयार की जाती है जिसमें इस बात का उल्लेख होता है कि सब्जीयों को हरा दिखाने के लिए कृत्रिम रंगों का इन सब्जियों पर छिड़काव किया जा सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार मेलेथियन नामक रसायन का प्रयोग अधिकतर हरी सब्जियों ओर फलों को गहरे रंग में दिखाने के लिए किया जाता है जो निश्चित रूप से मनुष्य की सेहत के लिए हानिकारक सिद्ध होता है। विशेषकर बच्चों पर इनका दुष्प्रभाव अधिक दिखाई देता है। एलर्जी इत्यादि आम रोगों के अतिरिक्त इसके दूरगामी परिणाम कैंसर जैसे प्राणघातक रोग भी होते हैं। इन हरी सब्जियों के माध्यम से हमारे शरीर में धीमा विष, कीटनाशक और खरपतवार नाशक के रूप में विभिन्न रसायनों का जाता है जो इन हरी सब्जियों के पौधों में डाला जाता है। फलों और सब्जियों में कीटनाशकों और खरपतवार नाशकों की काफी ज्यादा मात्रा मौजूद रहती है जो धोने पोंछने के उपरान्त भी सब्जियों और फलों के माध्यम से हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर देती है। वर्तमान में फलों की या सब्जियों की खेती के आरंभ से अंत तक इन रसायनों का छिड़काव किया जाता है। परिणामस्वरूप कितनी भी सावधानियां क्यों न बरत लें स्वास्थ्य के लिए हानिकारक, रासायनिक तत्व इन सब्जियों और फलों के माध्यम से हमारे शरीर में पहुंच ही जाते हैं। इन रसायनों के माध्यम से हमारे शरीर में अपच, अतिसार, उल्टी जैसी आम शिकायत तो होती ही है, साथ ही कैंसर व अल्सर जैसी प्राणघातक बीमारियों को भी न्योता मिल जाता है।
रिसर्च फाउंडेशन ऑफ साइंस एंड टेक्नोलोजी द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार भारतीयों में इन रसायनों के अवशेष की मात्रा सबसे अधिक है। रासायनिक कीटनाशक व खरपतवार नाशक में ग्लाइफासेट नाम के हरबीसाईड भले ही बाजार में पर्यावरण संरक्षक के रूप में लांच किए गए हो पर इससे अल्सर जैसी घातक बीमारियां हो सकती है। यही नहीं, ये रसायन गुर्दे को भी प्रभावित करते हैं। अनुसंधानों द्वारा इस प्रकार के खाद्य पदार्थों की विषाक्तता का अध्ययन करने से पता चलता है कि इसमें सीसा, निकल, कैड्रमियम व क्रोमियम जैसी हानिकारक धातुएं भारी मात्रा में पायी जाती है। भिंडी, लौकी, मटर, परवल आदि ऐसी ही सब्जियां हैं जिन्हें आसानी से उनके रंग व आकार प्रकार के आधार पर पहचाना जा सकता है कि इसमें कृत्रिम रंगों का समावेश है। फलों में तरबूज, आम, अनानास, चेरी, आलुबुखार आदि रसदार फल हैं, जिनमें कृत्रिम रंग मिलाकर उपभोक्ताओं को आकर्षित किया जाता है। इन सब का एकमात्र उपाय है आपकी सूझबूझ जिसके द्वारा आप पूरी तरह से तो नहीं लेकिन कुछ हद तक इस विषाक्तता से मुक्ति पा सकती हैं। यह तो संभव नहीं कि सभी लोग घर में बगीचे तैयार करें लेकिन यह सर्वोत्तम उपाय है कि प्रतिदिन की मौसमी सब्जियों को आप अपने बगीचे में ही उगाएं। चाहें तो इन्हें गमलों आदि में भी उगाया जा सकता है जिसमें केवल गोबर की खाद व अच्छी मिट्टी का प्रयोग हो। कीटनाशक के लिए नीम, पाउडर, हल्दी जैसे प्राकृतिक कीटनाशकों का यथासंभव प्रयोग करें । मिट्टी तैयार करने से पूर्व मिट्टी को कीटमुक्त कर लें। टमाटर, खीरा, लौकी, भिंडी, मटर तथा हरी सब्जियां भी आप स्वयं उगा सकते हैं। रही बात बाजार से खरीदने की तो उन्हीं सब्जियों की ओर अपना ध्यान केन्द्रित करें जो इस मौसम में अधिक मिल रही हों।