Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
Search
विशेष आलेख
पूजायें
जैन तीर्थ
अयोध्या
गुप्ति :!
November 21, 2017
शब्दकोष
jambudweep
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[श्रेणी:शब्दकोष ]] ==
गुप्ति :
==
संरम्भे समारम्भे, आरम्भे च तथैव च। वच: प्रवर्तमानं तु, निवर्तयेद् यतं यति:।।
—समणसुत्त : ४१३
यतना—सम्पन्न यति संरम्भ, समारम्भ व आरम्भ में प्रवत्र्तमान वचन को रोके—उसका गोपन करे।
क्षेत्रस्य वृत्तिर्नगरस्य, खातिकाऽथवा भवति प्राकारा:। तथा पापस्य निरोध:, ता: गुप्तय: साधो:।।
—समणसुत्त : ४१५
जैसे खेत की रक्षा बाड़ और नगर की रक्षा खाई या प्राकार करते हैं, वैसे ही पाप—निरोधक गुप्तियाँ साधु के संयम की रक्षा करती हैं
Previous post
अरिहंत!
Next post
*अनशन :*!
error:
Content is protected !!