एक ही पुरुष में पिता, पुत्र, पौत्र, भानजे, भाई आदि अनेक सम्बन्ध होते हैं। एक ही समय में वह अपने पिता का पुत्र और अपने पुत्र का पिता होता है। अत:: एक ही पिता होने से वह सबका पिता नहीं होता। (यही स्थिति सब वस्तुओं की है।) सविकल्प—निर्वकल्पम् इति पुरुषं यो भणेद् अविकल्पम्। सविकल्पमेव वा निश्चयेन न स निश्चित: समये।।
निर्वकल्प तथा सविकल्प उभयरूप पुरुष को जो केवल निर्वकल्प अथवा सविकल्प (एक ही) कहता है, उसकी मति निश्चय ही शास्त्र में स्थिर नहीं है। जेण विणा लोगस्स वि, ववहारो सव्वहा ण णिव्वडइ। तस्स भुवणेक्कगुरुणो, णमो अणेगंतवायस्स।।
जिसके बिना विश्व का कोई भी व्यवहार सम्यक् रूप से घटित नहीं होता है, अतएव जो त्रिभुवन का एकमात्र गुरु (सत्यार्थ का उपदेशक) है, उस अनेकांतवाद को मेरा नमस्कार है।