हे बडवाग्नि ! तू समुद्र के जल को सोख या न सोख, पानी में तुझे जो आग मिलती है अर्थात् दुश्मन के घर में अपना मित्र मिलता है, क्या वह पर्याप्त नहीं है ? दिंतो जलं पि जलओ स वल्लहो होइ सयललोयाणं। निच्चपसारियकरो करेइ मित्तो वि संतावं।।
बादल सतत जल का दान देने से समस्त लोगों का प्रिय बन गया है। नित्य हाथ (कर: किरण) पैâलाने वाला मित्र (सूर्य) संताप ही देता है।