मन यह अति चंचल है। एक जगह कभी भी ठहरता नहीं। चाहे हम कुछ भी करते हों, वह जगह जगह भटकता है। आज भारत , कल अमेरिका परसो जापान। न जाने कहाँ कहाँ से और कितने विचार मनको प्रिय होते हैं। बाहरी दुनिया में भटकने वाला मन वश में नहीं होता। मन ३ प्रकार का होता है । १. मरा मन, २. डरा मन, ३. खरा मन, मरा मन हमेशा नकारात्मक सोचता है। डरा मन हरेक बात से डरकर रहता है। और खरा मन एकदम निश्चिंत रहता है। उसे कोई बात की चिंता नहीं होती। सच को डर काहे का ? सकारात्मक सोचना, नकारात्मक नहीं सोचना। अगर मन चंगा तो कटौती में गंगा। मन साफ है तो सारे तीर्थ साथ में है। मन को साफ रखेंगे तो तन याने प्रकृति भी चंगी रहेगी। युधिष्ठर ने धर्मराज से पूछा ‘‘ मन को कैसे जीतना ?’’ तो युधिष्ठर ने जवाब दिया कि मनको दो तरह से जीता जाता है। १. वैराग्य २. अभ्यास, वैराग्य तो इतना आसान नहीं किंतु अभ्यास तो किया जा सकता है। अभ्यास में
१ ) अनुपूर्वीका श्रेष्ठ स्थान है। स्थिर चित्त होने का यह उत्तम उपाय है। अनुपूर्वी में नवकार मंत्र फेरते रहो। चित्त एकाग्र हो जायेगा।
२) स्वाध्याय करने से मन वश में होता है।
३) अच्छे ग्रंथ पढ़ने से भी मन वश में होता है।
४) जप, तप से भी मन एकाग्र होता है। स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है। पुरूषार्थ से भी मन को वश में ला सकते है। क्रोध, मान, माया, लोभ ये चांडाल चौकड़ी हैं। इन्हें कषाय कहते है। मन को वश में लाने की आत्मचिंतन की ५ बातें है। रात्रि में सोते वक्त उन्हें जपो।
आत्मचिंतन की ५ बातें
१) क्रोध मेरा शांत हो, क्षमा गुण प्रकट हो।
२) मान (अहंकार) मेरा नाश हो , नम्रता गुण प्रकट हो।