हम लोग सोचते है कि एंटीबायोटिक दवांए हमारे लिए बहुत लाभदायक हैं। ऐसी बात नहीं है। अब ये जीवन रक्षक दवाएं शरीर का बोझ बढ़ा रही हैं। नये अध्ययन के अनुसार अगर बच्चों को छ: महीने से पहले ही एंटीबायोटिक या जीवनरक्षक दवाएं दे दी जाती हैं तो बच्चों में मोटापे की संभावना बढ़ जाती है। नये शोध से पता चला है कि गर्भावस्था में एंटीबायोटिक खतरनाक होती है। जिन मां ने गर्भावस्था के दौरान एंटीबायोटिक दवाईयां ली, उनके बच्चों में अस्थमा होने का खतरा बढ़ गया। डेनमार्ग में किये गये शोध में यह बात सामने आई है। अब यह साबित हो गया है कि एंटीबायोटिक दवाओं के कारण दमा का खतरा बढ़ जाता है। शोध से यह भी पता चला है कि इन दवाईयों के कारण शरीर में ऐसे फैडली बैक्टीरिया खत्म हो सकते है। जो अस्थमा होने या नहीं होने में अहम भूमिका निभाते हैं। एंटीबायोटिक दवाइयों के कारण इन लाभदायी बैक्टीरिया का काम गड़बड़ हो सकता है। देखने में आया है कि जिस महिला ने एंटीबायोटिक्स ली उनके न्यूट्रल बैक्टीरिया का संतुलन बिगड़ गया । यही बैक्टीरिया पैदा होने वाले बच्चे में भी जाता है। इससे बचपन में ही असंतुलित बैक्टीरिया का असर प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है। करीब ७,४०० बच्चे ऐसे थे जिनकी मां ने गर्भावस्था में एंटीबायोटिक दवाईयां ली थी। ऐसे बच्चों में करीब तीन प्रतिशत बच्चों को पाँच साल की उम्र में दमा के कारण हस्पताल में भर्ती करना पड़ा। लेकिन शोध से यह भी सामने आया है कि करीब चौबिस हजार में से ६०० बच्चे ऐसे भी थे जिनकी मां ने कोई एंटीबायोटिक नहीं ली थी फिर भी बच्चों को अस्थमा हो गया। पुराने शोधों से यह बात साफ हो गई थी कि बचपन में ली गई एंटीबायोटिक्स से अस्थमा होने का खतरा बढ़ जाता है। लेकिन कुछ शोधकर्ताओं ने इससे इन्कार किया था। अब कुल मिलाकर यह बात साफ हो गई है कि जिन महिलाओं ने एंटीबायोटिक लिये उनके बच्चों में अस्थमा होने का १७ प्रतिशत ज्यादा खतरा बढ़ गया। फिर उन्हें इसके लिए दवाइयां दिये जाने की आशंका भी ज्यादा होती है।
बच्चों में बढ़ रहा मोटापा—
हम लोग सोचते हैं कि एंटीबायोटिक दवाएं हमारे लिए बहुत लाभदायक है। ऐसी बात नहीं है। अब ये जीवन रक्षक दवाएं शरीर का बोझ बढ़ा रही है। नये अध्ययन के अनुसार अगर बच्चों को छ: महीने से पहले ही एंटीबायोटिक या जीवनरक्षक दवाएं दे दी जाती है तो बच्चों में मोटापे की संभावना बढ़ जाती है । आमतौर से हम जानते हैं कि मोटापा गलत खान—पान से होता है। लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल मोटापा हम कितनी कैलोरी हजम कर पाते है यह हमारी आंतो में पाये जाने वाले जीवाणु और एंटीबायोटिक पर निर्भर करता है। खासतौर से जीवन के शुरूआती दौर में हम कितना एंटीबायोटिक लेते हैं ये बहुत अहम होता है।दरअसल एंटीबायोटिक शरीर में मौजूद स्वास्थ्यवद्र्धक बैक्ट्रीरिया को मार देता है। इसलिए ज्यादा एंटीबायोटिक बच्चों के लिये हानिकारक होता है। इससे ज्यादातर शरीर के जीवाणु मर जाते है। इससे मोटापा दमा और पेट की बीमारियाँ बढ़ती हैं। इस एंटीबायोटिक का इस्तेमाल पहले गायों को खिला कर देखा गया। इससे उनका वजन बढ़ गया। ब्रिटेन के एयोन इलाके के करीब दस हजार बच्चों पर इसका प्रयोग किया गया इसमें पाया गया कि जिन बच्चों को पैदा होने के छ: महीने के भीतर एंटीबायोटिक दिये गये उनका वजन ज्यादा था। दस से दो महीनों के बीच हालांकि वजन का अंतर कम था लेकिन ३८ महीने के बच्चों के वजन में ज्यादा अंतर पाया गया। बच्चों को किस उम्र में एंटीबायोटिक दिया गया यह भी काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि इसका संबंध मोटापे से है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जिन बच्चों को ६ से १४ महीनों के बीच में दवाएं दी गई थी उनका वजन ज्यादा नहीं बढ़ा। इसी तरह जिन बच्चों को १५ से २३ महीनों के बीच एंटीबायोटिक दिया गया उनका भी वजन ज्यादा नहीं बढ़ा। जो भी शोध हो रहें है उनमें वैज्ञानिकों को यह भी ध्यान देना होगा कि कहीं उसका हमारे प्राकृतिक जीवन पर उल्टा असर न पड़े। हम जितने ही प्रकृति से दूर होते जाएंगें उतने ही कमजोर होते जाएगें। प्रकृति ने ही हमें जीना सिखाया है। जीने के लिए हमें उसके विरूद्ध नहीं जाना चाहिये। प्रकृति बदला लेती है। जब बदला लेती है तो सब नष्ट हो जाता है।