युक्तिपूर्वक उपयुक्त मार्ग में प्रयोजनवश नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव में पदार्थ की स्थापना को आगम में निक्षेप कहा गया है। द्रव्यं खलु भवति द्विविधं, आगमनोआगमाभ्याम् यथा भणितम्। अर्हत्—शास्त्रज्ञायक: अनुपयुक्तो द्रव्यार्हन्।। नो आगम: अपि त्रिविध:, देहो ज्ञानिनो भाविकर्म च। ज्ञानिशरीरं त्रिविधं, च्युतं त्यक्तं च्यावितम् च इति।।
जहाँ वस्तु की वर्तमान अवस्था का उल्लंघन कर उसका भूतकालीन या भावी स्वरूपानुसार व्यवहार किया जाता है, वहाँ द्रव्य—निक्षेप होता है। उसके दो भेद हैं—आगम और नोआगम। अर्हत्कथित शास्त्र का जानकार जिस समय उस शास्त्र में अपना उपयोग नहीं लगाता, उस समय वह आगम द्रव्य निक्षेप से अर्हत् है। नोआगम द्रव्यनिक्षेप के तीन भेद हैं—ज्ञायक शरीर, भावी और कर्म। जहाँ वस्तु के ज्ञाता के शरीर को उस वस्तुरूप माना जाए वहाँ ज्ञायक शरीर नोआगम द्रव्य निक्षेप है। जैसे राजनीतिज्ञ के मृत शरीर को देखकर कहना कि राजनीति मर गई।