भाव से विरक्त मनुष्य शोक—मुक्त बन जाता है। जैसे कमलिनी का पत्र जल में लिप्त नहीं होता, वैसे ही वह संसार में रहकर भी अनेक दु:खों की परम्परा से लिप्त नहीं होता।