धर्म का मूल दया है। प्राणी पर अनुकम्पा करना दया है। दया की रक्षा के लिए ही सत्य, क्षमा शेष गुण बताए गए हैं।
मा हससु परं दुहियं कुणसु दयं णिच्चमेव दीणम्मि।
—कुवलयमाला : ८५
दूसरे दु:खी लोगों पर मत हँसो, हमेशा ही दोनों पर दया करो।
यथा ते न प्रियं दुक्खं, ज्ञात्वैवमेव सर्वजीवानाम्।
सर्वादरमुपयुक्त:, आत्मौपम्येन कुरु दयाम्।।
—समणसुत्त : १५०
तुमको जिस प्रकार दु:ख प्रिय नहीं, इसी प्रकार सभी जीवों को भी दु:ख प्रिय नहीं और सभी अपने जैसे ही हैं, यह जानकर समस्त आदर एवं सजगता का भाव रखते हुए सभी पर दया करो।