जिसमें विषयरूपी जल है, मोह की गर्जना है, स्त्रियों की विलासभरी चेष्टा रूप मत्स्य आदि जलचर जीव हैं और मद रूपी जिसमें मगरमच्छ रहते हैं ऐसे तारुण्य रूपी समुद्र को धीर पुरुषों ने ही पार किया है। जो विसमम्मि वि कज्जे कज्जारंभं न मुच्चए धीरो। अहिसारियव्व लच्छी विनडइ वच्छत्थले तस्स।।
विषम कार्य के होने पर भी धीर पुरुष कार्यारम्भ करने पर उसको बीच में नहीं छोड़ते। अभिसारिका की तरह धीर व्यक्ति के वक्षस्थल पर लक्ष्मी स्वयं आ पड़ती है।