बंधे हुए कर्म—प्रदेशों के क्षरण को निर्जरा कहा जाता है। जिन कारणों से संवर होता है, उन्हीं कारणों से निर्जरा होती है। यथा महातडागस्य, सन्निरुद्धे जलागमे। उत्सिंचनया तपनया, क्रमेण शोषणा भवेत्।। एवं तु संयतस्यापि, पापकर्म निरास्रवे। भवकोटिसंचितं कर्म, तपसा निर्जीर्यते।।
जैसे किसी बड़े तालाब का जल, जल के मार्ग को बंद करने से, पहले के जल को उलीचने से तथा सूर्य के ताप से क्रमश: सूख जाता है, वैसे ही संयमी का करोड़ों भवों का संचित कर्म पापकर्म के प्रवेशमार्ग को रोक देने पर तथा तप से निर्जरा को प्राप्त होता है—नष्ट होता है।