पुरुष में पुरुष शब्द का व्यवहार जन्म से लेकर मरण तक होता रहता है। परन्तु इसी बीच बचपन—बुढ़ापा आदि अनेक पर्यायें उत्पन्न हो—होकर नष्ट होती जाती हैं। तस्माद् वस्तूनामेव, ये सदृश: पर्यव: स सामान्यम्। यो विसदृशो विशेष:, स मतोऽनर्थान्तरं तत:।।
अत: वस्तुओं की जो सदृश पर्याय है—दीर्घकाल तक बनी रहने वाली समान पर्याय है, वही सामान्य है और उनकी जो विसदृश पर्याय है, वह विशेष है। ये दोनों सामान्य तथा विशेष पर्यायें उस वस्तु से अभिन्न (कथंचित्) मानी गई हैं।