आत्मा का शुभ परिणाम (भाव) पुण्य है और अशुभ परिणाम पाप है। उपभुंजिऊण न सक्कइ रिद्धिपत्तो वि पुन्नपरिहीणो। पउरं पि जलं तिसिओ वि मंडलो लिहइ जीहाए।।
पुण्यहीन विपुल सामग्री प्राप्त करने पर भी उसका उपभोग नहीं कर सकता। जैसे विशाल जलराशि के होने पर और बहुत प्यास लगने पर भी सांप तो जीभ से ही पानी को चाटता है।