वही शब्द (ध्वनि), वही शुभ्र ताप और रत्नाकर में उत्पत्ति। यह सब कुछ होते हुए भी शंख अपने हृदय की वक्रता के कारण सर्वत्र भ्रष्ट होता है। व्यक्ति घर, धन, परिवार से महान होने पर भी अपनी वक्रता से सर्वत्र दु:खी होता है।