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तीव्रकषायी :!
November 21, 2017
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[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]]
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तीव्रकषायी :
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आत्मप्रशंसनकरणं, पूज्येषु अपि दोषग्रहणशीलत्वम्। वैरधारणं च सुचिरं, तीव्रकषायाणां लिंगानि।।
—समणसुत्त : ६००
अपनी प्रशंसा करना, पूज्य पुरुषों में भी दोष निकालने का स्वभाव होना, दीर्घकाल तक वैर की गाँठ को बांधे रखना—ये तीव्रकषाय वाले जीवों के लक्षण हैं।
Tags:
सूक्तियां
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