जो पुरुष केवल अपने मत की ही प्रशंसा करते हैं तथा दूसरे के वचनों की निन्दा करते हैं और इस तरह अपना पांडित्य प्रदर्शन करते हैं, वे संसार में मजबूती से जकड़े हुए हैं, दृढ़ रूप में आबद्ध हैं।