मूढ़ मानव अपने धन का संरक्षण करने हेतु धन को जमीन में गाड़ता है और उस पर धूल डालता है किन्तु वस्तुत: वह धन के ऊपर धूल नहीं डाल रहा है, प्रत्युत अपने ऊपर ही धूल डाल रहा है। इसका कारण यह है कि धन के प्रति अत्यधिक मूच्र्छा होने से, वह मरकर उसी धन की रखवाली करने वाला सर्प, चूहा आदि बनता है। आदा धम्मो मुणेदव्वो।
आत्मा ही धर्म है, अर्थात् धर्म आत्मा—स्वरूप होता है। किरिया हि णत्थि अफला, धम्मो जदि णिप्फलो परमो।
संसार की कोई भी मोहात्मक क्रिया निष्फल (बंधनरहित) नहीं है, एकमात्र धर्म ही निष्फल है, अर्थात् स्व—स्वभाव रूप होने से बंधन का हेतु नहीं है।