हिंसा आदि आस्रव द्वारों से सदा कर्मों का आस्रव होता रहता है। जैसे कि समुद्र में जल के आने से सछिद्र नौका डूब जाती है। मिच्छत्ताविरदी वि य, कसायजोगा य आसवा होंति।
मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग—ये आस्रव के हेतु हैं।