== द्रव्यदृष्टि : == भारी पीलो चीकणो कनक, अनेक तरंग रे। पर्याय दृष्टि न दीजिए, एकज कनक अभंग रे।।
—आनन्दघन ग्रंथावली :: अरजिन स्तवन
स्वर्ण के साथ पर्याय रूप में तीन गुण निहित रहते हैं—भारीपन, पीलापन और चिकनापन अर्थात् सोना वजन में भारी, रंग से पीता और गुण से चिकना (स्निग्ध) ऐसे अनेक रूपों में दृष्टिगत होता है। इसी तरह स्वर्ण के हार, कगन कठी, कड़ा आदि विभिन्न आभूषण बनाए जाते हैं, किन्तु ये सब पर्याय—दृष्टि से देखने पर ही भिन्न—भिन्न प्रतीत होते हैं। यदि पर्याय—दृष्टि को गौण कर द्रव्यदृष्टि से देखा जाए तो सोना एक और अखण्ड—अभेद रूप ही रहता है। उसके भेद—प्रभेद नहीं हो सकते। सुरगिरिणो किं तुंगत्तणेण ? किं तस्स कणयरिद्धीए? पासे वि भमंतं मित्तमंडलं जस्स अत्थमिअं।।
—गाहारयण कोष : ७२७
मेरु पर्वत की ऊँचाई से क्या और उसकी स्वर्णऋद्धि से भी क्या, जिसके पास में ही भ्रमण करने वाले सूर्यमंडल अस्त हो जाते हैं ? ऐसे धनवान से क्या लाभ, जिसके रहते हुए मित्रमंडल की अधोगति होती है